चित्तोड़ का गौरवशाली इतिहास जो राजपूती की बहादुरी का प्रमाण रहा हैं. वो राजपूती रानियां जिन्होंने धर्म, समाज के साथ-साथ अपनी मर्यादा की रक्षा करते हुए खुस को अग्नि के हवाले कर दिया.
दिल्ली का सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी रानी पद्मिनी की छवि देखने के बाद उनपर मोहित हो गया था और उसने रानी पद्मिनी को हासिल करने की कसम खा ली. राजा रावल रतन सिंह की मृत्यु के बाद रानी पद्मिनी ने 16000 रानियों के साथ मिलाकर खुद को जोहर कर लिया.
राजस्थान का चित्तौड़गढ़ शहर अपने विशाल किलो के लिए जाना जाता हैं. चित्तोड़ में कई छोटे बड़े किले हैं लेकिन यह किला सबसे अलग और सबसे खास हैं. रानी ने यहीं पर जोहर किया था. बता दें, 700 एकड़ में फैला ये किला जमीन 180 मीटर की ऊंचाई पर पहाड़ पर बना हैं. मलिक मोहम्मद जायसी ने 'पद्मावत' नामक काव्य में 1303 ईसवी में चित्तौड़गढ़ पर हुए आक्रमण और ऐतिहासिक विजय का जिक्र किया हैं. कविता में उन्होंने रानी पद्मिनी का नाम पद्मावती रखा.
कथाकार ने बताया था कि रानी पद्मिनी बहुत सुंदर थी. अलाउद्दीन खिलजी ने रानी की सुंदरता के बारे में सुना और उन्हें देखने के लिए बेसब्र हो गया. इसके बाद खिलजी की सेना ने चित्तोड़ को घेर लिया और रावल रतन सिंह के पास पद्मिनी से मिलने का संदेश भिजवाया. खिलजी ने रतन सिंह को भरोसा दिलाया कि रानी से मिलने के बाद वो वापस चले जाएंगे. रतन सिंह ने जब खिलजी से मुलाकात के बारे में रानी से बात की तो उन्होंने साफ मना कर दिया.
युद्ध टालने के लिए एक तरकीब निकाली गई. खिलजी को रानी की छवि एक दर्पण में दिखाई गई. रानी को देख खिलजी बेखाबु हो गया और छित्तोड़ पर आक्रमण कर दिया. युद्ध में रतन सिंह और उनके कई सैनिक मारे गए. इसके बाद जबतक खिलजी रानी तक पहुंचता, 16000 महिलाओं के साथ मिलकर उन्होंने खुद को जौहर कर लिया.