शाहिद कपूर का ऐसा अवतार आपने पहले कभी नहीं देखा होगा. खून से लथ-पथ शाहिद हाथ में तलवार लिए खड़े हैं. उन्हें देख ऐसा लग रहा है मानों गुस्से में वो किसी को देखे जा रहे हैं . सफेद राजस्थानी कुर्ते में राजा रावल रतन सिंह पूरी तरह लाल दिखाई दे रहे है. आंखों में काजल, लंबे बाल, माथे पर तिलक लगाएं और दाढ़ी मूछों के साथ उनका ये अवतार खूब जंच रहा है.
इससे पहले नवरात्र के पहले दिन रानी पद्ममिनी का पोस्टर सोशल मीडिया पर जारी किया गया था. पोस्टर में दीपिका पादुकोण पद्मावती के अवतार में हाथ जोड़े, सिर पर बोड़ला पहने और हाथों में कड़ा पहने दिखाई दे रही हैं. बता दें, कुछ दिनों पहले खबर आई थी कि शूटिंग में हुई देरी के चलते फिल्म की रिलीज डेट आगे हो सकती है और यह फिल्म अगले साल फरवरी में रिलीज होगी लेकिन फिल्म के पोस्टर के साथ ही इसकी रिलीज डेट भी सामने आ गई है.
दरअसल , कुछ दिन पहले शाहिद कपूर की एक फोटो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुई जिसमें वो फिल्म में किरदार के लिए तलवारबाजी सीखते दिखाई दे रहे हैं. फोटो में शाहिद राजपूत स्टाइल में तलवारबाजी की ट्रैनिंग लेते दिखाई दे रहे हैं. तलवारबाजी की ये ट्रेनिंग 24 दिनों की है.
कौन थे राजा रावल रतन सिंह ?
राजा रतन सिंह रावल सामनर सिंह के पुत्र थे. एक बार रानी पद्मिनी के पीहर का एक मुल्जिम चित्तौड़ आया. मुल्जिम बहुत बड़ा जादूगर था. इसकी कला से राजा रतन सिंह बड़े खुश हुए लेकिन एक दिन रतन सिंह उस जादूगर से बहुत नाराज हैए वुर उसे अपनी सेवा से खारिज कर दिया. ये मुल्जिम दिल्ली में अल्लाउद्दीन खिलजी के दरबार पहुंचा और वहां इसकी कलाकारी देख सुल्तान खिलजी खुश हुए. रतन सिंह से बदला लेने के लिए उसने एक दिन दरबार में सुल्तान के सामने रानी पद्मिनी के रूप का वर्णन किया.
सुल्तान ने राजा रतन सिंह को एक खत लिख रानी पद्मावती को दिल्ली भेजने की बात कही इसके जवाब में रतन सिंह ने भी एक खत लिखा, जिसके बाद सुल्तान ने अगले दिन फौज के साथ चित्तौड़ पर हमला कर दिया. जब अलाउद्दीन चित्तौड़ के करीब आया तो रतन सिंह के फौजियों ने महल से निकलकर कई छोटी बड़ी लड़ाइयां लड़ी. आखिरकार थक हारकर सुल्तान ने रतन सिंह की तरफ झूठ दोस्ती का हाथ बढ़ाया और दुर्ग से बाहर ले जाकर उसे बंदी बना लिया.
राजा रत्न सिंह के गोरा- बादल नामक दो योद्द्ग थें जो राजा को छुड़ाने की योजना बना रहे थे. एक दिन दोनो योद्धाओं ने योजना बनाई और सुल्तान को खत लिखा कि रानी पद्मिनी एक बार राजा से मिलना चाहती है इसलिये वो सैकड़ो दासियों के साथ आएंगी. अलाउद्दीन इस प्रस्ताव से बहुत खुश हुआ.
रानी के साथ कुल 800 डोलियां तैयार की गई और प्रत्येक डोली के साथ 16-16 राजपूत कहांरो के भेष में भेजे गए और इस तरह हजारो राजपूतो ने डोलियों में हथियार भरकर अलाउद्दीन खिलजी की तरफ प्रस्थान किया.
योद्धा गोरा-बादल राजपूत समेत रतन सिंह के पास पहुंचे और उन्हें घोड़े पर बिठा दुर्ग के लिए रवाना किया. रतन सिंह को बंदी बना ना देख अलाउद्दीन ने सेना को हमले का आदेश दे दिया. इस लड़ाई में सुल्तान के हजारों लोग मारे गए. 6 महीने और 7 दिन की लड़ाई के बाद राजा रतन सिंह वीरगति को प्राप्त हो गए. इसके बाद सुल्तान ने दुर्ग पर कत्ले आम का हुक्म दिया जिससे मेवाड़ के हजारों नागरिको को अपनी जान गवानी पड़ी.
रतन सिंह के वीरगति प्राप्त होने के बाद सुल्तान ने चित्तौड़ दुर्ग बेटे खिज्र खां को सौंप दिया और चित्तौड़ का नाम बदलकर खिज्राबाद रखा.