एक्शन फिल्मों के मास्टर अब्बास मस्तान ने 2008 में रेस फ्रेंचाइजी की पहली सीरीज बनाई. अब तक इस फ्रेंचाइजी की दोनों सीरीज हिट रही हैं लेकिन 'रेस 3' की नैया डूबती दिखाई देती हैं. सलमान की फिल्म हैं तो उनके फैंस फिल्म देखने जरूर जाएंगे. भाईजान के फैंस में फिल्म देखने का जबरदस्त क्रेज़ देखने को मिल रहा हैं लेकिन भाईजान के फैंस के अलावा बाकियों फिल्म देखने के बाद कड़ी निराशा हाथ लग सकती हैं.
फिल्म की कहानी एक परिवार से शुरू होती हैं, जो गल्फ कंट्री से रहते हैं. परिवार में एक मुखिया हैं, जिनका नाम शमशेर सिंह (अनिल कपूर) हैं. शमशेर अपने दो बच्चों संजना (डेज़ी शाह) और सूरज (साकिब सलीम) के साथ रहते हैं. शमशेर का एक सौतेला बेटा सिकंदर (सलमान खान) भी हैं, जो उनके हथियारों के बिजनेस को देखता हैं. परिवार में कुछ भी ठीक नहीं हैं. किसी को किसी से मोहब्बत हैं तो किसी को जलन हैं. परिवार और सदस्यों के बीच ही रेस शुरू होती हैं. कहानी में ट्विस्ट तब आता हैं, जब राणा (फ्रेडी दारुवाला) की एंट्री होती है.
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राणा, शमशेर सिंह के बिजनेस को तबाह करना चाहता हैं. कहानी में जेसिका का भी लगा किरदार हैं. ड्रग्स, हथियार, चेस सीक्वेंस और इलाहाबाद से गल्फ कंट्री तक का सफर शमशेर सिंह कैसे तय करता है और आखिर में क्या होता है, इसे जानने के लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी.
फीकी पड़ी एक्टिंग
फिल्म में सभी की एक्टिंग की बात करें तो ऐसा लगता हैं कि मानों सब एक ही नाव पर सवार हैं. जैकलीन और डेज़ी का हाथ तो अभिनय के मामले में पहले से ही तंग हैं. डेज़ी का डायलॉग तो पहले ही सोशल मीडिया पर मजाक बन चुका हैं. साकिब सलीम भी कोई खास करिश्मा न दिखा सके. बॉबी देओल को इस तरह की फिल्मों के लिए थोड़ा और खुद को ढालना होगा. रही बात सलमान की तो वो जो भी करते हैं सभी को अच्छा लगता हैं. वो एक्टिंग से ऊपर की चीज हैं.
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क्या हैं कमजोर कड़ियां
फिल्म की कहानी और स्क्रीनपल्य कमजोर हैं. किसी भी किरदार को जस्टिफाई करने में लेखक असमर्थ हैं. ना हीरो अपना कमाल दिखा पता हैं और ना ही कोई जबरदस्त विलेन हैं. फिल्म के गाने इसकी लेंथ को और बड़ा बना देते हैं. पूरी फिल्म में सेल्फिश वाला गाना 2 बार अलग- अलग समय पर आता हैं. हथियारों के कारोबार से ड्रग्स और वैश्यावृत्ति तक कहानी का पहुंचना और फिर परिवार के लोगों के बीच ही कलह होना, ये सबकुछ गड़बड़ लगता हैं. 'रेस ' का नाम आते ही ट्विस्ट और टर्न्स सामने आते हैं लेकिन इस बार ऐसे ट्विस्ट और टर्न्स हैं जो आपको बांध पाने में नाकामयाब रहते हैं. फिल्म के आखिर में एक तरह से आपको निराशा ही हाथ लगेगी. फिल्म में कई मौको पर उत्तर प्रदेश की भाषा को भी बोलने की कोशिश की जाती हैं लेकिन नाकामयाब होते दिखाई देते हैं. ऐसा लगता हैं मानों एक सहज और सरल भाषा का अपमान किया जा रहा हैं.