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ऋषि कपूर की फिल्मों के वो डायलॉग्स जो उन्हें बनाती है लविंग और चार्मिंग हीरो 

47 साल तक फिल्म इंडस्ट्री पर राज करने के बाद पिछले साल आज ही के दिन ऋषि कपूर ने दुनिया को अलविदा कह दिया.  ऋषि के निधन से उनके फैंस बहुत दुखी हुए थे. बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट ऋषि  ने फ़िल्मी दुनिया में कदम रखा था. इंडस्ट्री को उन्होंने एक से बढ़कर एक फिल्में दी है. ऋषि ऐसे परिवार से थे जिसे भारतीय सिनेमा का 'पहला परिवार' कहा जाता है. उनकी पहली पुण्यतिथि पर अभिनेता के फिल्मों के उन डायलॉग्स को जो उन्हें चार्मिंग और लविंग हीरो बनाते है. 

फिल्म- लैला मजनू ( 1979) 

बेखबर सोए हैं वो लूट के नींदें मेरी, जज्बा-ए-दिल पे तरस खाने को जी चाहता है. कबसे खामोश हुए जो जाने जहां कुछ बोलो..क्या अभी और सितम ढाने को जी चाहता

फिल्म- लैला मजनू ( 1979)   

दुनिया के सितम याद, ना अपनी ही वफा याद....अब कुछ भी नहीं मुझको मोहब्बत के सिवा याद...'


 

फ़िल्म – प्रेम रोग (1982)   

प्रेम तो वो रोग है जो आसानी से लगता है, लेकिन जब लगता है फिर कभी मिटता नहीं – देवधर  

फ़िल्म – प्रेम रोग (1982)  

रीत रिवाज़ इंसान की सहूलियत के लिए बनाए जाते हैं, इंसान रीत रिवाज़ों के लिए नहीं – देवधर 

फिल्म – कपूर एंड संस (2016)  

मरने से पहले मैं चाहता हूं कि मेरे परिवार के साथ एक फैमिली फोटो हो, जिसके नीचे टाइटल होगा, ‘कपूर एंड संस, सिंस 1921’ – अमरजीत कपूर  


 

फिल्म – मुल्क (2018)  

एक मुल्क काग़ज़ पे नक्शों की लकीरों से नहीं बनता – मुराद अली  

फिल्म – मुल्क (2018)  

 मेरी जवाबदारी आपसे नहीं है, अपने ईमान से है, अपने मुल्क से है – मुराद अली 

 फ़िल्म – D Day (2013)  

ट्रिगर खींच, मामला मत खींच – गोल्डमैन  
 

फ़िल्म – दो दुनी चार (2010)  

 ख़ाली फ़ीस भरने से पापा होने की ड्यूटी पूरी नहीं होती, पापा की ड्यूटी होती है बच्चों की ख़ुशियाँ – संतोष दुग्गल 

 फ़िल्म – प्रेम ग्रंथ (1996)  

बिंदी रक़म के आगे लगे तो रक़म दस गुना बढ़ जाती है …और लड़की के माथे पर लगे तो उसकी ख़ूबसूरती हज़ार गुना बढ़ जाती है – सोमेन

 

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