उर्दू के मशहूर और मक़बूल शायर मुन्नवर राना का रविवार रात लखनऊ स्थित एक अस्पताल में इंतकाल हो गया। 71 वर्ष की उम्र में उन्होंने आंखिरी सांस ली वह लंबे वक्त से बीमार थे। 26 नवंबर 1952 को रायबरेली में जन्में मुनव्वर राना को साल 2014 में साहित्य अकादमी से सम्मान किया गया था। उन्हें कविता ‘शाहदाबा’ के लिए साहित्य अकादमी मिला था। साल 2012 में उन्हें उर्दू साहित्य में उनकी सेवाओं के लिए शहीद शोध संस्थान द्वारा माटी रतन सम्मान से सम्मानित किया गया था। राना 71 वर्ष के थे।
अपने साथी शायर के निधन की खबर सुनकर फिल्म लेखक और गीतकार जावेद अख्तर भी उन्हें श्रद्धांजलि देने सोमवार को लखनऊ पहुंचे थे। जावेद अख्तर ने शायद मुनव्वर राना के जनाजे को कंधा दिया। इस मौके पर जावेद साहब बहुत भावुक नजर आए और उन्होंने मुनव्वर राना के निधन को 'हिंदुस्तान की तहजीब का नुक्सान' बताया। मीडियाकर्मियों से बात करते हुए जावेद ने कहा, 'हकीकत ये है कि बड़ा नुकसान हुआ है शायरी का। उर्दू का और हिंदुस्तान की तहजीब का।'
Lyricist Javed Akhtar attends funeral of Shayar Munavvar Rana who breathed his last at PGI hospital in Lucknow yesterday. pic.twitter.com/dZgvEOhwmG
— Piyush Rai (@Benarasiyaa) January 15, 2024
जावेद अख्तर ने कहा कि पहले राहत इंदौरी, फिर निदा फाजली और मुनव्वर राना जैसे शायरों के निधन से हिंदुस्तानी तहजीब 'धीरे-धीरे जा रही है।' उन्होंने कहा, 'इसकी भरपाई तो मुझे नहीं लगता कि हो पाएगी।' जावेद अख्तर ने मुनव्वर के परिजनों के लिए भी संवेदनाएं जाहिर की और कहा कि मुनव्वर 'याद आएंगे और उनकी कमी हमेशा रहेगी।'
उन्होंने आगे कहा, 'मां का सिंबल गजल में पहले कभी नहीं होता था, ये एक ऐसे शायर थे जिन्होंने इसे इस तरह इस्तेमाल किया और उसे गजल का हिस्सा बना दिया। बड़े खूबसूरत शेर उन्होंने इस रिश्ते पर पर और इस जज्बे पर कहे हैं, जो पहले नहीं होते थे। उनकी जो शायरी है वो हमेशा रहेगी और हमेशा लोग उन्हें एक शायर की ही नजर से जानेंगे।' जावेद साहब ने कहा कि 'अच्छी शायरी करना मुश्किल है और उससे भी ज्यादा मुश्किल है अपनी शायरी करना।' यानी वो शायरी जिसे कोई सुने 'तो मालूम हो कि ये किस शायर की है।' मुनव्वर की शायरी की तारीफ करते हुए जावेद ने कहा, 'मैं ये पूरे यकीन से कह सकता हूं कि मुनव्वर साहब का अपना एक रंग था और उनके शेर पर उनकी अपनी छाप होती थी।