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'अगर पैडमैन की वजह से देश की पांच प्रतिशत महिलाएं भी सेनेटरी पैड्स इस्तेमाल करने में सक्षम हो गईं तो मेरे लिए बहुत बड़ी उपलब्धि होगी.'9 फरवरी को रिलीज़ हुई फिल्म पैडमैन के प्रमोशन के दौरान अक्षय कुमार के इस कमेंट से ही उनकी नेक कोशिश झलकती है कि फिल्म के माध्यम से उन्होंने इंडिया में टैबू माने जाने वाले माहवारी जैसे विषय पर एक बड़ा मूवमेंट करने की ठानी थी.

फिल्म को लोगों ने हाथों हाथ लिया और हर तरफ फिल्म को पॉजिटिव रिस्पांस मिला.सुपरहीरो अक्षय कुमार ने इस मामले में जी जान लगा दी कि फिल्म के जरिए वो जो मैसेज समाज के हर तबके को देना चाहते हैं वो किसी न किसी तरह से पहुंच जाए.

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'महिला मजबूत तो देश मजबूत',पैडमैन में अपने निभाए किरदार से अक्षय ने जो सन्देश दिया है वो काबिले तारीफ है और इसे लंबे समय तक याद किया जाएगा.न सिर्फ फिल्म में उन्होंने ऐसे टैबू सब्जेक्ट पर मैसेज देने की कोशिश की बल्कि ऑफ स्क्रीन भी उन्होंने एक ऐसा मौका नहीं छोड़ा जहां वो हर तबके को इस सब्जेक्ट पर बताने से चूक गए हों.सिर्फ देश ही क्या,उनकी पत्नी ट्विंकल खन्ना ने तो विदेश में भी फिल्म के जरिए मैसेज देने में जी-जान लगा दी.उन्होंने ऑक्सफ़ोर्ड यूनियन में पीरियड से जुड़े मिथ्स और फैक्ट्स पर खुलकर बात की.

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वैसे.,ऐसा पहली बार देखने को मिला है कि किसी हिंदी फिल्म एक्टर ने एक फिल्म को एक मूवमेंट की तरह ट्रीट किया हो.और तो और कोई हिंदी फिल्म प्रोड्यूसर भी ऐसे सब्जेक्ट पर इंवेस्ट करने के लिए शायद ही कभी तैयार हुआ हो जो इस फिल्म के जरिए अक्षय ने लिया.आपको पता ही है,इंडिया के तथाकथित मॉडर्न कल्चर में जहां पढ़े-लिखे लोग रहते हैं,वहां भी पीरियड्स को एक रहस्यमयी टॉपिक की तरह दबाकर रखा जाता है,कोई इस पर बात नहीं करना चाहता,पुरुषों को ठीक से पता ही नहीं होता कि आखिर पीरियड्स किस बला का नाम हैं और तो और जहां की महिलाएं अगर सेनेटरी पैड्स खरीदने भी जाती हैं तो वह उसे या तो पॉलिथीन में लपेटकर लाती हैं या फिर न्यूजपेपर के अंदर छुपाकर दुकान से ऐसे लाती हैं जैसे कि वह कोई अछूत वस्तु है.

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और एक अक्षय हैं जो इस समाज में इस दबे-कुचले टॉपिक पर बात करने की हिम्मत जुटा पाए,ये काबिलेतारीफ है.उन्होंने ऐसे विषय पर फिल्म बना दी जो असंभव सा था.ऐसे में जब ये फिल्म आई तो इंडिया के लोगों को समझ ही नहीं आया कि आखिर हुआ क्या!अक्षय भी अगर वैसा ही करते जैसे बाकी लोग करते हैं और इस मुद्दे को छुपा हुआ ही रहने देते जैसे उनके घर में भी कभी होता तो इंडिया कभी ये जान ही नहीं पाता कि 82 परसेंट महिलाएं आज भी सेनेटरी नैपकिन का इस्तेमाल नहीं करती हैं,अब चाहे उनके पास पैसा नहीं होता या फिर उन्हें इसकी जानकारी नहीं है जो उन्हें पीरियड्स में राख और पत्तियां लगाकर ब्लड फ्लो कम करना पड़ता है.उनके ऐसा करने से उन्हें कैंसर और कई तरह के इन्फेक्शन होने का डर रहता है.

अक्षय ने केवल एक सिंपल सा सवाल खड़ा किया और पूछा कि जब देश की महिलाएं ही मजबूत नहीं तो फिर डिफेंस में पैसा लगाने का क्या सेंस है?जीएसटी भूल जाओ,क्या सेनेटरी नैपकिन फ्री नहीं होने चाहिए?अक्षय ने फिल्म के जरिए ये इशारा किया कि अब वक्त आ गया है कि हम इन पुरानी वर्जनाओं को तोड़कर आगे बढ़ें और लोगों को यह बताएं कि पीरियड्स बहुत ही सिंपल सी चीज हैं और एक नेचुरल प्रोसेस है.उन्होंने एक एंटरटेनिंग फिल्म बनाकर अपना सन्देश सबको पहुंचा दिया.मैं कई डाक्यूमेंट्री सिल्वर स्क्रीन पर शोकेस होते देखी हैं,तब लोग कुछ खाने पीने चले जाते हैं मगर जब पैडमैन स्टार्ट होती है तो सबकी आंखें खुली की खुली रह जाती हैं,इसका मतलब है कि फिल्म एक गहरी छाप छोड़ने में कामयाब साबित हुई है.

एक बार अक्षय ने सामाजिक सन्देश देने वाली फिल्मों के बारे में कहा था,मेरे अंदर हमेशा से फीलिंग है मगर मेरे पास इसे बनाने के पैसे नहीं हैं.जब मेरे पास पैसा होगा तो जरुर बनाऊंगा.वह कई बार ब्लंट बोलने से भी पीछे नहीं हटे.उन्होंने कहा,ये कोई स्टोन एज नहीं,माहवारी नेचुरल प्रोसेस है.अगर ये फिल्म माहवारी और मेनस्ट्रल हाइजीन पर अवेयरनेस फैलाने में कामयाब साबित होती है तो मुझे लगेगा की मैं अपने लक्ष्य को पाने में सफल हो गया.और वो इसमें सफल हो भी गए.अब लड़के भी मेडिकल स्टोर पर जाकर अपनी मां,बहन,गर्लफ्रेंड आदि के लिए सेनेटरी पैड खरीदने से नहीं हिचकिचाते और तो और सेलेब्रिटीज भी इसे पकड़कर फोटो खिंचवाने में नहीं शरमाते हैं.

अक्षय इसी से उत्साहित होकर कहते हैं,यही,मेरे हिसाब से पैडमैन का सबसे बड़ा अचीवमेंट है कि पुरुष और महिलाएं दोनों ही मेनस्ट्रल हाइजीन पर खुलकर चर्चा कर रहे हैं और सारी वर्जनाएं तोड़ रहे हैं. वैसे,अक्षय का ऐसा करना कोई सरप्राइज बात नहीं है,उन्होंने अपनी पिछली फिल्म टॉयलेट एक प्रेम कथा को भी पीछे छोड़ दिया जो कि ऐसे ही एक और टैबू टॉपिक को हैंडल करती दिखी थी.

उस फ़िल्म में खुले में शौच जैसे सीरियस इश्यू को खुलकर उठाया गया था.फिल्म सरकार के ही एक अभियान को विस्तार से दिखाने में कामयाब साबित हुई थी.ये शर्मनाक बात थी कि इंडिया की 54 परसेंट जनता खुले में शौच जाने को मजबूर थी और अब ये आंकड़ा थोड़ा सुधरकर 34 परसेंट पर जा पहुंचा है.उस फिल्म ने अमेरिका के जाने-माने बिजनेसमैन बिल गेट्स का भी ध्यान अपनी ओर खींचा था जिन्होंने इसकी तारीफ ट्विटर पर की थी.

वैसे,बात वापस करें पैडमैन की तो इस फिल्म ने केवल ऑडियंस को माहवारी के प्रति जागरूक ही नहीं बनाया बल्कि एक नई शुरुआत करने में भी मदद कर दी.पहली बार गांव-देहात में पैड बैंक लगाए गए जहां से महिलाएं फ्री में सेनेटरी नैपकिन ले सकती हैं.ये पैडमैन की टीम और महाराष्ट्र स्टेट गवर्नमेंट ने मिलकर शुरू किया.

महाराष्ट्र के लातूर,सोलापुर,जलगाँव और कई इलाकों में ऐसे 20 पैडडिस्पेंसर लगाये गए.वैसे इससे भी ज्यादा इन्स्पिरेशनल बात ये देखने को मिली जयपुर में जहां ग्यारहवीं क्लास के दो स्टूडेंट्स ने पैडबैंक की शुरुआत उन महिलाओं के लिए कर दी जो कि इन्हें खरीद नहीं सकती हैं.कुछ लड़कियों ने दस कलेक्शन पॉइंट्स बनाए जहां जो चाहे पैड दान कर सकता है.देखते ही देखते इससे पांच सौ महिलाएं जुड़ गईं.

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इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए ब्रह्ममुंबई म्युनिसिपल कोऑपरेशन ने मुंबई के पांच मैटरनिटी अस्पतालों पर वेंडिंग मशीन लगा दी जहां से पांच रुपये में पैड महिलाओं के लिए उपलब्ध है. इससे ज्यादा दिल को सुकून देने वाली खबर चेन्नई के सत्यम सिनेमा से सुनने को मिली जिन्होंने अपनी सभी चेन्स में फ्री सेनेटरी नैपकिन बांटने का इंतजाम किया.ये सिर्फ चेन्नई तक ही नहीं बल्कि उनकी अलग अलग शहरों की चेन्स में भी लागू हुआ.सत्यम देशभर में 52 सिनेमा चेन चलाता है और उनका ऐसा करना काबिलेतारीफ है.

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वैसे पैडमैन का मैसेज इंडिया की एक जेल तक में पहुंच गया.वेस्ट बंगाल की जलपाई गुड़ी सेंट्रल में बंद 20 महिलाओं ने सेनेटरी पैड्स बनाकर उन्हें ऐसी वेंडिंग मशीन में पहुंचाया जहां पैड्स मिलना बेहद मुश्किल था.उदयपुर के उन दो भाइयों का जिक्र करना भी जरुरी है जिन्होंने सेनेटरी पैड मेकिंग मशीन डिज़ाइन की जो कम दाम में पैड्स उपलब्ध कराती है.इसमें एक पैड की कीमत केवल 90 पैसे है.उत्तराखंड और बंगाल की सरकारों ने इस मशीन को खरीदने में बिलकुल नहीं देर लगाई.

इसके अलावा वेस्टर्न रेलवे वुमेन वेलफेयर आर्गेनाईजेशन ने एक काबिलेतारीफ एफर्ट किया.उन्होंने फीमेल स्टाफ के लिए नेपकिन डिस्पेंसर लगाए.वहीं मुंबई,बड़ोदरा,अहमदाबाद,राजकोट,भावनगर और रतलाम में सिक्कों से संचालित मशीनों का उद्घाटन हुआ.रेलवे मिनिस्टर पियूष गोयल ने भी आगे बढ़ते हुए कम दामों में पैड्स मिलने वाली मशीन हर रेलवे स्टेशन पर लगवाने का जल्द से जल्द निर्णय लिया.वहीं,न्यू दिल्ली म्युनिसिपल काउंसिल ने भी प्रस्ताव रखा कि वह नवयुग के सभी सेकेंडरी और सीनियर सेकेंडरी स्कूल्स में पैड वेंडिंग मशीन लगाना चाहता है.

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ये लिस्ट यहीं ख़त्म नहीं होती,केरल की एक आईटी कंपनी ने अपने एम्प्लोइज को सेनेटरी पैड डोनेट करने को कहा जिससे इससे जुड़े भ्रम तोड़े जा सकें.राजकोट जीएसटी ऑफिस ने स्कूल को पैड वेंडिंग मशीन गिफ्ट की तो वहीं गोवा की कंस्ट्रक्शन साइट्स पैड वेंडिंग मशीन लगाई गई.इतना ही नहीं,नागपुर,ओडिशा और मध्य प्रदेश की महिलाएं कम दामों में सेनेटरी नैपकिन बनाने का काम कर रही हैं.इन उदाहरणों की लिस्ट ख़त्म नहीं हो रही जिससे ये साफ़ है कि फिल्म एक मूवमेंट छेड़ने में कामयाब साबित हुई.सुपर हीरो अक्षय और उनकी टीम को सिर्फ कहना चाहेंगे -थैंक यू.

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