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PeepingMoon Exclusive - मुझे नहीं पता कि मैं वेब का न्यू पोस्टर बॉय हूं या नहीं लेकिन हां मैं एक्टर के तौर पर बहुत खुश हूं: अभिषेक बच्चन

20 साल और 66 फिल्मों के बाद, अभिषेक बच्चन ने आखिरकार अमेज़न प्राइम के 'Breathe: Into The Shadows' के साथ वेब की दुनिया में एंट्री मार ही ली हैं. PeepingMoon.com के साथ एक्सक्लूसिव टेल-ऑल इंटरव्यू में एक्टर ने बताया कि ये कुछ भी प्लानिंग के साथ नहीं सिर्फ एक सरासर संयोग था..अभिषेक ने ये भी खुलासा किया कि 'मयंक शर्मा और विक्रम मल्होत्रा, शो के निर्माता, मुझसे लगभग दो साल पहले मिले थे और उन्होंने मुझे बताया कि वे क्या करने की योजना बना रहे थे और ये कहानी सुनने के बाद मुझे इतनी पसंद आई की मैंने तुरंत हां बोल दी...सोचने का भी टाइम नहीं लिया था.'  'ब्रीद: इन टू द शैडोज़' एक 12 एपिसोड की Amazon ओरिजिनल सीरीज़ है जिसमें एक हताश पिता का सफ़र दिखाया जाएगा जो अपनी लापता बेटी को खोजने के लिए किसी भी हद्द तक जा सकता है. साइकोलॉजिकल क्राइम थ्रिलर के साथ ही ये बॉलीवुड के सुपरस्टार अभिषेक बच्चन का डिजिटल ऑन-स्क्रीन डेब्यू भी है. आईये अभिषेक बच्चन से जानने है इन दिलचस्प सवालो के जवाब.

 

सवाल- कई बार सेकंड सीजन इंप्रेस करने में फेल हो जाते हैं. इसके बावजूद आपने Breathe: Into The Shadows को चुना, क्यों ?
अभिषेक -आपने ऐसा क्यों कहा? अगर किसी सीरीज के सेकंड सीजन सफल नहीं हुए हैं तो वो आप जानते हैं, आपको नाम बता ने चाहिए. 

 

सवाल- जैसे की सेक्रेड गेम्स सीरीज का पहला सीजन काफा हिट हुआ था, लेकिन दूसरा सीज़न दर्शको को इतना प्रभावित नहींकर सका. यहां तक कि सैफ अली खान ने भी सीरीज के सफल नहीं होने को लेकर नाराजगी व्यक्त की थी. 
अभिषेक - हां लेकिन ऐसा कहना मुझे नहीं लगता सही है. जहां तक ब्रीथ की बात है,  मुझे लगता है कि इसका एक कारण यह भी है कि ब्रीथ: इन द शैडो को देखने के लिए आपको इससे पहले के सीजन को देखने की जरूरत नहीं हैं. यह पूरी तरह से अलग कहानी है. यह पूरी तरह से एक अलग दुनिया है. बस एक समानता ये है कि अमित साध और हृषिकेश जोशी दोनों ही सीजन में हैं. दोनों पहले सीजन में कबीर और प्रकाश के किरदार निभा रहे थे और अब वे सीजन 2 में भी हैं....बस यही समानता है. हां दोनों में एक ये भी समानता है कि दोनों की थीम एक हैं. आपने देखा होगा मैडी (आर माधवन) को सीज़न 1 में...यदि आपने सीजन एक देखा, तो थीम ये था कि आप अपने परिवार के लिए कहां तक जा सकते हैं ? मुझे लगता है कि केवल यही एक चीज है....तो यह पूरी तरह से एक अलग दुनिया है...इसलिए मैं यह नहीं कह सकता कि इसे सीक्वल कहा जाए या इसे सीज़न दो कहा जाए, क्योंकि ये दो अलग अलग उद्देश्यों में बुनी कहानियां हैं. 

सवाल- आपने सीजन 2 में आर माधवन को रिप्पलेस किया हैं, जिनको पहले सीजन में बहुत पसंद किया गया था, तो आपको सतर्क या सावधान रहने की जरूरत है ?
अभिषेक- हां, वह यह डिजर्व भी करते हैं. मैडी बहुत टैलेंटेड है इसमें कोई शक नहीं है. मेडी मेरे बहुत अच्छे दोस्त हैं साथ ही वो उतने ही अच्छे वह इंसान भी हैं. और अपनी जिम्मेदारियां पूरी ईमानदारी से निभानी है उन्होंने सीजन वन में बहुत ही शानदार काम किया है. मुझे लगता है उन्होंने अपने किरदार को बहुत ही फैंटास्टिक तरीके से निभाया था. तू इसमें मुझे सावधान याद सतर्क रहने की क्या जरूरत है ? मुझे क्यों डरना चाहिए ? मेरा मतलब यह है कि मेडी नहीं जो किया उन्होंने अपने तरीके से किया और मैं जो मैंने किया वह मैंने अपने तरीके से किया. मेरा मानना है कि फैसले सीजन वन देखा है और सीजन वन को बहुत प्यार दिया है तो इस सीरीज का एक फैन बेस तैयार हो चुका है और उन सभी को सीजन टू का बेसब्री से इंतजार भी है. तो मुझे लगता है कि बस आपको इतना सतर्क रहना होगा कि आपको बहुत बेहतर काम करना है 

 

सवाल- आपने कहा कि आपने कंटेंट की वजह से एक्सेप्ट की थी क्योंकि कई कंटेंट आप फिल्मों में नहीं कर पाते बल्कि ओटीटी पर कर सकते हैं. आपको नहीं लगता अगर इस पर कंटेंट पर एक अच्छी कमर्शियल फिल्म बनती ?
अभिषेक- यह बहुत इंटरेस्टिंग क्वेश्चन है. मैं आपको बताना चाहूंगा कि मेरा मतलब क्या था. मुझे इसको समझाने का मौका दीजिए कि मैंने यह क्यों कहा था. देखें यह सीरीज वेब सीरीज के ताने-बाने में बुनी गई है. जिसमें 12 एपिसोड्स है...और हर एक एपिसोड लगभग 1 घंटे का है. लेकिन आप जानते हैं कि एक एक फिल्म की एवरेज लंबाई कम से कम 2 या 2.30 या ज्यादा से ज्यादा 3 घंटे की होती है. तो इस पूरी कहानी पर तो कम से कम चार या पांच फिल्में बनानी पड़ती क्योंकि स्टोरी से तभी जस्टिफाई हो पाता. क्योंकि स्क्रीनप्ले और कैरेक्टर को एक फिल्म में समेटना बहुत ही मुश्किल है

 

तो एक 12 घंटे की कहानी को 2 घंटे में दिखाना बहुत ही मुश्किल है. और अगर आपको कहानी में बहुत ज्यादा छेड़खानी करते हो तो वह अपनी मूल कहानी से भटक जाती है. क्योंकि एक लेखक अपनी कहानी को इस हिसाब से लिखना है उसको दोबारा छेड़ना कहानी के साथ न्याय नहीं है. मुझे ऐसा लगता है वेब सीरीज और फिल्मों में यही अंतर है क्योंकि दोनों का लिखने का तरीका अलग है. जब आप फिल्म लिखते हैं तब आपको कहानी 2 या 3 घंटे में समेटनी होती है. आपको अपना मैसेज एक लिमिट समय में देना होता है और फैंस को समझाना होता है कि आप क्या कहना चाह रहे हैं लेकिन वेब सीरीज में ऐसा नहीं है आपके पास बहुत समय होता है अपनी बात समझाने के लिए डिटेल में बताने के लिए काफी टाइम होता हैं. कई बार कई चीजें आप बहुत कम में नहीं समझा सकते हैं तो उसके लिए ओटीटी प्लैफॉर्म अच्छा हैं. 
 

तो मुझे लगता है एक यही फर्क है, Breathe एक ग्रेट फिल्म नहीं बन सकती है. क्योंकि आप डिटेलिंग कहानी के प्लॉट, ट्विस्ट एंड टर्न, सस्पेंस के साथ कॉम्प्रोमाइज नहीं कर सकते हैं और इतनी बड़ी कहानी को इतना छोटे रूप नहीं बना सकते हैं. मुझे नहीं लगता जो आईडिया ओटीटी पर हिट रहे वो फिल्मों में भी काम करेगा...आई डोंट थिंक सो.

सवाल- आपने यह भी कहा था कि की वेब शो में बॉक्स ऑफिस वाला प्रेशर नहीं झेलना पड़ता है ?
अभिषेक- मैंने यह नहीं कहा... मुझसे मीडिया ने सवाल पूछा कि ... अभी आप पर प्रेशर नहीं है.... नहीं यह गलत है मुझे यह लगता है कि यहां पर भी प्रेशर होता है.

 

सवाल- क्योंकि वेब प्लेटफॉर्म पर भी, ऑडियंस समान रूप से निर्णय लेती है ?
अभिषेक - जी हां बिल्कुल, मीडिया जिस दबाव के बारे में हम से बात करता है... ओपनिंग डे... या आपका ओपनिंग वीकेंड या ओपनिंग विक...ये निर्धारित किया जाता है कि फिल्म अच्छा कर रही है या फिल्म की कमाई सही है या नहीं ? आपकी फिल्म हिट है या फ्लॉप का निर्णय ऐसी किया जाता है कि आपके फिल्म के कितने टिकट बेचे हैं कितनी ऑडियंस को यह फिल्म पसंद आ रही है. ...मुझे ऐसा लगता है जैसे भी है सही है. यहां पर नंबर ऑफ ऑडियंस है. वेब सीरीज रिलीज होने के बाद कितने ऑडियंस आपकी सीरीज को देख रहे हैं... जब एक फिल्म रिलीज होती है चाहे वह थिएटर में हो या ओटीटी प्लेटफॉर्म पर दोनों ही जगह एंड ऑफ द डे यहीं पर रहता है कि क्या आपका काम लोगों को पसंद आया है या नहीं

 

सवाल- आपके पापा की यानी अमिताभ बच्चन की आखिरी फिल्म गुलाबो सिताबो डिजिटल प्लेटफॉर्म पर ही रिलीज हुई थी, क्या अपनी फिल्म देखी है ? 
अभिषेक- हां जरूर, मैंने यह फिल्म देखी है और यह एक बहुत ही शानदार फिल्म है. 

सवाल- क्या आप को अच्छा लगता अगर ये फिल्म बिग स्क्रीन पर रिलीज होती ?
अभिषेक- यह कुछ नया है. मुझे ऐसा लगता है कि हमें देश की हालिया स्थिति को देखकर ये समझना चाहिए एक्सेप्ट करना चाहिए और इस चीज को बढ़ावा देना चाहिए. मुझे देखकर दुख होता है कि आई मीन मैं इस इंडस्ट्री को देखकर बड़ा हुआ हूं. मैं यहीं पर जन्मा हूं.. मेरी फैमिली के लिए ये इंडस्ट्री ही सब कुछ है.. फिल्म को थिएटर में देखने का मजा ही अलग है लेकिन मुझे ये भी  दुख है ..कि कुछ सेफ्टी कारणों की वजह से इस वक्त हमारे थिएटर बंद है और वह सही है खैर... लेकिन मुझे लगता है ओटीटी प्लेटफॉर्म एक नया तरीका है और शानदार भी है. यहां पर भी ऑडियंस आपके काम को देखती है और आपने अपना काम अच्छा किया है तो उसको स्वीकारती भी है. मेरे ख्याल से यह बहुत अच्छा भी है मुझे इस चीज से कोई कंप्लेन नहीं है कि फिल्म ओटीटी पर रिलीज हो या थिएटर में. लेकिन मैं इस बात से भी बहुत खुश हूं कि मैं इसी प्लेटफार्म पर बहुत जल्दी अपने आपको भी देखूंगा और मेरे पास अपना काम दिखाने के लिए एक आउटलेट है.


सवाल- 'Breathe 2' वेब सीरीज के बाद, आप की दो बड़ी फिल्में.. लूडो और द बिग बुल भी वेब रिलीज हो रही है. क्या अभिषेक बच्चन वेब का न्यू पोस्टर बॉय है ?
अभिषेक- हंसते हुए... मुझे नहीं पता. बस में इन फिल्मों में काम करने से बहुत खुश हूं. मैं हमेशा कहता हूं कि मैं बस फिल्म में काम करता हूं... फिल्म कहां रिलीज होगी भले ही थिएटर में हूं.... टीवी पर हो.. ओटीटी प्लेटफॉर्म पर हो... यह सब एक प्रड्यूसर डिसाइड करता है, मैं नहीं. मैं बस इस बात से खुश हूं कि मैंने इन फिल्मों में काम किया है और यह बहुत अच्छी फिल्में. 

 

सवाल- आप वेब पर कौन से शो देखना पसंद करते हैं जो आपको इस प्लेटफार्म के लिए एक्साइटिड करते हैं ?
अभिषेक- ऐसे बहुत सारे शोज है.. मैं ओटीटी प्लेटफॉर्म पर कई सालों से शो देख रहा हूं. यहां पर जिस तरीके का कंटेंट है जिस तरीके का काम है जो जो चीजें प्रोड्यूस्ड की जा रही है यह सब बहुत शानदार है. पर मैं यह जरूर कहना चाहूंगा कि यह कमाल एक राइटर का होता है. एक राइटर की कहानी होती है जो आपको इस प्लेटफार्म पर खींच सकती है. हमें ओटीटी के लिए मार्केटिंग टूल्स की जरूरत नहीं पड़ती है. ऑडियंस को थिएटर में खींचने के लिए जितनी मार्केटिंग करनी पड़ती है उतनी यहां जरूरत नहीं होती है क्योंकि कोई भी सीरीज या फिल्म सिर्फ आपसे एक फोन की दूरी पर होती है. यह पूरा एक राइटर का ही खेल होता है कि वह आपको अपनी कहानी में कितना बांध सकता है. यहां आपको अपना काम करने की अपनी कहानी कहने की एक फ्रीडम होती है. एक राइटर अपनी लंबी कहानी में ऑडियंस को बांध पाता है. एक आर्टिस्ट्स परफॉर्म करता है... अगर अपना काम ईमानदारी से किया तो डेफिनेटली ऑडियंस को पसंद करती है.

पूरा इंटरव्यू यहां देखिये. 

(Transcribe By: Varsha Dixit)

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