'महिला सशक्तिकरण' यह शब्द आपने पिछले कुछ सालों में बहुत सुना होगा! और इसका श्रेय एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री को भी जाता है. फिल्में, टीवी शोज, शॉर्ट फिल्म्स और अब वेब सीरीज के जरिये भी वूमेन सेंट्रिक कंटेंट को बढ़ावा दिया जा रहा है. कहीं महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले ज्यादा मेहनती और सक्षम दिखाने की कोशिश की गई है तो कहीं ये बताया गया है कि महिलाओं का पुरुषों के साथ तुलना करना ही गलत है. लेकिन आपको क्या लगता है कि महिलाओं को इस तरह से स्ट्रॉन्ग दिखाने का यह सिलसिला अभी कुछ सालों से चल रहा है? नहीं! आप यकीन नहीं करेंगे मगर एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री इस टॉपिक पर 80 के दशक से काम कर रही है.... यह कहना गलत नहीं होगा कि शायद इस टॉपिक को हम तक इतनी डिटेल्स के साथ पहुंचने में तकरीबन 4 दशक लग गए!
सास-बहू ड्रामा शो के बारे में तो बहुत सारे शोज लिखे और देखे गए हैं जो कहीं ना कहीं पुरानी मानसिकता को मजबूत रखने के लिए जिम्मेदार हैं. ले चलते हैं आपको 80 के दशक में, जब दौर था दूरदर्शन का. आपको बता दें कि उस समय भी कुछ ऐसे शोज बने थे जो वास्तव में एंटरटेनमेंट के साथ साथ समाज की मानसिकता बदलने में भी आगे रहे हैं, वो भी बिना उपदेश दिए. हम यहां आपको कुछ ऐसे भारतीय टीवी शो के बारे में बताएंगे, जिसने प्रभावशाली कहानियों के माध्यम से बदलाव लाने की कोशिश की है.
उड़ान
(PC: Doordarshan)
आईपीएस अधिकारी कंचन चौधरी भट्टाचार्य की सच्ची कहानी पर आधारित, उड़ान 80 के दशक के अंत में और 90 के दशक की शुरुआत में प्रसारित होने वाले पहले भारतीय टीवी शो में से एक है, जो महिला सशक्तीकरण पर केंद्रित था. यह शो कल्याणी सिंह नाम की एक युवा लड़की की कहानी है, जो हर स्तर पर लैंगिक भेदभाव से जूझते हुए आईपीएस अधिकारी बन जाती है. एक स्ट्रॉन्ग वूमेन लीड रोल के अलावा, शो में एक पमेल लीड (शेखर कपूर) भी थे, जो महिला अधिकारी को अपने बराबर मानते थे. यह शो ऐसे समय में आया जब महिलाओं को वर्दी में देखना असामान्य था और इस शो ने कई महिलाओं को अपने सपनों को पूरा करने के लिए एक इंस्पीरेशन का काम किया.
रजनी
(PC: Doordarshan)
1994 में राष्ट्रीय प्रसारक दूरदर्शन पर प्रसारित, 'रजनी' हर भारतीय गृहिणी के चेहरे के साथ-साथ उनकी समस्याओं की आवाज बन गई थी. स्वर्गीय प्रिया तेंदुलकर द्वारा अभिनीत मुख्य किरदार रजनी ने गृहिणियों की दिन-प्रतिदिन की समस्याओं और उनके सहज समाधानों को चित्रित किया. रजनी एक घरेलू नाम बन गई. इसने गृहणियों को भ्रष्टाचार से लेकर रोजमर्रा की चुनौतियों से निपटने की दिशा में नारी सशक्तिकरण की एक नई समझ दी.
शांति
(PC: Instagram)
एक औरत की कहानी: मंदिरा बेदी द्वारा चित्रित 'शांति', फिल्म इंडस्ट्री के दो प्रभावशाली और धनी भाइयों द्वारा बेटी का बलात्कार किए जाने के बाद एक मां-बेटी की न्याय की लड़ाई की कहानी है. पीड़ित होने के बावजूद, शांति ने बताया कि महिलाएं कैसे एकतरफा लड़ाई लड़ सकती हैं और जीत सकती हैं. इसे पहली बार 1994 में प्रसारित किया गया. इसे आज भी एक बेहतरीन भारतीय टीवी शो के रूप में याद किया जाता है.
मैं कुछ भी कर सकती हूं
राष्ट्रीय प्रसारक दूरदर्शन की शिक्षा और सशक्तिकरण की भूमिका को दर्शाते हुए यह शो एक युवा डॉक्टर, डॉ. स्नेहा माथुर की जीवन यात्रा के चारों ओर घूमती है. डॉ. माथुर मुंबई में अपने आकर्षक करियर को छोड़कर अपने गांव प्रतापपुर में काम करने का फैसला करती है. यह शो पुरातन सामाजिक मानदंडों और लिंग चयन, यौन और प्रजनन स्वास्थ्य, महिलाओं के स्वास्थ्य व स्वच्छता से संबंधित मुद्दों पर केन्द्रित है. डॉ. स्नेहा माथुर के नेतृत्व में, प्रतापपुर की महिलाएं सामूहिक प्रयास से अपने अधिकारों के लिए लड़ती हैं. 2014 में शुरू हुए इस शो ने अपना दो सीजन सफलतापूर्वक पूरे कर लिए हैं और वर्तमान में इसका तीसरा सीजन दिखाया जा रहा है. भारत की महिलाओं, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, डॉ. स्नेहा द्वारा समाज में बराबरी का दर्जा देने की मांग को प्रोत्साहित किया गया है.
इन सभीं के अलावा 'सांस', 'हीना', 'तृष्णा', 'आरोहण', 'औरत', 'कोरा कागज', 'साया'... जैसे कई शोज भी इस लिस्ट का हिस्सा हैं. इसके बाद भी कई शोज, फिल्में और वेब सीरीज बनी है लेकिन, असल जिंदगी में उतरकर देखें तो इनका असर हमपर कुछ खास नहीं हुआ है. MeToo जैसा मूवमेंट आज 2019 में उठा... और खूब चर्चा भी हुई मगर, इसके बाद क्या ? महिलाओं को लेकर लोगों की सोच बदली? क्या आपको नहीं लगता कि पिछले चार दशक से अब तक... ये टॉपिक खत्म हो जाना चाहिए था? इसपर बात करने की या फिल्में बनाने की जरुरत ही नहीं होनी चाहिए थी... क्या हम 'महिला सशक्तिकरण' ये शब्द अब भी नहीं समझ पाए?
(Source: Peepingmoon)