हिंदी सिनेमा में राजकुमार राव अब किसी परिचय के मोहताज नहीं. न्यूटन, स्त्री, मेड इन चाइना और ट्रैप्ड जैसी के फिल्मों के माध्यम से उन्होंने अभिनय की छाप छोड़ी है लेकिन सिटीलाइट में उनके काम ने लोगों के दिलों पर प्रभाव डाला. इंडिया कॉन्क्लेव 2019 के डे 1 के फाइनल सेशन में भारतीय सिनेमा के बदलते चेहरे पर बात की.
राजकुमार ने कहा, 'ऐसा नहीं है कि हम अभी कंटेंट बेस्ड सिनेमा बना रहे हैं. हम जिस शहर में रह रहे हैं, वह सत्यजीत रे, मृणाल रे और ऋत्विक घातक का सिनेमा है. हम जो अभी कर रहे हैं, ये लोग वह पहले कर चुके हैं. एक समेत था जब अनुराज कश्यप, विक्रमादित्य मोटवानी, दिबाकर बनर्जी, विशाल भारद्वाज जैसे फिल्म मेकर आए. वो हमारे सिनेमा को जड़ों तक लेकर गए. राइटर्स को भी धन्यवाद कहना चाहता हूं. राइटर्स की अहमियत भी अब समझ आ रही है.
राजकुमार ने इसके अलावा अपने बचपन के किस्सों को शेयर करते हुए कहा, 'मैं पूरा फिल्मी बच्चा था. मैं शैतान नहीं था लेकिन मैं हमेशा बाहर घूमता रहता और कुछ ना कुछ करता रहता. मेरी काफी लड़ाईयां होती थी. मैं फिल्मी हीरो था लेकिन मैं गुंडा नहीं था. तो मेरे दोस्तों की लड़ाई होती थी तो वे मुझे बुला लेते थे. मैं बस लड़ने के बहाने ढूंढता था और हीरो की तरह एंट्री लेने की कोशिश करता था. मैं जॉइन्ट फैमिली में रहता था और सबको फिल्मों से बड़ा लगाव था और मैं भी फिल्में देखकर बड़ा इमोशनल हो जाता था. मैंने सोच लिया था कि मुझे एक्टर ही बनना है और मैंने दूसरा ऑप्शन नहीं सोचा था.