बॉलीवुड से लेकर हॉलीवुड तक अपने अंभिनय की छाप छोड़ने वाले अभिनेता इरफान खान ने हर उम्र के दर्शकों को प्रभावित किया है. उनके एक्टिंग की दीवानगी उनके चाहने वालों के सिर चढ़कर बोलती है. कहते हैं कि एक्टिंग में सबसे अहम रोल आंखों का होता है. एक शानदार कलाकार वही है जिसे अपनी आंखों से बात करना आता हो और इरफान को तो यह कला जन्म से ही मिली हुई है. बॉलीवुड में तो यहां तक कहा जाता है कि उनकी आंखों के लिए खास तरह के संवाद लिखे जाते हैं. बगैर फिल्मी बैकग्राउंड के बीते 28 सालों से अपनी पहचान बनाने के लिए डटा रहा. उनके सीरियल्स से लेकर फिल्मों तक में हर छोटे से किरदार को भी ऐसे निभाया, जैसा उसका आखिरी मौका है. इसी का परिणाम है कि चंद्रकांता और चाणक्य जैसे सीरियलों से लेकर सलाम बॉम्बे तक के हर किरदार में उन्हें नोटिस किया गया. उनकी फिल्में बेशक बॉक्स ऑफिस पर 100 करोड़ी क्लब में शामिल होने की गारंटी न रखती हों लेकिन क्रिटिक्स की तारीफें उन्हें हमेशा मिलती हैं.अपने बेजोड़ अभिनय के दम पर इरफान सारी बाधाओं को पार किया और जब भी सिनेमा में बात एक्टिंग की आएंगी...तो उनका कोई सानी नहीं. उनकी पहली फिल्म 'सलाम बॉम्बे' थी, जिसमें उन्होंने छोटा सा रोल अदा किया था.
वैसे तो इरफान के द्वारा निभाए गए हर रोल यादगार होते हैं, लेकिन 'पान सिंह तोमर', 'द लंचबॉक्स', 'तलवार', 'हिंदी मीडियम', 'मकबूल', 'स्लमडॉग मिलेनियर', 'लाइफ ऑफ पाई', 'पिकू', 'कारंवा', बिल्लू, 'साहेब बीवी और गैंगस्टर रिटर्नस', 'करीब करीब सिंगल', 'द नेम सेक', 'हैदर', 'हासिल', 'सात खून माफ', 'द वॉरियर', 'सलाम बाम्बे' में इरफान के निभाए किरदार हमेशा याद रहेंगे. लेकिन हम आपको इरफान के कुछ किरदारों के बारे में जो खासे फेमस हुए. ले चलते हैं आपको इरफान के यादगार किरदारों के सफर में....
फिल्म- हासिल (2003)
किरदार- रन विजय सिंह
‘हासिल’ के उनके इस बेमिसाल किरदार के लिए यह बात तो डंके की चोट पर कही जा सकती है कि बड़े परदे पर उन्हें सिर्फ और सिर्फ एक मौका मिलने की देर थी. ‘हासिल’ के कल्ट फिल्म बन जाने की एक बड़ी वजह इरफान हैं. अपने एंट्री सीन से ही वे इस कदर प्रभावित कर देते हैं कि फिर उनके अभिनय के मोहपाश से निकल पाना नामुमकिन हो जाता है. अपने पहले सीन में वे कुछ लोगों से बचकर बदहवास भाग रहे होते हैं. ज़ीने और खिड़कियों से कूदते और लंबे गलियारों में भागते इरफान खुली-खुली आंखों और अधखुले मुंह के साथ, हांफते हुए पहली बार नजर आते हैं. इस एक दृश्य में दूर-दूर तक कोई बनावट नज़र नहीं आती और इसके बाद ठेठ इलाहाबादी लहज़े में उन्हें संवाद बोलते हुए देखकर ही आपके मन में किसी इलाहाबादी लड़के की स्पष्ट छवि बन जाती है. इस फिल्म में ज्यादातर वक्त छात्र राजनीति की गंदगी और हिंसा देखने को मिलती है और यह एक्शन या संवादों से ज्यादा इरफान के चेहरे पर नजर आती है. क्लाइमैक्स में जिमी शेरगिल के ‘हमने तुमको अपना भाई माना’ के उलाहने का जवाब जब इरफान ‘अबे हमने कहा था बे’ कहकर देते हैं तो कई बार सुनने के बाद भी खिसियाहट वाली हंसी छूट ही जाती है. फिल्म 'हासिल' के लिए इरफान खान को उस साल का 'बेस्ट विलेन' का फिल्मफेयर अवॉर्ड मिला था.
फिल्म- मकबूल (2003)
किरदार - मियां मकबूल
मकबूल इरफान खान की सबसे बेहतरीन फिल्मों में से एक मानी जाती है. फिल्म में पूरी तरह से गैंगस्टर और अंडरवर्ल्ड को दिखाया गया था जिसे लोगों ने काफी पसंद किया था. ये फिल्म विलियम शेक्सपियर की किताब 'मैकबेथ' पर आधारित थी. फिल्म में इरफान के अलावा तबु, नसीरुद्दीन शाह, ओमपुरी जैसे एक से बढ़कर एक दमदार एक्टर थे. फिल्म की कहानी शेक्सपियर के नाटक मैकबेथ का रूपांतरण है, जिसमें मकबूल (इरफान खान) जहाँगीर खान (पंकज कपूर) का दाहिना हाथ है जो एक डॉन है. निम्मी (तब्बू) जहाँगीर खान की रखैल है, लेकिन वह और मकबूल चुपके से प्यार करने लगते हैं। निम्मी मकबूल की महत्वाकांक्षाओं को प्रोत्साहित करती है और उसे डॉन के रूप में जहाँगीर खान को मारने के लिए राजी कर लेती है। इस किरदार के बाद से ही इरफान खान ने अपनी फीस बढ़ाई और वह सिर्फ चुनिंदा निर्देशकों के साथ काम करने लगे.
फिल्म- द नेमसेक (2006)
किरदार- अशोक
फिल्म 'द नेमसेक' में इरफान ने अशोक गांगुली नामक किरदार को पर्दे पर उतारा था. फिल्म में उनके अभिनय की हर जगह तारीफ हुई. इस फिल्म में बॉलीवुड अभिनेत्री तब्बू के साथ इरफान पर्दे पर नजर आए थे.
फिल्म- लाइफ इन ए मेट्रो (2007)
किरदार - मोंटी
यह मुंबई में रहने वाले नौ लोगों की कहानी है, और इसमें शादी, प्यार और लिव इन जैसी कहानियों को निर्देशक अनुराग बासु ने बहुत खूबसूरती से पिरोया. इन दिनों इसकी सीक्वेल की तैयारी तच लही है. लेकिन दो क्लासिक फिल्मों द अपार्टमेंट और ब्रीफ एनकाउंटर पर बनी साल 2007 की फिल्म खुद एक क्लासिक फिल्म बन चुकी है. इरफान के नाम का जलवा ऐसा रहा कि ये उस साल की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्मों में शामिल रही.
फिल्म- पान सिंह तोमर (2011)
किरदार - पान सिंह तोमर
इरफान ने एक इंटरव्यू में कहा था कि, 'मेरे जीवन में कुछ ही बड़े बदलाव करने वाले मौके आए हैं और 'पान सिंह तोमर' उनमें से एक है.' यह बहुत ही अलग तरह से बनाई गई फिल्म थी और जिस तरीके से बनाई गई थी, वह बेहद सफल रही. फिल्म ने एक्टिंग और बेस्ट फीचर फिल्म के नेशनल अवार्ड भी जीते. निर्देशक तिग्मांशु धूलिया की फिल्म में इरफान ने पान सिंह तोमर की मुख्य भूमिका निभाई थी, जो राष्ट्रीय स्तर का एथलीट चैंपियन था और बाद में डकैत बन गया था. कहानी वर्ष 1958 से '70 के दौर की है, जिसमें 'पान सिंह तोमर' की ज़िन्दगी के कई रंग हैं. इरफान के किरदार की खास बात ये थी कि फिल्म में इरफ़ान की एक्टिंग के साथ डायलॉग्स चुटीले थे. सीरियस सब्जेक्ट को भी मजेदार तरीके से बनाया थी. इसी फिल्म के साथ इरफान को हॉलीवुड और ब्रिटिश सिनेमा ने नोटिस किया और उन्हें हॉलीवुड के बड़े प्रोजेक्ट ऑफर होने लगे.
फिल्म- लाइफ ऑफ पाई (2012)
किरदार- पाई
यान मार्टेल का उपन्यास 'लाइफ ऑफपाई' देश-विदेश में खूब पढ़ी गई है. इस उपन्यास ने पूरी पीढ़ी को प्रभावित किया है. विश्वप्रसिद्ध फिल्मकार आंग ली ने इसी उपन्यास को फिल्म का रूप दिया है. 3 डी तकनीक के उपयोग से उन्होंने मार्टेल की कल्पना को पर्दे पर धड़कन दे दी है. पाई अपने परिवार के साथ कनाडा के लिए समुद्र मार्ग से निकला है. रास्ते के भयंकर तूफान में उसका जहाज डूब जाता है। मां-पिता और भाई को डूबे जहाज में खो चुका पाई एक सुरक्षा नौका पर बचा रह जाता है. उस पर कुछ जानवर भी आ गए हैं. आखिरकार नाव पर बचे पाई और बाघ के बीच बने सामंजस्य और सरवाइवल की यह कहानी रोमांचक और रमणीय है. किशोर पाई की (सूरज शर्मा) की कहानी युवा पाई (इरफान खान) सुनाते हैं. अपने ही जीवन के बारे में बताते समय पाई का चुटीला अंदाज कहानी को रोचक बनाने के साथ एक दृष्टिकोण भी दिया. इरफान युवा पाई के रूप में प्रभावित करते हैं। साफ दिखता है कि वे कैसे किरदारों को आत्मसात करने के साथ उसकी विशिष्टताओं को अपने बॉडी लैंग्वेज से जाहिर करते हैं.
फिल्म - लंचबॉक्स (2013)
किरदार - साजन फर्नांडिस
द लंचबॉक्स एक रोमांटिक फिल्म थी जिसे रितेश बत्रा ने निर्देशित किया था. फिल्म की कहानी मुंबई में बेस्ड है और इसमें इरफान के साथ निमरत कौर हैं, जो इला का किरदार अदा कर रही हैं. दरअसल इला अपने पति के लिए खाना बना कर डिब्बा भेजती है और डिब्बेवाले की गलती से वह पहुंच जाता है इरफान के किरदार साजन के पास. एक अनोखी इस प्रेम कहानी ने इरफान को बॉक्स ऑफिस का सुपर स्टार बना दिया. इरफान के करियर की ये उस साल तक की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली हिंदी फिल्म रही.
फिल्म- तलवार (2015)
किरदार- अश्विन कुमार
कुछ साल पहले दिल्ली मव हुए आरुषि मर्डर केस में उसके माता पिता को दोषी ठहराया गया. मेघना गुलज़ार की फ़िल्म तलवार इसी केस के कुछ ऐसे पहलुओं को सामने लाती है जिन्हें देख आप भी सोचने पर मज़बूर हो गए थे कि क्या हमारा कानून सही और गलत में फ़र्क़ कर पाने में इतना कमजोर है. तलवार में अभिनय के मामले में कही चूकी. इरफ़ान खान का बेहतरीन अभिनय फ़िल्म की यूएसपी थी.
फिल्म - पीकू (2015)
किरदार - राणा चौधरी
फिल्म की कहानी पीकू बनर्जी (दीपिका) और उनके बूढ़े पिता भास्कर (अमिताभ) की है। भास्कर को कब्ज की बीमारी है और पूरी फिल्म बाप - बेटी के बीच इसी एक बात को लेकर चलती रहने वाली नोंक झोक पर टिकी है। राणा चौधरी (इरफान) एक टैक्सी कंपनी चलाता है और बेमन से भास्कर को कोलकाता पहुंचाने की जिम्मेदारी ले लेता है. बाप-बेटी की कहानी में राणा का किरदार तड़के का काम करता है. शूजीत सरकार की इस फिल्म को दीपिका के करियर का टर्निंग प्वाइंट माना जाता है और उनके किरदार को निखारने में इरफान खान का बड़ा हाथ रहा.
फिल्म- हिंदी मीडियम (2017)
किरदार - राज बत्रा
फिल्म एक ऐसे जोड़े की कहानी बताती है जो अपनी बेटी को बेस्ट एजुकेशन देने की ख्वाहिश रखता है। साल 2015 की मलयालम फिल्म साल्ट मैंगो ट्री की इस रीमेक ने इरफान खान को आम हिंदी सिनेमा दर्शकों में एक बड़े स्टार के रूप में स्थापित किया और इसी फिल्म ने ये भी साबित किया कि इरफान की फिल्मों की ओपनिंग भी अच्छी होती है। साकेत चौधरी की इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस की कमाई में लंच बॉक्स को पीछे छोड़ा.
फिल्म- कारवां (2018)
किरदार- शौकत
कहा जाता है कि एक यात्रा आपको दस किताबों जितना सिखा देती है. इस बात पर कई फिल्में बनी हैं जिनमें यात्रा करते हुए किरदार की वर्षों से उलझी हुई पहेलियां सुलझ जाती हैं. वे अपने आपको भी खोज लेते हैं. आकर्ष खुराना द्वारा निर्देशित फिल्म 'कारवां' भी इसी तरह की बात की थी. इरफान ख़ान अपने हर फिल्म में अपने किरदार को जीवंत बना ही देते हैं. इस फिल्म में भी शौकत छाए रहे. इरफान फिल्म में पूरी तरह रंग में नजर आए थे. स्क्रिप्ट से उठ कर उन्होंने कुछ दृश्यों को अपने अभिनय के बूते पर जगमगाया था. अपने कैरेक्टर को बारीकी से पकड़ा था.
फिल्म- अंग्रेजी मीडियम (2020)
किरदार- चंपक
इरफान खान ने बीमारी से लड़ने के बाद लगभग 2 साल बाद बड़े पर्दे पर फिर वापसी कि थी. फिल्म विदेशी यूनिवर्सिटी में एडमिशन को लेकर सामने आ रही चुनौतियों पर फोकस करेगी. साथ ही फिल्म पिता और बेटी के रिश्ते पर भी फोकस या थी. इरफान खान उन एक्टर्स में से हैं जो बहुत ही आसानी के साथ आपको हंसाने और रुलाने की कूव्वत रखते हैं. अपनी एक्टिंग के साथ ही अपने फेशियल एक्सप्रेशंस से इरफान कुछ ऐसा खेलते हैं कि दर्शक एकटक उन्हें देखते ही रह जाते हैं. ऐसी ही कुछ एक्टिंग इरफान खान ने फिल्म 'अंग्रेजी मीडियम' में भी की थी.