अब भले ही अमिताभ बच्चन कई भव्य बंगलों के मालिक हो। उनके पास ‘प्रतीक्षा' से लेकर ‘जलसा' नाम के बंगले हो। पर एक दौर में उनके मम्मी-डैडी श्री हरिवंश राय बच्चन और मां तेजी जी को घर बनाने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ी थी। उन्होंने दिल्ली में घर बनवाया था। इसका नाम है सोपान। कहते हैं कि ये बच्चन कुनबे का पहला घर है। अब इस कोठी के पिछले दिनों अमिताभ बच्चन ने बेच दिया।
अब गुलमोहर पार्क के पड़ोसियों ने बताया कि अब अमिताभ बच्चन ने सोपान को बेच दिया है। यहां पड़ोस में रहने वाले बडेर परिवार ने इस डेढ़ मंजिली कोठी को पिछले दिनों खरीद लिया है। अब यहां सोपान लिखा बोर्ड हटा दिया गया है। तोडफ़ोड़ जारी है, जहां कविताओं की महफिल सजती वहां मलबा पसरा है। बडेर परिवार तो खुलकर कुछ नहीं बोला लेकिन जानकारी में आया है करेाड़ों में इस कोठी को इस उद्यमी परिवार ने अपने बेटे के लिए आशियाना बनाने के लिए खरीदा है। नगर निगम में नए नक्शे के लिए आवेदन दे दिए हैं और फिर कोने वाला अमिताभ बच्चन का घर भी लोग भूल जाएंगे। हरिवंश राय बच्चन के शब्दों में कहें तो, मैं एक जगत को भूला, मैं भूला एक जमाना....।
सोपान की कहानी
जब अमिताभ बच्चन की माँ तेजी बच्चन आकाशवाणी के लिए बतौर फ्रीलांस जर्नलिस्ट काम थीं तब दिल्ली के गुलमोहर पार्क की पॉश पत्रकार कॉलोनी सोसायटी में उन्हें 500 गज का प्लॉट आवंटित किया था। घऱ के लिए प्लाट 1968 में उन्हें मिला। घर बना 1972 में,तब तक अमिताभ बच्चन फिल्मों में करियर बनाने के लिए मायानगरी का रुख कर चुके थे।
उस दौर में गुलमोहर पार्क के सी ब्लाक के तीन मंजिला घर में बच्चन जी और तेजी ही रहते थे। ये बंगला तेजी जी के नाम पर लिया गया था। क्योंकि इस पत्रकारों की कालोनी में किसी गैर-पत्रकार को प्लाट नहीं मिल रहे थे। तब जब कुछ स्थान खाली रह गए तो आकाशवाणी से जुड़े लोगों को इस सोसायटी से जोड़ा है। तब जाकर तेजी जी को इस सोसायटी की मेंबरशिप मिली। उस दौर में वह आकाशवाणी में नौकरी करती थीं। जानने वाले कहते हैं कि बच्चन परिवार का ये पहला घर था। इसलिए ये खास था।
1979 में डान फिल्म की अपार सफलता के बाद अमिताभ बच्चन अपने मम्मी-डैडी को अपने साथ मुंबई ले गए। तब से इस बंगले में कोई रहता तो नहीं है। हां, बीच-बीच में एक केयरटेकर आकर इसकी सफाई वगैरह देख लेता है। हां, एक दौर में सारा बच्चन कुनबा इधर आकर दिवाली मनाता था।
सोपान साक्षी है तमाम कवि गोष्ठियों का और दूसरे साहित्यिक आयोजनों का। इधर लगातार बच्चन जी कवि गोष्ठियां आयोजित करते थे। इसमें नवोदित और वरिष्ठ सभी कवि भाग लेते थे। सोपान में आने वाले सभी लोगों को भरपूर चाय-नाश्ता खिलाने की जिम्मेदारी तेजी जी के ऊपर रहती थी। वे इस काम को बेहद मन से करतीं थीं।