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जॉन अब्राहम की फ‍िल्‍म ‘परमाणु’ का र‍िव्‍यू

कहानी की शुरुआत 1995 से होती है जब पीएमओ के एक जूनियर ब्यूरोक्रेट अश्वत रैना (जॉन अब्राहम) भारत के परमाणु परीक्षण पर एक रिपोर्ट तैयार करके सरकार को देते हैं. लेकिन उस रिपोर्ट को पूरी तरह से नहीं पढ़ पाने की एवज में परमाणु मिशन धरा का धरा रह जाता है. मिशन के फेल होने का पूरा ठीकरा अश्वत के सिर पर फोड़ दिया जाता है इसके बावजूद कि उसकी रिपोर्ट को किसी ने भी ठीक से नहीं पढ़ा था और कई चीजों को नजरअंदाज कर दिया था. इस वजह से अश्वत को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ता है और दिल्ली से वापस मसूरी की ओर रुख करना पड़ता है.

अश्वत की लाइफ में तब बदलाव आता है जब देश की सरकार बदल जाती है. एक दिन पीएम के प्रमुख सचिव हिमांशु शुक्ला (बोमन ईरानी) उनके परमाणु टेस्ट के आइडिया पर काम करने के लिए कहते हैं. जॉन अपनी बेस्ट टीम को चुनते हैं जिसमें अंबालिका (डायना पेंटी) भी होती हैं और मिशन पोखरण शुरू होता है.

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