जैन धर्म को दुनिया का सबसे शांतिपूर्ण धर्म कहा जाता हैं। ये एक बहुत ही प्राचीन धर्म हैं। इसकी खासियत यह हैं, कि यह अहिंसा धर्म पालन के लिए विश्व भर में बहुत प्रसिद्ध हैं। इस धर्म के भिक्षु अहिंसा के मार्ग पर चलते हैं या उनको चलने का पालन होता हैं। फिल्म अभिनेता आमिर खान का कहना है कि वह जैन धर्म से बहुत प्रभावित हैं। वे जैन समाज के अहिंसा, अपरिग्रह और अनेकांत में खुद यकीन करते हैं। उनका कहना है कि जैन समाज ने देश ही नहीं दुनिया को यह तीन महत्वपूर्ण सिद्धांत दिए हैं। इनका उनके जीवन पर बहुत ही गहरा प्रभाव पड़ा है। पिछले वर्ष सितंबर में भी आमिर खान के प्रोडक्शन हाउस ने अपने ट्विटर हैंडल पर एक क्लिप साझा की थी। इसमें `मिच्छामि दुक्कड़म` लिखते हुए जाने-अनजाने में हुई गलतियों को लेकर क्षमा भी मांगी थी।
आमिर खान ने 9 अप्रैल 2023 को मुंबई में अपनी प्रार्थना सभा में महान वैज्ञानिक-संत डॉ. महेंद्र कुमार जी को श्रद्धांजलि दी। मुनिश्री, जिन्हें मानव कंप्यूटर कहा जाता था, हाल ही में स्वर्गवासी हुए। वे जैन तेरेपंथ आचार्य महाश्रमणजी के शिष्य थे।
उनका सर रोजर पेनरोस के साथ घनिष्ठ संबंध रहा है जो स्टीफन हॉकिंग के गुरु भी थे और प्राचीन विज्ञान और ज्ञान के अध्ययन में अग्रणी रहे हैं। जैन मुनि और आमिर खान ने जैन दर्शन, अध्यात्म, विज्ञान और बहुत कुछ के बारे में गहन बातचीत की है। प्रार्थना सभा में निर्माता महावीर जैन ने कहा कि आमिर खान अनेकांतवाद (विभिन्न दृष्टिकोणों का सम्मान), अहिंसा जैसे विभिन्न जैन सिद्धांतों की प्रशंसा की है। श्रद्धांजलि समारोह में शामिल होने के लिए श्री अमीर खान के इस हार्दिक भाव से आभार व्यक्त करते हुए जैन समुदाय ने साझा किया।
पिछले वर्ष सितंबर में आमिर खान के प्रोडक्शन हाउस ने अपने ट्विटर हैंडल पर एक क्लिप साझा की थी। इसमें ‘मिच्छामि दुक्कड़म‘ लिखते हुए जाने-अनजाने में हुई गलतियों को लेकर क्षमा भी मांगी थी। आमिर खान हर साल ऐसा वीडियो पोस्ट करते है। वीडियो की शुरुआत ‘मिच्छामि दुक्कड़म‘ से होती है। जैन समुदाय भाद्रपद महीने में पर्युषण पर्व मनाते हैं। जैन धर्म में इस पर्व का महत्व दिवाली की तरह ही है। इसे क्षमावाणी पर्व, दशलक्षण पर्व और संवत्सरी भी कहा जाता है। श्वेताम्बर समुदाय आठ दिनों का पर्युषण पर्व मनाता है। जिसे ‘अष्टान्हिका‘ कहा जाता है। दिगंबर समुदाय 10 दिनों का पर्युषण पर्व मनाते हैं। इसे दशलक्षण पर्व कहा जाता है। इस पर्व के अंतिम दिन ‘मिच्छामी दुक्कड़म्‘ कहने की परंपरा है। आमतौर पर जैन समाज के लोग इस दिन जाने-अंजाने में हुई गलतियों के लिए एक-दूसरे माफी मांगते है।