हाल ही में मेरी मुलाकात हुई नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी से. वो अपनी आने वाली एक फिल्म को प्रमोट कर रहे थे. मेरे साथ बैठे हुए वो बात कर रहे थे और बात करते करते अचानक उन्होंने एक सिगरेट निकाली. मैं बस उन्हें चुपचाप देख रहा था. वो सिगरेट निकालकर पीने का अंदाज बिलकुल सीधा साधा और सरल था लेकिन नवाज़ के लिए इतना कैजुअल था जैसे कोई चरसी अपना जॉइंट बना रहा हो - बड़े आराम से और बिना किसी मेहनत मशक्कत के. बिलकुल सिंपल और साधारण सा इंसान, लेकिन मानो उसके हर काम में और हर अदा में एक स्टाइल छुपा हुआ हो. मैं नवाज़ुद्दीन को बॉलीवुड का एल पचीनो मानता हूँ. दोनों में ही कुछ बातें एक जैसी लगती हैं. ये दोनों ही कम बोलने वाले, कुछ कमजोर से दिखने वाले छोटे कद के एक्टर्स हैं, जिन्होंने इंडस्ट्री के तमाम सफल और मशहूर, अच्छे दिखने वाले हीरो, ग्रीक गॉड्स और हैंडसम डूड्स के बीच में अपनी एक अलग पहचान और जगह बनायी. ये दोनों ही पावरहाउस एक्टर्स हैं जो थिएटर से आये. और उनका काम कभी पैसे के लालच में नहीं हुआ. उनका निभाया हर किरदार आपको एक हैंगओवर दे जाता है, जिसका नशा उनकी अगली रिलीज तक बिलकुल नहीं उतरता. और फिर हर नयी रिलीज में एक नया किरदार, एक नया शोस्टॉपपर एक्ट.
नवाज़ मुझे यह बताने में बिलकुल भी नहीं हिचकिचाए कि वो उन पत्रकारों की बहुत इज़्ज़त करते हैं जो आज भी ओल्ड-फैशन में इंटरव्यू लेते हैं - जैसे कि में उनका इंटरवयोव ले रहा था - महज़ एक कलम और कागज़ के साथ. उन्होंने मुझसे कहा कि "जब तक तुममें तुम्हारी कला के लिए जूनून है, काम करते रहो." मैं इस शख्स कि सादगी पर फ़िदा हो गया. उत्तर प्रदेश के एक छोटे से कस्बे से निकला यह इंसान गरीबी में सात भाइयों और दो बहनों के बीच में पलकर बढ़ा हुआ. वहां के मेलों में लोक कलाकारों को देखकर इसको भी उनके जैसा बनने की इच्छा जाग उठी. और फिर कब वो इच्छा जूनून बनकर इस शख्स को मुंबई खींच लायी, पता ही नहीं चला. उन्होंने बताया कि, "मैं बस परफॉर्म करना चाहता था, एक्टिंग करना चाहता था. मैं एक ऐसा एक्टर बनना चाहता था जो लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींचे, जो लोगों को हँसा सके, रुला सके और उनका मनोरंजन कर सके."
एक महज़ 5-फुट-6-इंच का आम सा दिखने वाला यह इंसान कैसा जादूगर है जो आज बॉलीवुड में अपनी एक ईर्ष्याय स्थिति का लुत्फ़ ले रहा है. न जाने कितने जलते होंगे इससे. लेकिन अगर किसी को जलन है, तो पहले इस शख्स की मेहनत पर भी नज़र डाली जाए. फिल्म "सरफ़रोश" या "मुन्ना भाई एमबीबीएस" में नवाज़ को मिले सिर्फ एक-एक मिनट के रोल को देखकर आज कोई इनकी हैसियत का अंदाजा लगाए. हर चीज़ सिर्फ किस्मत से नहीं मिलती. नवाज़ ने बताया, "मैं अपने काम को लेकर ईमानदार हूँ. मैं खुद के लिए एक्टिंग करता हूँ, दूसरों को इम्प्रेस करने के लिए नहीं. मैं इन अलग अलग किरदारों से खुद को तलाशने की कोशिश करता हूँ. किसी को फॉलो करने से अच्छा है अपनी असली पहचान पर टिके रहो."
2012 में "गैंग्स ऑफ़ वासेपुर" के बाद नवाज़ की चौखट पर उन्ही लोगों की बाढ़ आ गयी थी जिन्होंने किसी ज़माने में नवाज़ के लिए अपने दरवाज़े बंद कर दिए थे. उन्हें लगभग 200 स्क्रिप्ट्स के ऑफर्स आये, लेकिन वो मानते हैं कि अगर उन्होंने उस समय वो ऑफर्स ले लिए होते तो वो आज तक यहाँ नहीं पहुँच पाए होते. नवाज़ का मानना है कि एक समय आता है जब आपको सोच समझकर कदम उठाना होता है. इंडस्ट्री में कई लोगों का पतन देखकर उन्होंने समय के साथ यह सबक लिया.
नवाज़ुद्दीन ने हाल ही में "रईस", "मॉम" और "मुन्ना माइकल" में झंडे गाड़े. और अब "बाबूमोशाय बन्दूकबाज़" में लीड रोल. इनमें से किसी भी फिल्म में आपको नवाज़ का कोई भी रोल या किरदार रिपीट होता हुआ नहीं दिखेगा. लेकिन इस बार जो बात सुर्खियों में है, वो हैं "बाबूमोशाय बन्दूकबाज़" में नवाज़ के इंटिमेट सीन्स. शायद किसी को नहीं लगता होगा कि नवाज़ ऐसे सीन कर सकते हैं. पर उन्होंने सबको चौंका दिया है. एक गन्दी बनियान, अजीब सी लुंगी, कंधे पर एक ट्रांजिस्टर जिस पर "विविध भारती" प्रोग्राम चल रहा है, कमर में ठुंसी हुयी पिस्तौल, हाथ में डालडा का टिन का डब्बा और सुबह हल्का होने के लिए कदम खेतों की ओर बढ़ते हुए. आपको यह करैक्टर किस एंगल से एक हीरो का नज़र आता है? लेकिन नहीं जनाब, टीज़र से ही लोग इसके दीवाने हुए पड़े हैं. और उस पर नवाज़ के करियर का पहला लिप-लॉक सीन. नवाज़ बताते हैं "मुझे इस रोल के लिए प्रेरणा जेम्स बॉन्ड से मिली. जब मैंने यह स्क्रिप्ट पढ़ी, तो मेरे दिमाग में सिर्फ बॉन्ड था. हाँलांकि कपड़ों और स्टाइलिंग में बाबूमोशाय का बॉन्ड से दूर दूर तक कोई मुकाबला नहीं है लेकिन मैं ऐसी स्टाइलिंग में भी बाबूमोशाय को कूल दिखाना चाहता था."