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Exclusive: उत्तर भारतीय होने के नाते मेरे लिए हिंदी बहुत मत्वपूर्ण है - मोहम्मद जीशान अयूब

आज यानी 14 सितम्बर को हमारा देश 'हिंदी दिवस' मना रहा है. ऐसे में पीपिंगमून ने 'मिशन मंगल', 'आर्टिकल 15', 'तनु वेड्स मनु रिटर्न्स' जैसी फिल्मों में काम कर चुके अभिनेता जीशान अयूब से खास बातचीत की. बता दें कि दिल्ली में पले-बढ़े जीशान नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से थिएटर ट्रेनिंग लेकर मुंबई आए थे. हमारे साथ बात करते हुए उन्होंने उनकी जिन्दगी में हिंदी के महत्व को बताया, यह भी बताया कि बॉलीवुड इंडस्ट्री में हिंदी भाषी को कितना महत्व दिया जाता है. 

जीशान ने हिंदी दिवस  पर इस बात की शुरुआत करते हुए कहा, "नॉर्थ इंडियन होने के नाते हिंदी मेरे लिए बहुत मत्वपूर्ण है, मेरी मातृभाषा यही है. मेरी जिन्दगी में हिंदी का बहुत महत्व है." 

क्या हमारे समाज या बॉलीवुड इंडस्ट्री में हिंदी और अंग्रेजी बोले वालों के बीच भेदभाव है? 

दरअसल, यह हमारे समाज की कमजोरी है. मैं ये तो नहीं कहूंगा कि हिंदी बहुत ही बेचारी हालत में हैं मगर, क्षेत्रीय भाषाओँ की तरफ से बात की जाए तो बाकि भाषाओँ की हालत ज्यादा ख़राब है. लोग मानते हैं कि इंग्लिश ज्यादा अच्छी भाषा है, हिंदी नहीं बोलनी चाहिए. जगह पर भी डिपेंड करता है जैसे महाराष्ट्र में कई लोग मराठी में बात नहीं करेंगे हिंदी में बात करेंगे तो उनकी क्लास लग जाती है. ये बेसिक तरह से हमारी सोसाइटी की प्रॉब्लम है. मैं भी इसमें फंसा हूं, मैं सहमति दूंगा कि भेदभाव होता है. स्कूल में जब ग्यारहवीं-बारहवीं में था तो अंग्रेजी का लोड बहुत था, ज्यादा समझ में नहीं आती थी, टीचर भी वाइस इन्हीं होते थे. फिर कोशिश की कि अब अंग्रेजी में बात करूंगा। जब सीख ली तो लोगों से बात करना शुरू किया. ज्यादा आगे पढ़ाई की तो समझ में आया कि बात जो बोल रहे हैं वो ज्यादा जरुरी है, भाषा में वो जरुरी है कि ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंच जाए तो अच्छा है. हर भाषा बस कम्युनिकेशन के लिए बनी है. मुझे इस तरह का अब कोई कॉम्प्लेक्स फील नहीं होता की अंग्रेजी नहीं आती थी, पहले लोगों को ये तक लगता तह कि मेरी अंग्रेजी अच्छी नहीं है, बस कोई मुझे बोल नहीं पाता था. पर, अब मुझे इन चीज़ों से कोई फर्क नहीं पड़ता.

 

NSD (नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा) में हिंदी को कितनी तवज्जों दी जाती है 

वहां बहुत तवज्जों दी जाती है. वहां तो हिंदी को राजभाषा कहा जाता है.सारे नाटक हिंदी में होते हैं, और भी भाषाएं होती हैं मगर मुख्य रूप से हिंदी ही होती है. हर इलाके के लोग आते हैं. तो लोग, यहां अपनी भाषा लेकर आते हैं तो उन लोगों को काफी तकलीफ हो जाती है. तो यहां थोड़ा मसला बन जाता है. साउथ के लोगों के लिए थोड़ी मुश्किल आती है. बड़े रोल देने में डायरेक्टर्स हिचकिचाते हैं और सोचते हैं कि यह कैसे स्टेज पर बोलेगा . तो यहां, एनएसडी में हिंदी को प्राथमिकता देना नेगेटिव भी हो जाता है. एनएसडी से हैं और आपकी हिंदी अच्छी नहीं है तो इसका मतलब है कि आपने ठीक से ध्यान नहीं दिया. हां, अगर आप अलग जगह से जैसे साउथ से हैं तो मैं समझ सकता हूं मगर, मूल रूप से आप हिंदी काफी हद तक एनएसडी में सीख लेते हैं.

आपका अपना कोई अनुभव कि बॉलीवुड में हिंदी को कम आंका जाता है?

पंकज त्रिपाठी कहां अंग्रेजी में बात करते हैं, मैं भी हिंदी में ही अक्सर बात करता हूं. हम भाषाओं को लेकर फंसते भी हैं. मैं ये सब एक हिंदुस्तानी के तौर पर बोल रहा हूँ. इसमें उर्दू भी है और कुछ शब्द इंग्लिश भी हैं. तो हिंदुस्तानी भाषा डेवेलप हो रही है. कुछ लोग हैं जो काम्प्लेक्स फील करते हैं. काफी मात्रा में ऐसे स्टार्स हैं इंडस्ट्री में जो सिर्फ इंग्लिश ही बोलते हैं, उन्हें हिंदी नहीं आती और, इंग्लिश भी सही से नहीं आती. कुछ लोगों की अच्छी इंग्लिश है और कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्हे इंग्लिश भी सही से नहीं आती. तो उन्हें रोल मिलते हैं हिंदी में, तो जब डायलॉग बोलते हैं तो उनकी हिंदी भी समझ में नहीं आती. उनके मुहं से अटक कर निकलती है ये भाषा.

 

 

(Source : Peepingmoon)

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