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फ्लाइंग सिख मिल्खा सिंह ने दुनिया को कहा अलविदा, कोरोना से संक्रमित होने के बाद बिगड़ी थी तबियत

फ्लाइंग सिख के नाम से फेमस स्प्रिंटर मिल्खा सिंह ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया है. वह देश के पहले ट्रैंक ऐंड फील्ड सुपर स्टार थे. मिल्खा सिंह ने शुक्रवार (18 जून 2021)  रात को चंडीगढ़ में अंतिम सांस ली. मिल्खा सिंह पिछले महीने कोरोना वायरस से संक्रमित हो गए थे, हालाकिं बाद में मिल्खा सिंह ने कोविड को मात दे दी थी, लेकिन पोस्ट कोविड कॉम्प्लीकेशन्स के चलते उनकी तबीयत काफी खराब हो गई थी. खबरों के मुताबिक उन्हें फिर बुखार आ गया था और उनका ऑक्सीजन लेवल भी काफी कम हो गया था. बता दें कि, 5 दिन पहले ही उनकी पत्नी निर्मल मिल्खा सिंह का देहांत भी कोरोना की वजह से हो गया था. मिल्खा सिंह के जाने से पूरे देश में शोक की लहर है.
 

मिल्खा सिंह को 3 जून को पीजीआई में भर्ती कराया गया था. इससे पहले उनका घर पर ही इलाज चल रहा था लेकिन ऑक्सीजन लेवल कम होने पर अस्पताल ले जाया गया. हालांकि वे बुधवार को कोरोना नेगेटिव आ गए थे. इसके बाद उन्हें कोविड आईसीयू से सामान्य आईसीयू में भेज दिया गया था. लेकिन इस बीमारी के चलते हुई कॉम्प्लीकेशन्स के कारण उनकी हालत गंभीर हो गई थी. इसके तहते शुक्रवार को उनका ऑक्सीजन स्तर कम हो गया था और बुखार आया था. अस्पताल के सूत्रों ने बताया था कि उनकी हालत गंभीर हो गई थी.

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बता दें कि, मिल्खा सिंह का जन्म 20 नवम्बर 1929 को गोविंदपुर, मुजफ्फरगढ़ शहर, पंजाब प्रांत, ब्रिटिश भारत जो अब मुजफ्फरगढ़ जिला, पाकिस्तान में पड़ता हैं, में हुआ था. उन्होंने अपनी पढ़ाई की शुरुआत पाकिस्तान के एक गांव के स्कूल में हुई थी और करीब पांचवी कक्षा तक उन्होंने पढ़ाई की थी. मिल्खा सिंह बचपन में जिस स्कूल जाते थे वह उनके घर से 10 किलोमीटर दूर था. इसलिए वह रोजाना घर से स्कूल और स्कूल से घर 10-10 किलोमीटर दौड़ा करते थे.

 मिल्खा सिंह ने अपने करियर के दौरान करीब 75 रेस जीती थीं. वह 1960 ओलंपिक में 400 मीटर की रेस में चौथे नंबर पर रहे. उन्हें 45.73 सेकंड का वक्त लगा था. उनका यह कारनामा 40 साल तक रिकॉर्ड रहा था. मिल्खा सिंह को बेहतर प्रदर्शन के लिए 1959 में पद्म अवार्ड से सम्मानित किया गया. इसके अलावा 2001 में उन्हें अर्जुन अवॉर्ड से भी सम्मानित दिया गया, लेकिन उन्होंने इसे स्वीकार नहीं किया था. मिल्खा सिंह ने चार बार एशियन गेम्स में गोल्ड मेडल जीता है. साथ ही वह 1958 कॉमनवेल्थ गेम्स के चैंपियन भी हैं. 
मिल्खा सिंह के जीवन पर एक बायोपिक फिल्म भी बनी, जिसके लिए रॉयल्टी के तौर पर उन्होंने सिर्फ एक रुपये की मांग की थी.

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