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'ये मुलाक़ात एक बहाना है' मिट्ठू और राज सिंह डूंगरपुर की प्रेम कहानी, सुनिए आखिर क्यों लता मंगेशकर नहीं बन पायीं प्रिंसेस ऑफ डूंगरपुर 

   “आ लौट के आजा मेरे मीत तुझे मेरे गीत बुलाते हैं, तूने भली रे निभाई प्रीत तुझे मेरे गीत बुलाते हैं”

लता मंगेशकर, शायद ही कोई एशियाई व्यक्ति कहता होगा कि उसने लता के गाने कभी नहीं सुने। यहां एशियाई इसलिए लिखा गया है क्योंकि भारत देश में तो बच्चा-बच्चा लता से वाकिफ है और हो भी क्यों ना? आज़ादी बाद जन्में सभी भारतीय लता के गीत सुनकर बड़े हुए हैं। आज भले लता ने गाना लगभग बंद कर दिया हो लेकिन आज की जेनरेशन की भी वह फेवरेट सिंगर हैं। लता  की आवाज़ पाकिस्तान, बर्मा, नेपाल और भूटान से लेकर रूस के शहरों में भी गूंजती है क्योंकि रशियन लोग हमेशा से भारतीय फिल्मों के शौकीन रहें हैं।

लता का बचपन अत्यंत गरीबी में बीता। पिता का साया बचपन में ही उठ गया। जिसके बाद पांच भाई-बहनों और घर की ज़िम्मेदारी लता पर आ गई। वह बचपन से मशहूर फिल्मकार और एक्टर के एल सहगल को पसंद किया करती थीं। यह कहने से भी नहीं हिचकिचाती थी कि जब कभी वह फिल्म इंडस्ट्री में बड़ी स्टार बनी तो शादी तो सिर्फ के एल सहगल से ही करूंगी लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंज़ूर था। बचपन में लता ने भी नहीं सोचा होगा कि उनकी ज़िंदगी कुछ इस तरह से करवट लेगी कि वह ज़िंदगीभर शादी ना करने की अटूट कसम ले लेंगी।

क्रिकेट से लता का प्रेम
भारतीय क्रिकेट जगत में राजसिंह डुंगरपुर का कितना बड़ा स्थान है, यह पूरे क्रिकेट जगत को भली-भांति पता है। वह 13 साल तक चयन समिति के प्रमुख रहे और दो बार बीसीसीआई क्रिकेट बोर्ड के अध्यक्ष भी रहे। इसके अलावा चार बार भारतीय टीम के मुख्य मैनेजर भी रहे। सचिन तेंदुलकर के लिए राजसिंह कितनी बड़ी शख्सियत हैं, वह सचिन के इंटरव्यू से ही साबित हो जाता है क्योंकि मात्र 16 वर्ष की उम्र में सचिन का पहली बार पाकिस्तान दौरे के लिए चयन करने वाले चयनकर्ता राजसिंह ही थे क्योंकि चयन समिति के बाकी सदस्य सचिन की कम उम्र का हवाला देकर किसी वरिष्ठ खिलाड़ी को चुनना चाहते थे।

दक्षिण राजस्थान के मेवाड़ धरा पर फैली रियासत डुंगरपुर आज़ादी के वक्त राजा लक्ष्मण सिंह डुंगरपुर रियासत के अंतिम शासक थे। वह खुद क्रिकेट के बड़े शौकीन थे और उनके तीन बेटों में सबसे छोटे बेटे राजसिंह मात्र 18 वर्ष की उम्र से ही 1955 में राजस्थान की रणजी टीम में अपना स्थान बना चुके थे और लगातार कामयाब होते जा रहे थे। राजसिंह ने अपनी एकेडमिक शिक्षा इंदौर के डेली कॉलेज से पूरी की और वर्ष 1959 मे लॉ की पढ़ाई करने मुंबई चले गए, जो उनकी ज़िंदगी का टर्निंग पॉइंट रहा।

मुंबई में राजसिंह अपनी बड़ी बहन के पास नेपेंसी सी रोड स्थित बंगले में रहते थे, जो मलाबार हिल पर था और पास ही समुद्र किनारे नरीमन रोड पर बने बेबोर्न स्टेडियम में क्रिकेट प्रेक्टिस के लिए आते। मुंबई आने के बावजूद राजसिंह ने रणजी खेलना नहीं छोड़ा था और यही हृदयनाथ मंगेशकर (लता के भाई) भी क्रिकेट खेलने आते थे। काफी दिनों तक साथ खेलने के बाद दोनों में दोस्ती बढ़ी और जब राजसिंह जी को यह पता लगा कि हृदयनाथ लता मंगेशकर के भाई हैं, तो राजसिंह ने उन्हें लता से मिलवाने का आग्रह किया क्योंकि 50 दशक के शुरुआत में स्ट्रगल करने वाली लता 1960 आते आते बॉलीवुड में काफी नाम कमा चुकी थी। उनके गीत एक के बाद एक हिट हुए जा रहे थे और कुछ ही दिनों में यह मुलाकात भी तय हुई एवं राजसिंह को लता के घर से चाय का न्यौता मिला।

लता ने रखा शादी का प्रस्ताव
पहली मुलाकात के लिए उत्सुक राजसिंह अपने साथ वह टेप रिकॉर्डर भी ले गए जिस पर रोज़ वह लता के गाने सुना करते थे और मुलाकात के दौरान राजसिंह ने लता को टेप रिकॉर्डर पर वह गीत भी बजाकर सुनाया जो उनका फेवरेट था। पहली बार चाय के साथ शुरू हुई यह चर्चा आगे कितनी गहरी दोस्ती का रुख अख्तियार करेगी यह इन दोनों में से किसी ने नहीं सोचा था। दोनों अपने-अपने क्षेत्र में तरक्की कर रहे थे और मुलाकातों का दौर भी जारी था। जिसके बाद कभी लता, राजसिंह का क्रिकेट मैच देखने ग्राउंड पहुंच जाती तो कभी राजसिंह लता के रिकॉर्डिंग रूम में उनका इंतज़ार करते।

उस दौर में टीवी नहीं था लेकिन प्रिंट मीडिया और फिल्मी मैगज़ीन में सबसे चर्चित स्टोरी इनकी ही रहती थी और इन्हें कभी एतराज़ भी नहीं हुआ लेकिन इनकी दोस्ती इतनी गहरी हो चुकी थी कि अखबारों में शादी के भी चर्चे शुरू हो गए। एक वह दिन भी आया जब लता ने राजसिंह के सामने शादी का प्रस्ताव रख दिया लेकिन राजसिंह ने यह कहते हुए प्रस्ताव को टाल दिया कि “मैं अपने पिताजी को दिया हुआ एक वादा निभा रहा हूं इसलिए चाहकर भी तुमसे शादी नहीं कर सकता लेकिन एक वादा तुमसे भी करता हूं कि अगर तुम नहीं तो मैं किसी से भी शादी नहीं करूंगा।”

पिताजी का वादा यह था कि जब राजसिंह को महराजा लक्ष्मण सिंह ने कॉलेज शिक्षा हेतु इंदौर भेजा तो एक वादा किया था कि “तुम डुंगरपुर रियासत के राजकुंवर हो और इस आधुनिकता की होड़ में तुमसे आशा करता हूं कि तुम ऐसा कोई गलत कदम नहीं उठाओगे, जिससे राजा लक्ष्मण सिंह या डुंगरपुर रियासत का नाम मिट्टी में मिल जाए इसलिए तुम भी एक वादा करो कि तुम राजपूत लड़की के सिवा किसी भी जाति की लड़की से शादी नहीं करोगे।”

राजसिंह ने जीते जी अपने पिताजी के दिए सभी वचन निभाए और लता को दिया वादा भी निभाया तथा ताउम्र शादी नहीं की। 12 सितंबर 2009 को मुंबई में राजसिंह ने अंतिम सांस ली। आज लता भी 90 पार कर चुकी हैं और अब अस्वस्थ रहती हैं लेकिन उनकी भी राजसिंह से शादी की ज़िद थी इसलिए वह ज़िंदगीभर कुंवारी रहीं।

 

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