आज यानी 14 सितम्बर को हमारा देश 'हिंदी दिवस' मना रहा है. ऐसे में पीपिंगमून ने 'बधाई हो', 'वीरे दी वेडिंग' और 1995 में आई फिल्म 'वो छोकरी' के लिए नेशनल अवार्ड जीतने वाली बॉलीवुड की डिजाज अभिनेत्रियों में से एक नीना गुप्ता से खास बातचीत की. नीना ने इस इंटरव्यू में हमसे यह भी कहा कि भाषा को इतना बड़ा ना बनाएं, जिंदगी में इतनी परेशानियां हैं अब भाषा को लेकर कोई नई लड़ाई ना हो. आपको जो भाषा आती है उसे खुलकर बोलें, हिंदी भाषा का प्रयोग करने में भी संकोच नहीं करना चाहिए.
नीना ने सबसे पहले कहा कि किसी भी दिवस की जरुरत नहीं है, ना वूमन डे, फादर डे, ब्रदर डे और ना ही हिंदी डे!
जब आप हिंदी में बात जरते हैं तो कुछ लोग आपको पसंद नहीं करते, क्या आपको ऐसा लगता है?
हां, बिलकुल लगता है. जैसे हमारे प्रधानमंत्री जब हिंदी में बात करते हैं तो कुछ लोगों को पसंद नहीं आते. हमारे देश में बहुत सी भाषाएं हैं लेकिन ज्यादातर लोगों की मूल भाषा हिंदी ही होती है. देशभर की बात की जाए तो अंग्रेजी ज्यादा बोली जाती है. अंग्रेजी बोलने से आप दुनिया भर में कम्युनिकेशन कर सकते हो, वहां हिंदी में ऐसा नहीं है. इसलिए ज्यादा से ज्यादा लोग इंग्लिश मीडियम में पढ़ना चाहते हैं जिससे बड़े होकर अगर वो बाहर जाना चाहें तो उनके लिए आसानी हो. मुझे लगता है इसलिए हिंदी भाषी को नीची दृष्टि से देखते हैं, लेकिन कौन देखते हैं? मुझे लगता है इक्के-दुक्के गिने चुने लोग ही हिंदी बोलने वालों को नीची दृष्टि से देखते हैं.
फ्रेंच, फ्रेंच में बात करते हैं. मुझे ये बताएं कि मराठी दिवस, कन्नड दिवस, तमिल दिवस होता है क्या? नहीं! मुझे लगता है दिवस ना मनाएं, नीची दृष्टि से देखने वाले लोगों से भी हमें प्रभावित नहीं होना चाहिये, इससे हमें फर्क नहीं पड़ना चाहिए. मैं तो हिंदी में बात करती हूं, मेरी बेटी भी हिंदी में बात करती हैं. मेरी बेटी के सबसे ज्यादा मार्क्स बोर्ड्स में हिंदी में ही आए थे. किसीने कहा था कि जब आप नोट गिनते हैं तो भले ही शुरुआत इंग्लिश में 1 2 3 से करें मगर उसके बाद आपकी अपनी भाषा में ही गिनना शुरू कर देते हैं. तो, मुझे नहीं लगता कि हमें इन सब पर इतना ध्यान देना चाहिए . जिस भाषा में आप बात करना चाहें उसी में बात करनी चाहिए . मगर, ऐसा भी नहीं कि अगर मेरी कोई साउथ इंडियन फ्रेंड है तो मैं उससे शुद्ध हिंदी में बात करना शुरू कर दूं, ये तो गलत है. हिंदी दिवस को लेकर इतना कुछ नहीं करना चाहिए . हिंदी भाषा का प्रयोग करने में भी संकोच नहीं करना चाहिए .
इंडस्ट्री में हिंदी को काम तवज्जों दी जाती है?
मुझे नहीं लगता ऐसा, मुझे आदत है अंग्रेजी के वर्ड्स और सेंटेंस इस्तेमाल करने की क्यूंकि मेरे आसपास जो भी लोग हैं वो अलग अलग जगहों से आए हैं. कोई पंजाबी,को सिंधी, कोई गुजराती... अंग्रेजी काफी लोगों को समझ आती है इसलिए हम अंग्रेजी बोलते हैं. एक और कारण है कि हम अंग्रेजी बोलते हैं वो ये है कि हिंदी लिट्रेचर उतना बड़ा नहीं है जितने दुसरे भाषाओँ के लिट्रेचर हैं. क्यूंकि हिंदी लेखक फिल्मों में, टीवी सीरियल्स में चले गए हैं. और जो लिट्रेचर पहले था हमारा वो नया बन नहीं रहा. कौन है मोहन राकेश आए? नहीं आए! रोज़ी-रोटी के लिए बेहतर होता है कि डिमांड जैसी है वैसे लिखो. नई जनरेशन को इंग्लिश ही चाहिए, उनके बड़े ख्वाब हैं जैसे कि भारत के बाहर जाना . बुक्स भी इंग्लिश में है, स्कूल में भी! क्या करेंगे वो भी!
हिंदी में एक लाइन जो आपने बचपन में सुनी हो और अब तक याद है
बचपन में सुनी थी एक लाइन, पता नहीं अब तक क्यों याद है मुझे. ये कदम का पेड़ न होता जमुना तेरे, मैं भी इसपर बैठ कन्हैया बनता धीरे धीरे...पता नहीं क्यों याद है मुझे ये. महादेवी वर्मा, प्रेमचंद वगैरह बहुत पढ़ती थीं और अब तो मैं भी इंग्लिश नॉवेल पढ़ने लगी हूं.
भाषा को लेकर नया टंटा न शुरू करो, हमारी लाइफ में इतनी मुश्किलें हैं और एक और नहीं चाहिए. इसपर एक बात बताती हूं. एक बार मुझे गुलज़ार साहब ने टोक दिया था. मैंने गलती से दरवाज़ा को दरवाजा बोल दिया. तो मैंने कहा कि अब बम्बई आके बम्बईया हिंदी बोलनी होती है तो उन्होंने टोकते हुए कहा क्यों, ऐसी भाषा सुनते हो तो सुनते रहो, अपनी भाषा क्यों खराब करते हो. अपनी भाषा अच्छी बोलो . मगर अब मैं यहां मुंबई में प्याज़ तो नहीं कह सकती कांदा ही कहना पड़ता है. मैं यही कहूंगी कि आप जहां हों वहां के हिसाब से अपने आप को ढाल लो मगर अपनी भाषा क्यों बदलना है.
(Source: Peepingmoon)