मैं कंगना रनौत का दोस्त नहीं हूं और ना ही उसका फैन हूं, मैं सिर्फ अच्छे सिनेमा का एक भक्त हूं. मैं ये मानता हूं कि वह बेमिसाल अभिनेत्री हैं. बॉलीवुड में अब तक 11 साल के अपने सफर में उन्होंने 29 फिल्में की हैं - कुछ नेशनल अवॉर्ड के लेवल की, तो कुछ बेतुकी भी. लेकिन एक कलाकार का सफर ऐसा ही होता है. कभी उसका काम ऑडियंस के सर चढ़कर बोलता है तो कभी सबको निराश भी करता है.
ये कहावत तो हम सब बचपन से ही सुनते आ रहे हैं कि 'सचिन तेंदुलकर भी हर मैच में सेंचुरी नहीं मार सकते!' वो शुरुआती दौर याद कीजिये जिसमें कंगना ने 'गैंगस्टर', 'राज़', 'वंस अपॉन ए टाइम इन मुंबई' और 'फैशन' जैसी फिल्में दीं - फुल पैसा वसूल और पॉवर पैक्ड परफॉर्मेंसेज. दुर्भाग्य से, कुछ लोग उसे गंभीरता से ले गए और यही वजह है कि पर्दे के पीछे की कंगना की निजी कहानी दुनिया के सामने आई - जो कि स्क्रीन की कहानियों के मुकाबले कहीं ज़्यादा सनसनीखेज थी. कंगना अचानक से एक डार्क करैक्टर की तरह सामने आयीं - बिलकुल अप्रत्याशित और बेबाक.
जब जब मेरे रिपोर्टर्स कंगना से जुड़ी कोई ऐसी स्टोरी करते थे जो कंगना को पसंद न होती, तो वो सीधे मुझे फ़ोन करतीं और झगड़ती भी. लेकिन मुझे उनका गुस्सा भी भाता था. वो बच्चों की तरह बहस करती थीं लेकिन अपना केस बाहय मज़बूती और बुद्धिमानी से सामने रखती थीं, और मजबूरन मुझे अपने रिपोर्टर्स की क्लास लेनी पड़ती थी. एक बार किसी ने एक स्टोरी में गलती से कंगना की उम्र गलत छाप दी थी. बस फिर क्या, वो दनदनाती हुयी मेरे ऑफिस आ गयीं. वो उन दिनों बहुत फुर्सत में हुआ करती थी. उस दीं वो अपना पासपोर्ट भी साथ लायी थीं जिससे उनकी सही उम्र का प्रमाण दिया जा सके. दुर्भाग्य से में उस दीं ऑफिस में नहीं था, तो उनसे मुलाक़ात नहीं हो पायी.
लेकिन वो कितनी बेबाक हैं यह अब दुनिया जान चुकी है. यहां जो फोटो आप देख रहे हैं वो ख़ार में कॉर्नर हाउस में ली गई है. यहां कंगना की आने वाली फिल्म 'सिमरन' के सेलिब्रेशन में. शैम्पेन ब्रंच आयोजित किया गया था. कंगना वाइन पी रही थीं और मैं एक बीयर का लुत्फ़ ले रहा था. वो अचानक मेरे पास आईं और बोलीं 'तुमने ही हिंदुस्तान टाइम्स ब्रंच के लिए ऋतिक रोशन पर कवर स्टोरी की थी न?' यह सच था, लेकिन उसमें कंगना का तो कोई ज़िक्र नहीं था. शायद इसी से उन्हें ताज्जुब हुआ हो. जबसे उन दोनों के रिलेशन्स ख़राब हुए तबसे कंगना ने ऋतिक को अपना फ़ेवरेट हॉबी हॉर्स बना लिया है. अब मुझे नहीं पता कि अपने और ऋतिक के बारे में जो भी कंगना ने कहा वो कितना सच था और कितना झूठ. और सच तो यह है कि मैं जानना भी नहीं चाहता. लेकिन कई लोगों को इससे फर्क पड़ता है क्यूंकि कंगना के दावे 'लव, सेक्स और धोखे' से भरपूर हैं. एक बड़ी रीडरशिप और ऑडियंस है जो कंगना के बदले की कहानी के बारे में जानना चाहती है. यह कहानी उन सभी एक्टर्स और डायरेक्टर्स को घेरे में ले लेती है जिनके साथ कंगना ने आज तक काम किया या डेट किया या जिनको खुद कंगना पसंद करती थीं. और ऐसी सेंसेशनल खबरें ऑडियंस को खूब भाती हैं. लोगों को भी मज़ा आता है ऐसी गॉस्पिस में जो स्कैंडल के बारे में हों, जो की-होल से झांकती हों या दरवाज़े पर काम लगाकर सब सुनती हों. और इस प्रक्रिया में अगर किसी एक्टर की पेंट उतर जाए, या कोई एक्ट्रेस अपनी आत्मा तक नग्न हो जाए - तो सोने पर सुहागा है जनाब.
यह बातें मेरी समझ में नहीं आतीं. बड़े-बड़े मीडिया हाउस और टीवी चैनल्स कंगना को बुला रहे हैं कि वो जनता के सामने लाइव आकर अपना दिल खोलकर रख दें. ऐसे मेलोड्रामा की तो सच में कंगना क्वीन हैं. उन्हें ऐसा करने में कोई शर्म भी नहीं है. वो किसी को नहीं बख्श रही हैं. जिस किसी का कोई भी वास्ता रहा हो उनके साथ, वो सबको नर्क तक घसीट कर ले जाएंगी. और वो एक बात को बार बार हर जगह नहीं दोहरातीं. उनके पास हमेशा कुछ न कुछ मसाला बचा रहता है. उन्हें हर बार एक नया शो चाहिए, एक नया मंच चाहिए एक नया मीडिया चाहिए जो उनकी बातें उछाले - और यह सब तब तक जब तक किंगडम या स्टारडम खुद चलकर उन तक वापस न आ जाए.
और अगर ऐसा नहीं होता, तो फिर सोशल मीडिया है न. आरोप पर आरोप लग रहे हैं और रोज नयी कहानियां बन रही हैं. मैंने जब उनसे मुलाकात की, तो मैं नहीं जानना चाहता था कि किसने किसके साथ क्या किया. मेरे इंटरव्यू में कंगना एक सेक्सी बॉलीवुड गॉडेस के तौर पर नहीं आयीं थीं. हां, वो आकर्षक हैं. लेकिन मैंने उनके हिमाचल प्रदेश में उनसे ज़्यादा आकर्षक लड़कियां देखी हैं. हां मैं यह मानता हूं कि बी ग्रेड की फिल्मों से लेकर तीन नेशनल अवॉर्ड्स तक का सफर उन्होंने अपने लुक्स या अपने पास्ट रिलेशनशिप्स के दम पर तय नहीं किया. तो मेरे इंटरव्यू में एक खूबसूरत और विवादित एक्ट्रेस नहीं, बल्कि टैलेंट से भरपूर एक एक्ट्रेस बैठी थी.
साल 2006 में 'गैंगस्टर' के सेट पर डायरेक्टर अनुराग बासु ने कंगना से कहा था, 'कभी अपनी नाकामयाबी के लिए बहाने मत बनाना. वही करना जो सही लगे.' और हाल ही में विशाल भरद्वाज ने भी 'रंगून' बनाते समय उनको यही राय दी कि 'जो तुम्हारे बारे में नकारात्मक बोल रहे हैं उन्हें नजरअंदाज करो, और अपनी बेहतरीन परफॉर्मेंस से उन्हें शूट करो.' मैं भी चाहता हूं कि कंगना इस सलाह को मानें. उन्हें ऐसा लगता है कि उनके टॉप पर होने की वजह से लोग उन्हें टारगेट करते हैं. जिस मुकाम को पाने में उन्हें 10 साल लगे, अब उस पोजीशन को बनाये रखने के लिए उन्हें मेहनत करनी चाहिए -
और ऐसा सिर्फ फिल्मों में अपने काम और बेहतरीन परफॉर्मेंसेज के दम पर ही हो सकता है, न कि मीडिया में बेतुकी बयानबाजी से. बेबाक बयानबाजी के रास्ते का कोई अंत नहीं है, लेकिन अच्छे सिनेमा और बेहतरीन परफॉर्मेंसेज से कई नए आयाम खोजे जा सकते हैं. अब देखने वाली बात यह होगी कि 'सिमरन' जनता के दिलों पर कैसा जादू करती है.