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सत्यजीत रे एक ऐसा नाम जिनके पास खुद चलकर आया था 'ऑस्कर पुरस्कार'

भारतीय रंगमंच एक ऐसी जगह है, जिसने हमारे देश को एक से बढ़कर एक ऐसे बड़े नाम दिए जिन्हें बरसो बाद भी याद किया जाता है. जी हां, आज हम ऐसे ही एक बड़ी हस्ती के बारे में बताने जा रहे हैं. वह और कोई नहीं बल्कि भारतीय सिनेमा को पाथेर 'पांचाली', 'अपराजितो', 'चारुलता' और 'द वर्ल्ड' जैसी शानदार फ़िल्में देने वाले फिल्मकार सत्यजीत रे हैं. आपको बता दें कि आज के ही दिन भारत को ऑस्कर दिलाने वाले सत्यजीत रे का जन्म 2 मई 1921 के दिन कलकत्ता (कोलकाता) में हुआ था. तो चलिए आपको सत्यजीत रे की जीवन से जुड़ी और कुछ खास बातें बताते हैं.

सत्यजीत रे के बारे में एक शब्द में कुछ कह पाना आसान नहीं है, वह बचपन से ही खास थे और उनके शौक भी. आपको बता दें कि बचपन में उन्हें स्केचिंग करने का शौक था. लेकिन बदलते वक़्त के साथ उनका शौक भी बदलता गया. जैसे-जैसे वह बड़े होते गये उनका झुकाव फ़िल्मी दुनिया के तरफ होता गया. जिसका सबसे बड़ा सबूत उनका क्लासिकल म्यूजिक सीखने का शौक था. बता दें कि उन्होंने बतौर आर्टिस्ट एक ऐड कंपनी में काम भी किया था. वहीं उन्हें काम के सिलसिले में जभी देश से बाहर जाने का मौका मिलता था, तब वह खूब फ़िल्में देखा करते थे. रे की फिल्मों के लिए दीवानगी एक अलग ही हद तक थी.

सत्यजीत रे ने 'पाथेर पांचाली' जैसी खास फिल्म बनाई थी, लेकिन क्या आप यह बात जानतें हैं कि इस फिल्म को बनाने कि ​प्रेरणा उन्हें उन्हें कहांं से मिली थी. दरअसल, इटैलियन फिल्म 'बाईसाइकल थीव्स' देखने के बाद रे ने अपने मन में एक बात साफ़ कर दी थी कि वह अब फ़िल्में बनायेंगे. और वहीं से कुछ इस तरह शुरू हुआ उनका फ़िल्मी सफ़र. सत्यजीत रे केवल अपनी फिल्मों का निर्देशन ही नहीं किया करते थे बल्कि अपनी पसंद के अनुसार सेट भी डिजाइन किया करते थे.

सत्यजीत रे को उनकी फिल्मों के लिए देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी जाना जाता है. लेकिन आपको बता दें कि वह बहु प्रतिभावान व्यक्ति थे. सत्यजीत रे फिल्म बनाने के अलावा म्यूजिक कंपोजर, कैलीग्राफर, फिक्शन राइटर, सेट-ग्राफिक डिजाइनर और फिल्म क्रिटिक भी थे. वहीं, देश की सरकार की तरफ से भी रे को एक और दो नहीं बल्कि कुल 32 राष्ट्रीय पुरस्कार दिए गये थे, जो की उन्हें फ़िल्म निर्माण के क्षेत्र में विभिन्न विधाओं के लिए दिए गये थे. इतना ही नहीं उन्हें देश के सबसे सम्मानित यानी दादा साहब फाल्के पुरस्कार से भी नवाजा गया था.

अब बारी आती है उस पुरस्कार की जिसे पाने का सपना फिल्म जगत से जुड़े हर एक शख्स का होता है. हम बात कर रहे हैं ऑस्कर की जो उन्हें साल 1992 में दिया गया था. आपको यह जानकर हैरानी होगी कि ऑस्कर रे के पास खुद चलकर आया था. उसी साल की बात है, जब उन्हें भारत रत्न से भी नवाज़ा गया था. लेकिन उस साल ने जहां इतनी सारी खुशियां लाई थी, वहीं एक गम भी दे गयी. दरअसल, उसी साल 23 अप्रैल 1992 को सत्यजित रे दिल का दौरा पड़ने से इस दुनिया को छोड़ कर चले गये. लेकिन आज भी उनकी फिल्मों के जरिये वह हमारे बीच जिन्दा हैं.

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