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ISRO के इस साइंटिस्ट को झूठे आरोपों में फंसाने की कहानी है 'रॉकेट्री'

आर माधवन की फिल्म 'रोकेट्री' का टीजर जारी हो गया है. टीजर में मिसाइल लॉन्च होते हुए दिखाया गया है. साथ ही यह भी बताया गया है कि U. S. A ने इस मिशन को 19 अटेम्प्ट्स में पूरा किया, रशिया ने 16 अटेम्प्ट्स में पूरा किया जबकि भारत ने इसे पहले प्रयास में ही अंजाम दे दिया. फिल्म में आर माधवन वैज्ञानिक नंबी नारायणन की भूमिका निभा रहे है.

वैज्ञानिक एवं अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी इंजीनियर एस. नंबी नारायणन के जीवन पर बनी अभिनेता आर. माधवन की आगामी फिल्म 'रॉकेटरी-द नांबी इफेक्ट' हिंदी, अंग्रेजी और तमिल में रिलीज होगी. माधवन ने सोमवार को इंस्टाग्राम पर एक वीडियो साझा किया, जिसमें उन्होंने कहा, "दुनिया में ऐसी कई निजी कहानियां हैं, जिनके बारे में आपने सुना होगा और कइयों के बारे में किसी को कोई जानकारी नहीं हैं, लेकिन, कुछ कहानियां ऐसी हैं जिनके बारे में नहीं जानने का मतलब है कि आप आपने देश के बारे में बहुत कम जानते हैं.'

उन्होंने कहा कि नंबी नारायणन की कहानी ऐसी कहानियों में से एक है. जब आप इस व्यक्ति की कहानी सुनेंगे और उनकी उपलब्धियों को देखेंगे तो मैं आपसे कह रहा हूं कि आप कभी भी चुप नहीं रहेंगे.

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के एक वरिष्ठ अधिकारी के रूप में नारायणन क्रायोजेनिक्स खंड के प्रभारी थे. 1994 में उन्हें जासूसी के झूठे आरोप लगाकर गिरफ्तार कर लिया गया. केंद्रीय जांच ब्यूरो द्वारा 1996 में उनके खिलाफ आरोपों को खारिज कर दिया गया और सर्वोच्च न्यायालय ने 1998 में उन्हें दोषों से बरी कर दिया.

https://www.youtube.com/watch?v=iLComnp6qGU&feature=youtu.be

कौन है नंबी नारायणन

नंबी नारायणन इसरो के रिटायर वैज्ञानिक है. 1994 में नंबी को तिरूवंनतपुरम में इसरो की जासूसी करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया. इन सभी पर पाकिस्तान को इसरो रॉकेट इंजन की सीक्रेट जानकारी और अन्य जानकारी दूसरे देशों के देने के आरोप थे. इंटेलिजेंस ब्यूरो के अधिकारियों ने नंबी से पूछताछ शुरू कर दी. उन्होंने इन आरोपों का खंडन करते हुए इसे गलत बताया. बाद में इस मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी गई. सीबीआई ने अपनी जांच में इंटलीजेंस ब्यूरो द्वारा लगाए आरोपोको सही नहीं पाया.

जनवरी 1995 में इसरो के दो वैज्ञानिक और बिजनेसमैन को जमानत पर रिहा कर दिया गया.

अप्रैल 1996 में सीबीआई ने चीफ जूडिशल मैजिस्ट्रेट की अदालत में फाइल एक रिपोर्ट में बताया कि यह मामला फर्जी है और आरोपों के पक्ष में कोई सबूत नहीं हैं. मई 1996 में कोर्ट ने सीबीआई की रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया और इस केस में सभी आरोपियों को रिहा कर दिया. मई 1998 में सुप्रीम कोर्ट ने केरल सरकार द्वारा इस मामले की फिर से जांच के आदेश को खारिज कर दिया. 1999 में नारायणन ने मुवावजे के लिए याचिका दाखिल की. 2001 में राष्ट्री मानवाधिकार आयोग ने केरल सरकार को क्षतिपूर्ति का आदेश दिया लेकिन राज्य सरकार ने इस आदेश को चुनौती दी. सितंबर 2012 में हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को नारायणन को 10 लाख रुपये देने के आदेश दिए.

अप्रैल 2017 में सुप्रीम कोर्ट में नारायणन की याचिका पर उन पुलिस अधिकारियों पर सुनवाई का आदेश दिया जिन्होंने वैज्ञानिक को गलत तरीके से केस में फंसाया था. नारायणन ने केरल हाई कोर्ट के उस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया जिसमें कहा गया था कि पूर्व डीजीपी और पुलिस के दो सेवानिवृत्त अधीक्षकों के के जोशुआ और एस विजयन के खिलाफ किसी भी कार्यवाई की जरूरत नहीं है.

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