6 जून 1929 को पंजाब के झेलम (अब पाकिस्तान) में जन्में सुनील दत्त की आज 89वीं बर्थ एनिवर्सरी हैं. सुनील दत्त का बचपन काफी संघर्षपूर्ण था. महज 5 साल की उम्र में उन्होंने अपने पिता को खो दिया. उनकी परवरिश और देखभाल की सारी जिम्मेदारी मां कुलवंती देवी पर आ गया.
सुनील ने भारत-पाकिस्तान का बंटवारा और उस बंटवारे में हुए हिंदू-मुस्लिम के बीच के दंगो को करीब से देखा हैं. बंटवारे के बाद सुनील परिवार के साथ लखनऊ आकर बस गया.उच्च शिक्षा के लिए सुनील दत्त ने माया नगरी मुंबई का रुख किया. यहां उन्होंने मुंबई के जय हिन्द कॉलेज में दाखिला लिया. परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक ना होने के कारण भरण पोषण के लिए उन्होंने मुंबई की बेस्ट बसों में कंडक्टर की नौकरी की.
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कॉलेज खत्म होते ही सुनील दत्त की नौकरी मुंबई में एक ऐड एजेन्सी में लग गई. जहां उन्हें रेडियो सीलोन में रेडियो जॉकी बनने का मौका मिला. अनाउंसर के रूप में काम करते हुए वो काफी मशहूर हुए और यहीं से उनके करियर की शुरुआत हुई. 1955 में बनी फिल्म 'रेल्वे स्टेशन' में उन्हें बड़ा ब्रेक मिला. दो साल बाद आई फिल्म 'मदर इंडिया' (1957) ने उन्हें बड़ा स्टार बना दिया.
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विलेन के रोल में सुनील खूब जचते थें और करीब 20 से ज्यादा फिल्मों में उन्हें नेगेटिव रोल निभाया हैं. 1964 में उन्हें 'मुझे जीने दो' के लिए फिल्मफेयर अवॉर्ड से नवाजा गया. खानदान फिल्म के लिए उन्हें फिर से फिल्मफेयर का बेस्ट एक्टर का अवॉर्ड मिला. 1950 से लेकर 1960 तक उन्होंने भारतीय सिनेमा को कई बेहतरीन फिल्में दीं. जिनमें साधना (1958), सुजाता (1959), मुझे जीने दो (1963), गुमराह (1963), वक़्त (1965), खानदान (1965), पड़ोसन (1967) और हमराज़ (1967) जैसी फिल्में शामिल हैं.