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मुथैया मुरलीधरन की बायोपिक '800' को लेकर मुसीबत में फंसे विजय सेतुपति, मेकर्स ने कहा- 'फिल्म में किसी भी कम्यूनिटि के पक्ष में कोई राजनीतिक बयान नहीं है'

13 अक्टूबर को तमिल सुपरस्टार विजय सेतुपति की अपकमिंग फिल्म '800' का मोशन पोस्टर जारी किया गया. यह फिल्म मुथैया मुरलीधरन की बायोपिक है, जिसमें सेतुपति महान श्रीलंकाई स्पिनर के किरदार में है. वहीं जब से फिल्म का मोशन पोस्टर सामने आया है तब से विजय को सोशल मीडिया पर काफी आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है. सेतुपति के फैंस इस बात से नाराज हैं कि उन्होंने तमिल मूल के ऐसे क्रिकेटर की भूमिका को चुना है, जिन्होंने उन कथित अत्याचारों के खिलाफ कभी बात नहीं की, जो कि श्रीलंकाई सरकार द्वारा देश में तमिल लोगों की आबादी को नुकसान पहुंचाने से जुड़ा था. वहीं अब मेकर्स ने फिल्म को लेकर उड़ रही अफवाहों को खारिज करते हुए कहा कि, 'ये फिल्म किसी भी कम्यूनिटि के पक्ष में कोई राजनीतिक बयान नहीं देती है. यह पूरी तरह से एक स्पोर्ट्स बायोग्राफी फिल्म है.'

स्टेटमेंट के अनुसार, 'हम यह स्पष्ट करना चाहते हैं कि फिल्म महान क्रिकेटर मुथैया मुरलीधरन के बारे में है. ये एक स्पोर्ट्स बायोग्राफी फिल्म है. यह फिल्म एक ऐसे शख्स के बारे में है जो तमिल प्रवासी समुदाय से आते है और बाद में अपनी मेहनत से सबसे ज्यादा विकेट लेने वाला गेंदबाज बनते हैं. फिल्म में श्रीलंका में ईलम तमिलों के स्ट्रगल को कम नहीं दिखाया गया है और ना ही उनकी भावनाओं को आहत किया गया है. फिल्म किसी भी कम्यूनिटि के पक्ष में कोई राजनीतिक बयान नहीं है. फिल्म का मोटिव यंग जनरेशन को इंस्पायर करना है बस. हम सबको आश्वस्त करते हैं.'

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बता दें, अगले साल शूटिंग शुरू होने के साथ श्रीलंका, ग्रेट ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया में इसकी शूटिंग होगी और 2021 के अंत तक रिलीज होने की उम्मीद है.   


जानकारी के लिए बता दें कि, श्रीलंका में सिंहली और तमिल लोगों के बीच दशकों तक लड़ाई चली थी, जिसमें आखिर में श्रीलंकाई सरकार ने जीत हासिल की. भारत के तमिलनाडु के लोग तमिलों के पक्ष में खड़े रहते हैं. ऐसे में ये मामला उनकी भावनाओं से भी जुड़ा है. तमिलनाडु के लोग श्रीलंका के तमिलों के पक्ष मैं हमेशा खड़े रहते हैं. दरअसल, श्रीलंका में जब तमिलों पर सिंहलियों का अत्याचार बढ़ा, तो तमिल आबादी अपने लिए एक देश 'तमिल ईलम' की मांग की. इसके लिए दशकों तक सशस्त्र युद्ध भी चला. वी प्रभाकरन के नेतृत्व में तमिलों ने बाकायदा एक स्वायत्त देश की भी स्थापना कर ली थी, लेकिन पिछले दशक के आखिर में लिट्टे की हार हुई और प्रभाकरन की मौत हो गई. जिसके साथ ही तमिल देश का सपना भी टूट गया था.


(Source: India Today)

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