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 पिता के गुजर जाने के बाद Lata Mangeshkar ने खुद उठाई पूरे परिवार की जिम्मेदारी, एक वक़्त के खाने तक के लिए संघर्ष करना पड़ा था 

देश की स्वर कोकिला और भारत रत्न से सम्मानित सिंगर लता मंगेशकर का आज निधन हो गया। कोरोना संक्रमण के कारण 92 साल की लता मंगेशकर को मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में भर्ती किया गया था। कई डॉक्टरों की देखरेख में इलाज चलता रहा। आज फिर उनकी तबियत बिगड़ी और उन्हें वेंटिलेटर पर शिफ्ट किया गया लेकिन उनकी जान नहीं बचाई जा सकी। उनके निधन से बॉलीवुड, समूचे देश और विश्व में उनके करोड़ों प्रशंसकों में शोकाकुल हैं।

यूं तो पूरा विश्व ही उनका परिवार था लेकिन जिस फैमिली में जन्मीं और पली-बढ़ीं उसके बारे में जानेंगे। लता मंगेशकर तीन बहनों और एक भाई में सबसे बड़ी थीं। इनके कदमों पर चलकर ही लता की बहनों व भाई ने संगीत की दुनिया में अपना दायरा बढ़ाया।

पिता के गुजर जाने के बाद खुद उठाई पूरे परिवार की जिम्मेदारी

स्वर साम्राज्ञी, बुलबुले हिंद और कोकिला जैसे सारे विशेषण जो लता मंगेशकर के लिए गढ़े गए, वे हमेशा ही नाकाफी लगते रहे हैं। महाराष्ट्र में एक थिएटर कंपनी चलाने वाले अपने जमाने के मशहूर कलाकार दीनानाथ मंगेशकर की बड़ी बेटी लता का जन्म 28 सितंबर 1929 को इंदौर में हुआ। मधुबाला से लेकर माधुरी दीक्षित और काजोल तक हिंदी सिनेमा के स्क्रीन पर शायद ही ऐसी कोई बड़ी अभिनेत्री रही हो जिसे लता मंगेशकर ने अपनी आवाज उधार न दी हो।

जब भारत छोड़ो आंदोलन अपने शीर्ष पर था तब 1942 में सिर्फ 13 वर्ष की लता को छोड़कर उनके पिता दुनिया से विदा हो गए, उनके कंधों पर पूरे परिवार का खर्च चलाने की जिम्मेदारी आ गई। उस्ताद अमान अली खान और अमानत खान से संगीत की शिक्षा लेने वाली लता को रोजी-रोटी चलाने के लिए संघर्ष शुरू करना पड़ा, उन्होंने 1942 में ही एक मराठी फिल्म 'किती हासिल' में गाना गाकर अपने करियर की शुरूआत की लेकिन बाद में यह गाना फिल्म से हटा दिया गया। इसके पांच साल बाद भारत आजाद हुआ और लता मंगेशकर ने हिंदी फिल्मों में गायन की शुरूआत की, 'आपकी सेवा में' पहली फिल्म थी जिसे उन्होंने अपने गायन से सजाया लेकिन उनके गाने ने कोई खास चर्चा हासिल नहीं की।

लता का सितारा पहली बार 1949 में चमका और ऐसा चमका कि उसकी कोई मिसाल नहीं मिलती, इसी वर्ष चार फिल्में रिलीज हुईं 'बरसात', 'दुलारी', 'महल' और 'अंदाज'। 'महल' में उनका गाया गाना 'आएगा आने वाला आएगा' के फौरन बाद हिंदी फिल्म इंडस्ट्री ने मान लिया कि यह नई आवाज बहुत दूर तक जाएगी, यह वह जमाना था जब हिंदी फिल्मी संगीत पर शमशाद बेगम, नूरजहां और जोहराबाई अंबालेवाली जैसी वजनदार आवाज वाली गायिकाओं का राज चलता था।

लता मंगेशकर को शुरू के वर्षों में काफी संघर्ष करना पड़ा कई फिल्म प्रोड्यूसरों और संगीत निर्देशकों ने यह कहकर उन्हें गाने का मौका देने से इनकार कर दिया कि उनकी आवाज बहुत महीन है। ओपी नैयर को छोड़कर लता मंगेशकर ने हर बड़े संगीतकार के साथ काम किया, मदनमोहन की गजलें और सी रामचंद्र के भजन लोगों के मन-मस्तिष्क पर अमिट छाप छोड़ चुके हैं। पचास के दशक में नूरजहां के पाकिस्तान चले जाने के बाद लता मंगेशकर ने हिंदी फिल्म पार्श्वगायन में एकछत्र साम्राज्य स्थापित कर लिया, कोई ऐसी गायिका कभी नहीं आई जिसने उनके के लिए कोई ठोस चुनौती पेश की हो।

बेमिसाल और सर्वदा शीर्ष पर रहने के बावजूद लता ने बेहतरीन गायन के लिए रियाज के नियम का हमेशा पालन किया, उनके साथ काम करने वाले हर संगीतकार ने यही कहा कि वे गाने में चार चांद लगाने के लिए हमेशा कड़ी मेहनत करती रहीं। लता को सबसे बड़ा अवॉर्ड तो यही मिला है कि अपने करोड़ों प्रशंसकों के बीच उनका दर्जा एक पूजनीय हस्ती का है। बता दें कि फिल्म जगत का सबसे बड़ा सम्मान दादा साहब फाल्के अवॉर्ड और देश का सबसे बड़ा सम्मान 'भारत रत्न' लता मंगेशकर को मिल चुका है।

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