फिल्म इंडस्ट्री में मनोज बाजपेयी उन अभिनेताओं में से एक है जो सहजता से किसी भी किरदार में ढल जाते हैं. इंडस्ट्री में उन्होंने अपने लिए एक अलग जगह बनायीं है और नए और महत्वकांछी अभिनेताओं के लिए बेंचमार्क बनाया है. मनोज अभी भी 67वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीत का जश्न मना रहे हैं. पीपिंगमून. कॉम से बातचीत में मनोज ने बॉलीवुड, अवॉर्ड और कोर्स, फिल्म्स के बारे में बात की. बातचीत के दौरान मनोज ने खुलासा किया कि वह क्यों चाहते थे कि 'सोनचिरैया' राष्ट्रीय पुरस्कारों जीतें. उन्होंने मेनस्ट्रीम फिल्म अवॉर्ड्स के बारे में बात की जो अपनी क्रेडिबिलिटी खो रहे हैं और क्या फिल्म निर्माता कभी उन अभिनेताओं के प्रति अपनी धारणा बदलेंगे जो प्रतिष्ठित समारोहों में बड़ी जीत हासिल करते हैं.
मनोज से जब पूछा गया कि क्या तीसरे राष्ट्रीय पुरस्कार के बाद फिल्म निर्माता अब एक बदली हुई धारणा के साथ उनसे संपर्क करेंगे? तो उन्होंने कहा, 'कब से हमारी इंडस्ट्री अवॉर्ड्स को सीरियसली लेने लगी. अगर ऐसा है तो उन्होनें अपना व्यवहार बदल दिया होता और बहुत पहले से एक्टर्स को अलग नजरिये से देखते. राष्ट्रीय पुरस्कार निश्चित रूप से मेरे लिए एक उपलब्धि है. यह तीसरा अवॉर्ड है लेकिन यह एक व्यक्तिगत उपलब्धि होने जा रही है. मुझे नहीं लगता कि इंडस्ट्री आपको अलग तरह से देखती है. वो आपको उसी तरह से देखेंगे जैसे वे इतने सालों से देखते आये हैं. मुझे नहीं लगता कुछ बदला है. मेरे लिए भी कुछ नहीं बदला. जब दुसरे दिन आप उठते हो तो आप कुछ और करने के लिए यैयार होते हो. इसलिए, पुरस्कार परिवार और दोस्तों के साथ व्यक्तिगत स्तर पर जश्न मनाने के लिए होते हैं, जो लोग वास्तव में आपकी देखभाल करते हैं या वे लोग जो आपकी कुछ उपलब्धियों को देखते हुए खुश होते हैं.
'छीछोरे' को नेशनल अवॉर्ड मिलने से मनोज खुश थे लेकिन वो चाहते थे कि 'सोनचिरैया' को भी राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया जाये, इसपर उन्होंने कहा, 'इसके दो कारण हैं. एक व्यक्तिगत है क्योंकि मैं इसका एक हिस्सा था. मुझे लगता है कि यह मेरी फिल्मोग्राफी में बहुत महत्वपूर्ण फिल्म है. मुझे यह भी लगता है कि अभिषेक चौबे ने एक मास्टरपीस फिल्म बनायीं ंथी. सभी कलाकार, सभी डिपार्टमेंट अच्छे थे. कई कारणों से मुझे लगता है कि सोनचिरैया को सम्मानित किया जाना चाहिए था. न केवल राष्ट्रीय पुरस्कार में बल्कि मेनस्ट्रीम के सभी पुरस्कारों में भी. कहीं न कहीं मुझे लगता है कि 'सोनचिरैया' को मेनस्ट्रीम के सभी पुरस्कारों में उसका बकाया नहीं मिला.'