बॉम्बे हाई कोर्ट ने शुक्रवार को केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) को बच्चो की फिल्म 'चिड़ियाखाना' को यूनिवर्सल (यू) सर्टिफिकेट ना देने के कारण कड़ी फटकार लगाई है. बता दें कि इस फिल्म की कहानी बिहार के रहने वाले एक लड़के की है, जो फुटबॉल खेलने के अपने सपने को पूरा करने के लिए मुंबई जाता है. फिल्म को लेकर बॉम्बे हाई कोर्ट ने सीबीएफसी से कहा है कि ये आप तय नहीं करेंगे कि कौन क्या देखना चाहता है.
बॉम्बे हाइकोर्ट की बेंच में शामिल जस्टिस सत्यरंजन धर्माधिकारी और गौतम पटेल इस बात से खफा थे कि फिल्म को यू / ए सर्टिफिकेट क्यों दिया गया, जो चाइल्ड लेबर को दिखाता है.
बॉम्बे हाइकोर्ट की बेंच में शामिल जस्टिस एससी धर्माधिकारी और गौतम पटेल ने यह भी कहा "उन्हें पूरी तरह से सीबीएफसी की भूमिका को दोबारा परिभाषित करना होगा क्योंकि सीबीएफसी यह सोचकर बैठा है कि अकेले सिर्फ उसी के पास सभी लोगों के बारे में निर्णय लेने के लिए बुद्धिमत्ता है."
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सीबीएफसी ने फिल्म में कुछ सीन्स हटाने की शर्त रखी थी ताकि उसे यू/ए सर्टिफिकेट दिया जा सके. जिसके जवाब पर नाराज जस्टिस पटेल ने सीबीएफसी से कहा कि "अपने सिर को जमीन में दबा लें और ऐसा दिखाने की कोशिश करें जो है ही नहीं. बोर्ड यह कैसे कह सकता है कि वो फिल्म को यू/ए सर्टिफिकेट देगा. चाहे फिल्म से ऐसे सीन्स और अपमानजनक शब्द हटा दिए गए हों या फिर नहीं."
जस्टिस पटेल ने कहा, "हम हैरान हैं कि क्या सीबीएफसी के लोगों के खुद के बच्चे नहीं हैं. सीबीएफसी आप सर्टिफिकेशन बोर्ड हैं सेंसर बोर्ड नहीं. ये आप तय नहीं करेंगे कि कौन क्या देखना चाहता है."
(Source: PTI)