पाकिस्तानी सोशल ऐक्टिविस्ट और नोबेल पुरस्कार विजेता मलाला यूसुफजई की जिन्दगी पर बनी फिल्म 'गुल मकई' इन दिनों चर्चा का विषय बनी हुई है. फिल्म में मलाला यूसुफजई की भूमिका में रीम शेख नजर आएंगी. एक्टर अतुल कुलकर्णी और दिव्या दत्ता फिल्म में मलाला यूसुफजई के पेरेंट्स का किरदार निभा रहे हैं. यह फिल्म 31 जनवरी को रिलीज होनी है. फिल्म 'गुल मकई' के निर्देशक अमजद खान ने फिल्म की रिलीज के पहले PeepingMoon से एक खास बातचीत की है. जिसमें उन्होंने फिल्म को लेकर दिलचस्प बातें शेयर की हैं.
फिल्म 'गुल मकई' पाकिस्तानी ऐक्टिविस्ट मलाला यूसुफजई पर बेस्ड है, किस बात ने आपको उनपर फिल्म बनाने के लिए प्रेरित किया ?
मलाला ने भारतीय सोशल रिफॉर्मर कैलाश सत्यार्थी के साथ एक ही समय पर शांति के लिए नोबेल पुरस्कार जीता है. वहां से कॉन्ट्रोवर्सिअल बात खत्म हो जाती है. यूनाइटेड नेशन ने जब दोनों देशों के दो बड़े आइडल को एक ही स्टेज पर नोबेल प्राइज दिया तो दोनों ने एकता वहीं पर दिखा दी थी कि हम दोनों साथ में हैं. हालांकि दोनों अलग-अलग दुनिया में काम करते हैं. एक एजुकेशन के लिए काम करते हैं तो एक बच्चों और चाइल्ड लेबर के लिए काम करते हैं. तो मलाला एक ऐसी लड़की है जो इतनी छोटी होकर भी कई तालिबानी टेररिस्ट ग्रुप्स के खिलाफ जिन्होंने गर्ल चाइल्ड एजुकेशन पर रोक लगा रखी थी. जिन्होंने महिलाओं के घर से बाहर निकलने पर रोक लगा रखी थी और महिला सशक्तिकरण के खिलाफ जो लोग थे. उनके खिलाफ इन्होने ब्लॉग्गिंग शुरू किया था. जिसका नाम 'गुल मकई' है. यह ट्रेंडिंग था. कुछ सुरक्षा कारण भी थे. ताकि मलाला नाम सामने ना आए. क्योंकी कुछ भी बात हो सकती थी. जान पर भी आ सकती थी. जब उन्होंने ब्लॉग करना शुरू किया तो न्यूयॉर्क टाइम्स ने भी उनको कवर किया. उनपर डॉक्यूमेंटरी बनी और पूरी दुनिया में उनका नाम जब रोशन होने लगा तब तालिबानियों ने उन्हें टारगेट बनाया और उनपर गोली चला दी. जब ये सब कुछ हुआ तब मलाला को दुनिया नहीं जानती थी. वो जो BBC में ब्लॉग्गिंग करती थी उसी के जरिए थोड़े लोग जानते थे, जिनते लोगों तक उनकी बात पहुंची थी. मुझे तब लगा कि ये जो लड़की है. इनकी जो जंग है जो इन्होने उन दहशतगर्दो के खिलाफ छेड़ी है जो एक मिनट में भी किसी की जान ले लेते हैं. इनका जो जज्बा है उसने मुझे इंस्पायर्ड किया था. वहां पर मैंने सोचा भी नहीं कि बॉर्डर है बीच में और हमारी आखिर अलग कंट्री है. पड़ोसी दुश्मन मुल्क है. मुझे वह लड़की ग्लोबल आइकन लगी. इसलिए मैंने ये सब्जेक्ट चुन लिया.
आपने अपनी तरफ से क्या-क्या रिसर्च किए इस स्टोरी के लिए ?
इसका रिसर्च तो बहुत लंबा चला है. ढाई साल का रिसर्च हुआ है. इसे मैंने डिप्लोमैटिक अंदाज में किया. क्योंकि मैं खुद रिप्रेजेंटेटर हूं और मेरी राइटर को सारी सुविधाएं मैंने उपलब्ध कराइ. इसकी राइटर भास्वती चक्रवर्ती हैं. लेकिन डिप्लोमैटिक तरीके से या फिर वहां के प्रेस और जर्नलिस्ट से या फिर वहां के आर्मी ऑफिसर्स से. जो भी हमको मिला था वह थोड़ा पक्षपाती और जोड़-तोड़ कर बताने वाला था. तो हमने वहां के लोकल लोगों से भी संपर्क किया. जो जमीनी लोग हैं. जिन्होंने वहां पर सर्वाइव किया या जो गवाह हैं. उनसे चीजें ली और उन चीजों की तुलना की. तो एक रास्ता सामने निकल के आया कि आया हमको ये लिखना है और यह लिखने में ही लग गया ढाई साल. और फिर जाके तैयार हुई. उसके बाद कास्टिंग का एक लंबा दौर चलता रहा. हमने फिल्म के अंदर वही कैरेक्टर लिए जो जैसे दिलखन में हैं. हूबहू रियल किरदारों के साथ हैं. डायलॉग भी वास्तविकता से जुड़े हैं.
आपने कास्टिंग कैसे लॉक की, रीम को कैसे ऑन बोर्ड लाए ? इसमें आप कोई टॉप 5 या टॉप 10 एक्ट्रेस भी ले सकते थे; आप ने रीम को ही क्यों चुना ?
रीम को चुनने के पीछे वजह यह थी कि वह थोड़ी अपने किरदार जैसी लगती है और उससे पहले उसने एक चाइल्ड आर्टिस्ट के रूप में अच्छा काम किया है. उसका किरदार शुरूआती दौर में सहमा-सहमा सा है. उसके बाद उसके रेगुलर किरदार का एक अलग लुक होगा. हाइट भी रियल मलाला कि 5 फिट 2 इंच तो इनकी हाइट भी सेम थी और जाना माना चेहरा मैंने इसलिए नहीं लिया क्योंकि जो हमारे भारतीय ऑडियंस हैं वो जब किसी जाने माने चेहरे को देखते हैं तो वह किरदार को नहीं देखते है बस उस चेहरे को देखते हैं जिसे वह जानते है.
जब आप एक ऐसे सब्जेक्ट को लेते हो जिसमें दो मुल्क शामिल होते हैं. थोड़ा संवेदनशील है तो आपने किस तरह की चुनौतियों का सामना किया.
चैलेंजेस तो बहुत थे. पहली बात तो जो वहां के लोग थे वो हमारे साथ सब शेयर करना नहीं चाह रहे थे. क्योंकि उनको लगता है कि हम पडोसी मुल्क हैं. तो उनको विश्वास दिलाने में बहुत समय लगा. मुझे कई धमकी बहरे कॉल्स भी आए. मेरे सोशल अकाउंट को भी हैक किया गया. मुझे इन दिनों भी कई इस तरह के मेल आ रहे हैं. वहां का सब कुछ अलग है और उसपर ध्यान देने भी काफी चैलेंजेस सामने आए.
इस फिल्म की कहानी के बारे लोग अधिक नहीं जानते है तो यह फिल्म कैसे लोगो के बीच जानी जाएगी ?
यही तो खास बात है कि एक लड़की को 14 साल में नोबेल मिल गया. उन्होंने 9 से 10 साल की उम्र में उन्होंने अपना काम शुरू कर दिया और उन्हें 14 साल की उम्र में गोली लगी. तो लोगो के लिए यह जानना दिलचष्प होगा कि वह रियल में क्या थी और उन्होंने कौन से संगठन के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी. ये बात लोगो तक पहुचानी है. हमारे हिंदुस्तान में हर घर में एक मलाला है. आज हम अगर बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ पर ध्यान दे रहे हैं. तो कही ना कहीं हम महिलाओं के ;प्रति चिंतित है.
क्या रियल मलाला से आपने बात करी या उन्होंने आपकी स्क्रिप्ट में कोई हेल्प की ?
फिल्म को बनाने के दौरान मैंने उनसे कोई मदद नहीं ली थी. ना ही कोई अनुमति ली थी. फिल्म को बनाने के बाद मैं इसे उनके घर ले गया था. जहां उनकी पूरी फैमिली ने फिल्म देखी थी. वहां वो आदमी भी मौजूद था जो मलाला का टेम्पो चला रहा था जब मलाला को गोली लगी थी. उस दौरान फिल्म को चार बार रोका गया क्योंकि वो लोग भावुक हो गए थे.
मलाला ने फिल्म को देखकर कुछ कहा कि उन्हें यह फिल्म कैसी लगी ?
उन्हें यह फिल्म अच्छी लगी. विकिपीडिया में मेरे जिक्र है इस बात का.
क्या इस फिल्म का 'जवानी जानेमन' और हिमेश रेशमिया फिल्म के साथ क्लैश इसपर असर डालेगी ?
नहीं बिल्कुल असर नहीं डालेगी. जो 'जवानी जानेमन' देखने जाएंगे वह इसे भी देखेंगे, जो यूथ है मुझे लगता है कि वह इसे जरूर देखेंगे. इसमें कोई भी कॉम्पटीशन नहीं है.
अमजद खान ने आगे बॉक्स-ऑफिस पर फिल्म की सफलता पर बात करते हुए कहा कि उनके लिए फिल्म की सफलता मायने रखती है. हालांकि यह ऑडियंस पर निर्भर करता है कि वह फिल्म को कितना प्यार देंगे.
(Transcript Credit: Anmol Awasthi)
(Source: PeepingMoon)