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'Saand Ki Aankh' Review : चन्द्रो और प्रकाशी के रूप में हंसाएगी, रुलाएगी और इंस्पायर भी करेगी भूमि पेडनेकर और तापसी पन्नू

फिल्म- 'सांड की आंख'

कास्ट- भूमि पेडनेकर, तापसी पन्सुनू, विनीत कुमार सिंह, प्रकाश झा

निर्देशक- नितेश तिवारी

रेटिंग्स- 3.5 Moons

 

तुषार हीरानंदानी की डायरेक्टेड 'सांड की आंख' भारत की सबसे उम्रदराज शार्प शूटर चंद्रो तोमर और प्रकाशी तोमर की बायोग्राफी है जो दर्शकों को एक अच्छा और प्रेरक संदेश देती है. यह कहानी पश्चिमी उत्तर प्रदेश के ग्रामीण परिवेश की है जिसे स्क्रीन पर बखूबी से दिखाया गया है. गांव का माहौल और गांव के लोगों की सोच भी बहुत सफाई से पर्दे पर उतारी गई है. महिलाओं के प्रति पुरुषों का व्यवहार भी आपको इस फिल्म में साफ दिखाई देगा. यह कहना गलत नहीं होगा कि यह फिल्म आपको ही नहीं, आपके पेरेंट्स को भी इंस्पायर करेगी.

चन्द्रो (भूमि पेडनेकर) और प्रकाशी (तापसी पन्नू) देवरानी-जेठानी है जो अपने आसपास मेल डोमिनेंस को पसंद नहीं करती. लेकिन उनकी परवरिश ऐसी हुई है कि वह उस परिस्थिति में खुद को ढाल लेते हैं लेकिन, इस बीच वह जानती हैं कि खुद के लिए समय कैसे निकालना है, खुद को खुश करने के लिए क्या-क्या करना है. 60 साल की उम्र में चन्द्रो और प्रकाशी को अपने अंदर छुपा एक बेहतरीन टैलेंट पता चलता है और वह है निशानेबाजी!

अपनी भतीजी को शार्पशूटिंग में मदद करने के दौरान चन्द्रो और प्रकाशी को लगता है कि निशानेबाजी तो उनके बाएं हाथ का खेल है और धीरे-धीरे वह इस शौक को आगे बढ़ाती हैं. जैसा कि हमने कहा कि वह जानती हैं कि खुद को कैसे खुश रखना है ऐसे में उन्होंने निशानेबाजी में अपनी खुशी ढूंढी. शार्पशूटर बनने और बहुत सारे मेडल्स अपने नाम करने के सफर में उनका साथ डॉक्टर बने डॉक्टर यशपाल (विनीत कुमार सिंह) उनका साथ देते हैं. जाहिर सी बात है कि चन्द्रो और प्रकाशी के इस शौक से उनके परिवार और उनके गांव के लोग उन्हें पसंद नहीं करते. तुषार हीरानंदानी ने शुरू से ही दर्शकों को गांव की संरचना समझाई है और औरतों को लेकर पुरुषों द्वारा बनाए गए बंधन भी दिखाए हैं.

'सांड की आंख' छोटे से छोटा किरदार और बड़े से बड़े किरदार ने कहानी के रूप में अपने आपको बहुत्ब खूबसूरती से ढाला है. प्रकाश झा ने भी अपने किरदार के साथ इंसाफ किया है. फिल्म के वीक पॉइंट की बात की जाए तो इस फ़िल्स्पेम का पहला हाफ कैरेक्टर को समझाने में लग जाता है. कैसे चन्द्रो और प्रकाशी के घर वाले हर चीज में उनके खिलाफ होते हैं, कैसे वह इन सब से निकलकर अपने आप को ट्रेन करती हैं, अपनी भतीजीयों को भी ट्रेन करती हैं. इन सबके चलते पहला हाफ आपको शायद थोड़ा लंबा और बोरिंग लगेगा लेकिन इंटरवल के बाद जब आप अपनी कुर्सियों पर वापस आएंगे तो आपको यह कहानी दौड़ती हुई दिखाई देंगी और एक्साइटमेंट अपने लेवल पर होगा. आप भूल जाएंगे कि पहला हाफ कितना बोरिंग था. कमाल की बात यह है कि शुरू से लेकर अंत तक भूमि ने अपने किरदार को पूरी तरह से पकड़ कर रखा है. तापसी भी हमेशा की तरह अपने किरदार को बखूबी से निभाते हुए दिखाई दे रही हैं. यह कहना गलत नहीं होगा कि जिस तरह की एक्टिंग और परफॉर्मेंस हम किसी सीनियर एक्टर में देखते हैं वह हमें इस फिल्म में भूमि में दिखाई दी.

प्रकाशी और चन्द्रो दोनों 5 सालों तक कभी किसी सत्संग का तो कभी किसी मेले का बहाना लेकर निशानेबाजी प्रतियोगिता में हिस्सा लेती हैं और बहुत सारे मेडल्स भी जीतती हैं. उनकी ये जर्नी को आप भी बहुत एन्जॉय करेंगे. गानों की बात की जाए तो सालों बाद आपको आशा भोंसले की आवाज में गाना 'आसमां' सुनेंगे जो की बेहतरीन है. सुनिधि चौहान और ज्योति नूरा गाना 'उड़ता तीतर' भी आपको बहुत एंटरटेन करेंगे.

फिल्म का एक और वीक पॉइंट है और वह है प्रोस्थेटिक मेकअप! वैसे तो मेकर्स ने इस पर खासा काम किया है और इंटरव्यू के दौरान भी भूमि और तापसी ने कई बार अपने मेकअप के बारे में खुलकर बात की है और बताया है कि उन्हें कितने घंटे लगते थे. इस मेकअप को पहनने, निकालने और इस मेकअप के साथ शूटिंग करना भी किसी जद्दोजहद से कम नहीं था. लेकिन, कहीं कहीं हमें स्क्रीन पर मेकअप या तो बहुत ज्यादा लगा या बहुत कम. शुरू से लेकर अंत तक स्किन टोन में भी काफी फर्क दिखाई दिया.

फ़िल्म की लेंथ पहले हाफ की वजह से आपको लंबी लग सकती है पर दूसरे हाफ में यह अपनी पकड़ मजबूत करती है और आपको एंटरटेन करने का जिम्मा भी बहुत अच्छी तरह निभाती है. कुल मिलाकर फिल्म के पूरे मार्क्स जाते हैं तुषार हीरानंदानी को. यह कहानी कहीं ना कहीं आपको यह संदेश देती है कि औरतों को काम करने के लिए रोका ना जाए वह जो भी कुछ करना चाहती हैं उन्हें वह करने दिया जाए. हो सकता है कि वह आपका, आपके परिवार का और इस देश का नाम रोशन करें जैसा कि इस फिल्म में दिखाया गया है. चन्द्रो और प्रकाशी अपनी भतीजी को ट्रेन करती हैं जो कि लंदन में ओलंपिक्स में सिल्वर मेडल भी जीतती हैं. कई शहरों में इस फिल्म को टैक्स फ्री किया गया है जो कि बहुत अच्छा फैसला है.

पीपिंग मून 'सांड की आंख' को 3.5 मून्स देता है.

 

(Source: Peepingmoon)

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