'द हीरो ऑफ रानीगंज' से, जिन्होंने अकेले जान की परवाह किए बिना 6 घंटे में 65 लोगों की जिंदगी बचाई थीं और पूरी दुनिया ने सराहा था। आज उस ऑपरेशन को पूरे 33 साल हो गए हैं। और इसे याद करते हुए बॉलीवुड एक्टर अक्षय कुमार ने एक लंबा चौड़ा पोस्ट लिखते हुए इसे याद किया है। अक्षय कुमार इस ऑपरेशन के असली हीरो सरदार जसवंत सिंह गिल का किरदार निभाने का भी एलान किया है। सरदार जसवंत सिंह गिल जिन्हें कैप्सूल गिल के नाम से भी पुकारा जाता था।
जल्द ही अक्षय अपनी अपकमिंग फिल्म 'कैप्सूल गिल' (Capsule Gill) की शूटिंग शुरू करेंगे। पीपिंग मून ने ये पहले ही बताया था कि जल्द ही वो अपनी फिल्म की शूटिंग शुरू करेंगे। अक्षय कुमार की आगामी फिल्म कैप्सूल गिल से पहला लुक लीक हो गया है। यह फिल्म कोल माइन रेस्क्यू पर आधारित हैl यह फिल्म माइनिंग इंजीनियर जसवंत सिंह गिल के जीवन पर आधारित है, जिन्होंने रानीगंज कोल फील्ड में 1989 में फंसे 64 खान मजदूरों की जान बचाई थीl अक्षय कुमार उन्हीं की भूमिका निभा रहे हैं।
अक्षय कुमार की फिल्म का निर्माण वासू भगनानी और जैकी भगनानी कर रहे हैंl वहीं फिल्म का निर्देशन टीनू सुरेश देसाई कर रहे हैं l अक्षय कुमार वर्तमान में इस फिल्म की शूटिंग यूके में कर रहे हैं l खबरों की मानें तो इस फिल्म का टाइटल कैप्सूल गिल रखा गया है।
Grateful to you @JoshiPralhad ji, for recalling India’s first coal mine rescue mission - this day 33yrs ago.
मेरा सौभाग्य है कि मैं #SardarJaswantSinghGill जी का किरदार अपनी फ़िल्म में निभा रहा हूँ. It’s a story like no other!@easterncoal— Akshay Kumar (@akshaykumar) November 16, 2022
कौन थे 'द हीरो ऑफ रानीगंज' ? हम बात कर रहे हैं 1989 में कोयले की खदान में फंसे 65 लोगों को जिंदा निकालने वाले अमृतसर के इंजीनियर जसवंत सिंह गिल की। यह हादसा अब तक के कोयला खदानों में हुए सबसे बड़े हादसों में से एक था। 13 नवंबर 1989 को रानीगंज के महाबीर खदान (वेस्ट बंगाल) में कोयले से बनी चट्टानों को ब्लास्ट कर तोड़े जाने के दौरान वाटर टेबल की दीवार में क्रैक आ गया और पानी तेजी से इन दरारों से बहने लगा। इस कारण वहां काम कर रहे 220 लोगों में से 6 लोगों की मौके पर ही मौत हो गई। जो लोग लिफ्ट के पास थे, उन लोगों को जल्दी से बाहर खींच लिया गया, लेकिन वहां 65 लोग फंसे रह गए थे। इस हादसे के वक्त जसवंत सिंह गिल बतौर एडिशनल चीफ मायनिंग इंजीनियर वहां पोस्टेड थे। जब जसवंत को इस हादसे की खबर लगी तो उन्होंने अपनी जान की फिक्र किए बिना तुरंत उस पानी से भरी खदान में जाने का फैसला किया। गिल ने सबसे पहले वहां मौजूद अफसरों की मदद से पानी को पम्प के जरिए बाहर निकालने की कोशिश की, लेकिन ये तरीका कारगर नहीं रहा। इसके बाद उन्होंने वहां कई बोर खोदे, जिससे खदान में फंसे मजदूरों तक जिंदा रहने खाना-पीना पहुंचाया जा सके। तब उन्होंने एक 2.5 मीटर का लंबा स्टील का एक कैप्सूल बनाया और उसे एक बोर के जरिए खदान में उतारा। जसवंत राहत और बचाव की ट्रेनिंग ले चुके थे। इसलिए वे उस माइन में उतरे। कई लोगों ने और सरकार ने इस बात का विरोध भी किया, लेकिन जसवंत ने किसी की बात मानते हुए रेस्क्यू जारी रखा। उनके दिए आइडिया से खदान में से एक-एक कर लोगों को उस कैप्सूल के जरिए 6 घंटे में बाहर निकाल लिया गया। जब तक सभी 65 लोगों को खदान से बाहर नहीं निकाल लिया गया, जसवंत खुद बाहर नहीं आए। इस बहादुरी के बलए 2 साल बाद 1991 में जसवंत को इंडियन गवर्नमेंट की तरफ से प्रेसिंडेट रामास्वामी वेंकटरमन के हाथों सिविलियन गेलेन्ट्री अवार्ड ' सर्वोंत्तम जीवन रक्षक पदक' दिया गया। साथ ही कोल इंडिया ने उनके सम्मान में 16 नवंबर को 'रेस्क्यू डे' डिक्लेयर किया। गिल के बनाए कैप्सूल मैथड कई देशों के द्वारा इस्तेमाल किया गया। 2010 में चिली में इस कैप्सूल का इस्तेमाल हुआ था।