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जब अमिताभ बच्चन ने पिता के सामने उनकी कविता पढ़ी...

ये 'बच्चन' की कहानी है जो आपको कहीं और सुनने नहीं मिलेगी. ये अमिताभ बच्चन की नहीं बल्कि उनके कवी पिता हरिवंश राय बच्चन की कहानी है जिनकी आज 100वीं पुण्यतिथी है.

1996 की वो शाम आज भी मुझे याद है जब मैं हरिवंश राय बच्चन से मिला था. उस दिन वो अपना 89वां जन्मदिन मना रहे थें. मैं मुंबई के जुहू स्थित 'प्रतीक्षा' बंगले में उनसे मिलने गया जहां वो शॉल लपेटे एक सोफे पर बैठे हुए अमिताभ बच्चन की फिल्म देख रहे थे. मुझे लगा ये एक पिता के लिए जन्मदिन एक तोहफा है लेकिन अमिताभ बच्चन ने मुझे बताया कि हर शाम उनके पिता ऐसा करते है.

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जैसा कि मिस्टर बच्चन को पिता से बहुत लगाव था. हरिवंशराय बच्चन की हालत बहुत गंभीर थी और उन्हें मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में भर्ती कराया गया था और एक अच्छे बेटे की तरह अमिताभ दिन-रात पिता की देखभाल करने में लगे रहे.

मैं एक रात अमिताभ बच्चन के साथ अस्पताल में मौजूद था और हरिवंश राय आईसीसीयू में लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर थें. अस्पताल की कुर्सी पर बैठकर मिस्टर बच्चन मुझे पिता हरिवंश राय और उनकी कविताओं के बारें में बता रहे थें. इत्तेफाक से अगली शाम अमिताभ, ब्रिर्टिश कौंसिल के लिए नेशनल आर्ट ऑफ गैलरी में वही कविता पढ़ रहे थें और उन्होंने मुझे अपने साथ चलने के लिए कहा. मैं वो शाम कभी भूल नहीं सकता, जिस तरह से उन्होंने उस कविता को पढ़ी. उनकी आंखों में एक नमी थीं. में उनसे बहुत प्रभावित हुआ.

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अगली सुबह जब वो उठें तो घर खाली था. जया बच्चन गोविन्द निहलानी के शो हजार चौरासी की मां की शूटिंग के लिए US गई थीं. बेटी श्वेता की शादी हो गई थीं और दिल्ली में थी और बेटा अभिषेक बच्चन शायद स्कूल में थें. घर के नौकर भी तब तक आए नहीं थें. अचानक से अमिताभ बच्चन को पिता की या आई. उन्होंने अपनी गाड़ी निकाली और पहली बार खुद कार ड्राइव की.

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अमिताभ बच्चन अस्पताल पहुंच आईसीसीयू में चले गए और डॉ. हरिवंश राय बच्चन के लाइफ सपोर्ट सिस्टम को बंद देख आश्चर्यचकित हो गए. पिताजी ने पूछा, 'कविता पढ़ना कैसे चल रहा है? बेटे ने जवाब दिया, 'ठीक है'. इसके बाद अमिताभ ने हरिवंश राय बच्चन से पूछा कि उनकी कविता कैसी थी, पिता ने जवाब दिया, 'ठीक है'. इसके बाद अस्पताल के डॉक्टर फारूक उदडिया ने उन्हें डिस्चार्ज कर दिया. अस्पताल से निकलने के कुछ दिन बाद अमिताभ ने मुझे अपने पिता की ऑटोबायोग्राफी भेजी जिसपर डॉक्टर बच्चन के ऑटोग्राफ भी थें. मुझे लगता है कि मुझे ऑटोग्राफ देने के लिए ये आखिरी वक्त था जब उन्होंने अपने हाथों में पेन उठाया था.

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