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'पैडमैन' की रिलीज से पहले अक्षय के साथ बातचीत के कुछ खास अंश

मेरे लिए अक्षय एक 'चैंपियन' की तरह हैं. यह वह नाम है जो 1970 के दशक में एल्विस प्रेस्ली ने मोहम्मद अली को दिया था और फिर WWE के चैंपियन 'द रॉक' ने हाल ही में खुद को यह नाम दिया. पिछले साल अक्षय कुमार की फिल्म 'टॉयलेट एक प्रेम कथा' आई थी जो सामाजिक विषयो पर आधारित थीं. फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर सफलता के झंडे गाड़ दिए थे और अब उनकी दूसरी फिल्म 'पैडमैन' है जो बहुत जल्द सिनेमाघरों में रिलीज होगी.

'खुले में शौच' और महिलाओं के 'मासिक धर्म' जैसे संवेदनशील विषयो पर अब तक किसी अभिनेता ने फिल्म नहीं बनाई लेकिन अक्षय ने ऐसी फिल्म बनाने का साहस दिखाया. उनका मानना है कि फिल्म और मनोरंजन के माध्यम से शौच और मासिक धर्म जैसे संजीदा विषयों को दर्शकों के सामने रखा जा सकता हैं. अक्षय ऐसा क्यों करते हैं. जबकि एक्शन और कॉमेडी फिल्में उनका कम्फर्ट ज़ोन हैं. पेश है अक्सह्य से बातचीत के कुछ अंश

पैडमैन की रिलीज में कुछ ही दिन रह गए हैं. क्या आप परेशान हैं?
नहीं, मैं परेशान नहीं हूं क्यूंकि मुझे पता है कि हर फिल्म अपना भाग्य खुद लेकर आती हैं. मैं हमेशा लोगों से कहता हूं कि सिर्फ 30% आपकी मेहनत होती है बाकि 70% भाग्य पर निर्भर होता हैं. मैं खुश हूं क्यूंकि यह महत्वपूर्ण फिल्म हैं. हमारे देश में पीरियड्स एक बहुत बड़ी समस्या हैं और इसके कारण महिलाएं गर्भाशय ग्रीवा कैंसर से पीड़ित होती हैं, जिसके कारण वह बच्चों को जन्म भी नहीं दे पाती हैं. हालांकि पैडमैन में यह सबकुछ नहीं दर्शाया गया हैं. फिल्म में बस यह दिखाया गया है कि सेनेटरी पैड्स महिलाओं के लिए कितना जरुरी हैं. दुर्भाग्यवश भारत में इस तरह की फिल्में सिर्फ डाक्यूमेंट्री में दिखाई जाती हैं. मैं भाग्यशाली हूं कि मैं मुरुगनांथम से मिला जिन्होंने महिलाओं के लिए सस्ते सेनेटरी पैड्स बनाने वाली मशीन का निर्माण किया. यह एक रियल लाइफ स्टोरी हैं. उन्होंने यह सब अपनी पत्नी के लिए किया लेकिन इसके लिए उन्हें काफी आलोचनाएं सहनी पड़ी, उन्हें उनके गांव से निकाला गया. मुरुगनांथम ने अपने प्यार के लिए यह सब किया और आज वो सबसे खुश इंसान हैं.

इस तरह की फिल्मों पर दर्शकों से मिली जानेवाली प्रतिक्रिया से क्या आप भयभीत हैं?
नहीं, मैं भयभीत नहीं हूं और अगर मुझे किसी तरह का डर होता तो वह फिल्म की शूटिंग शुरू करने से पहले होता. फिल्म में मैंने अपने पैसे लगाए हैं और मेरी फिल्म 'पैडमैन' पहले ही हिट हो गई. क्यूंकि में देख रहा हूं कि लड़के और लड़कियां खुलेआम सोशल मीडिया पर सेनेटरी पैड्स के बारे में बात कर रहे हैं. अब लोगो की सोच बदल रही हैं.

लेकिन आप सामाजिक विषयों पर आधारित फिल्मों का चुनाव क्यों कर रहे हैं जबकि कॉमेडी एक्शन फिल्में आपका कम्फर्ट जोन हैं?
बहुत बार लोग मुझसे इस तरह के सवाल पूछते हैं कि मैंने 'टॉयलेट एक प्रेम कथा' जैसी फिल्म क्यों बनाई. कोई इस तरह की फिल्म क्यों देखेगा. कई बार ऐसा हुआ है कि मेरे पास इन सवालों के जवान नहीं होते थे तो मैं चुप बैठता था. मेरी अगली फिल्म 'हाउसफुल 4' हैं. मध्य प्रदेश का वो निवासी जिसने अपनी पत्नी के लिए टॉयलेट बनवाया, तमिलनाडु का वो व्यवसायी जिसने सस्ते सेनेटरी पैड्स बनानेवाली मशीन का निर्माण किया. भारतीय आर्मी अफसर जिसने अपनी बीवी के प्रेमी को मार दिया. लोगों को लगता है कि इस तरह की फिल्में मैं राजनितिक आकांक्षाओं के लिए करता हूं लेकिन यह सच नहीं हैं. भारत में जागरूकता फैलाने का सिनेमा एक अच्छा माध्यम हैं. खासकर भारत जहां बॉलीवुड लोगों के दिलों की धड़कन हैं.

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