94th Oscars Awards के फाइनल नॉमिनेशन में भारत की डॉक्यूमेंट्री Writing With Fire का नाम भी शामिल है। मंगलवार की शाम यानी कि 8 तारीख को अकैडमी ऑफ मोशन पिक्चर आर्ट्स एंड साइंसेज के सोशल मीडिया अकाउंट पर नॉमिनेशंस की अनाउंसमेंट हुई। यूं तो सिनेमा जगत में कई सम्मान दिए जाते हैं लेकिन ऑस्कर बेस्ट की गिनती में आता है। ऐसे में भारत की एक डॉक्युमेंट्री का इस नॉमिनेशन लिस्ट में आना हमारे लिए खुशी की खबर है।
ऑस्कर्स 2022 के लिए नॉमिनेट हुई 'राइटिंग विद फायर' जर्नलिज्म पर आधारित है। इस डॉक्यूमेंट्री को सुष्मित घोष और रिंटू थॉमस ने डायरेक्ट किया है। इसमें दिखाया गया है कि दलित महिलाओं की मदद से निकाले जाने वाले अखबार खबर लहरिया की शुरुआत कैसे हुई थी? महिलाओं ने इस अखबार को डिजिटल बनाने के लिए किन-किन मुश्किलों का सामना किया। ऑस्कर नॉमिनेशन से पहले इस डॉक्यूमेंट्री को अभी तक इंटरनेशनल प्लेटफॉर्म पर 20 से भी ज्यादा अवॉर्ड मिल चुके हैं। ऐसे में इस फिल्म को लेकर लोगों की उम्मीदें बहुत बढ़ गई हैं।
बुंदेलखंड में प्रकाशित एक अखबार खबर लहरिया भारत का एक मात्र अखबार था, जिसे सिर्फ दलित महिलाएं संचालित करती थीं। आठ पन्नों के अखबार खबर लहरिया में महिला रिपोर्टर बदलते समाज, भ्रष्टाचार, सरकार के अधूरे वादों, गरीबों और महिलाओं की कहानियां सुनाती थीं। खबर लहरिया नामक अखबार बुंदेलखंडी भाषा में 2002 से चित्रकूट समेत बुंदेलखंड के कई जिलों से प्रकाशित होता था। हालांकि, 2015 में यह बंद हो गया। तब से लेकर अब तक मोबाइल पोर्टल पर खबर लहरिया संचालित है। इस पूरी टीम में महिलाएं ही काम करती हैं। खबर लहरिया के लिए इसके संस्थापक एनजीओ निरंतर को यूनेस्को किंग सेजोंग लिट्रेसी सम्मान 2009 से सम्मानित किया गया था।
ऐसे शुरू हुआ था खबर लहरियाचित्रकूट के कुंजनपुर्वा गांव के एक दलित मध्यमवर्गीय परिवार की कविता (30) की शादी 12 साल की उम्र में हो गई थी। वह ज्यादा पढ़ाई नहीं कर पाई थीं। बाद में उन्होंने एक एनजीओ की मदद से पढ़ाई शुरू की। साल 2002 में उन्होंने एनजीओ द्वारा शुरू किए गए अखबार खबर लहरिया में बतौर पत्रकार के रूप में काम शुरू किया। धीरे-धीरे अखबार का प्रसार बढ़ने लगा।
कोई नाम न जाने, इसलिए नहीं छापते थे बाईलाइन
कविता का कहना है कि हम पर दवाब डाला जाता था कि महिला होकर हमारे खिलाफ खबर छापती हो। बड़े अखबारों ने हमारे खिलाफ कुछ नहीं निकाला तो आपने कैसे निकाला। शायद इसीलिए अखबारों में बाईलाइन खबरें नहीं दी जाती थीं, जिससे खबर के लेखक के बारे में पता न चल सके।