फिल्म: कबीर सिंह
कास्ट: शाहिद कपूर, कियारा आडवाणी
डायरेक्टर: संदीप रेड्डी वांगा
रेटिंग: 3.5 मून्स
आज की तारीख में पुरुषों द्वारा किये जाने वाले हिंसा को सही ठहरना बहुत मुश्किल है. सिनेमा में भी हर बार एक ग्लोबल और मॉडर्न वर्ल्ड को दर्शाया जाता है. ऐसे में जब कबीर सिंह (शाहिद कपूर), प्रीति (कियारा आडवाणी) को थप्पड़ मारता है, तो आप तुरंत महसूस करते हैं कि यह हीरो प्यार के बिल्कुल परे है. केवल एक बेहद असहाय महिला इसके बाद उसके साथ रहना चाहेगी. तो मुख्य सवाल यह हो जाता है कि क्या यह फिल्म पुरुषों के हिंसा को सही ठहराती है? तो, जवाब है 'नहीं'!
संदीप रेड्डी वांगा द्वारा निर्देशित 'कबीर सिंह', विजय देवरकोंडा और शालिनी पांडे अभिनीत की तेलुगु फिल्म 'अर्जुन रेड्डी' की हिंदी रीमेक है. फिल्म को गहराई से स्टाइल किया गया है, इसमें बहुत सारे दिलचस्प सीन हैं और एक्शन सीक्वेंस एक ही समय में मानवीय और क्रूर हैं. यह बड़ी स्क्रीन पर बहुत सारे स्लो-मोशन वीडियो के साथ नजर आती है और प्यार में पड़ने वाले पागल इंसान की कहानी को दर्शाती है.
शाहिद कपूर अपने किरदार को पूरी तरह से समझते हैं और यह उनके अभिनय में भी छलकता है. 'उडता पंजाब' में ड्रग्ड रॉकस्टार टॉमी सिंह हो या विशाल भारद्वाज की फिल्म 'हैदर', ऐसा लगता है कि शाहिद ने अपने हर किरदार को पूरी तरह से घोंट कर पी लेते हैं. उनकी आँखों से बहते आंसू भी यही बताते हैं कि उन्होंने अपने कैरेक्टर के लिए कितनी मेहनत की है. यह पूरी तरह से मेल-सेंट्रिक फिल्म है. आपको मेल ईगो भी बहुत हद तक दिखाई देगा.
हिंसा की वजह से फिल्म में 'कबीर सिंह' कुछ भी बढ़ा चढ़ा कर नहीं दर्शा रही है. क्यूंकि, शाहिद इस कैरेक्टर को बहुत ही उम्दा तरीके से पेश कर रहे हैं. ये कैरेक्टर अपनी क्रोध की आग में जाता रहता है और पाने लोगों को भी उसमें जलाता रहता है.
कियारा आडवाणी के पास भी सुंदर दिखने के अलावा बहुत कुछ है. जिसका अर्थ है कि उन्हें स्क्रीन पर अच्छा खासा स्पेस मिला है और फिल्म के अंत में वो भी अपना गुस्सा बहुत ही लम्बे डायलॉग के साथ पेश करती हैं. लेकिन यह फिल्म एक लड़के की ही कहानी है जिसे दुख पहुंचाया गया है और वो दर्द से परेशान है. यह इस बारे में है कि वह किससे परेशान करता है, वह किससे टूटता है और उसकी जर्नी कितनी मुश्किल है. वैसे, प्रीति का किरदार दुनिया के किसी भी व्यक्ति द्वारा निभाया जा सकता था और इससे कोई फर्क नहीं पड़ता था.
संदीप रेड्डी वांगा बॉलीवुड में तेलुगु सिनेमा की संवेदनशीलता लाते हैं और यह उन्होंने सब बहुत अच्छी तरह किया है. साउंड डिजाइन से लेकर ह्यूमर तक, सब कुछ बहुत ही अच्छा है. केरेक्टर्स को समझाने के लिए जो बार बार सीन्स दिखाई दिए हैं वो किसी 'ज्ञान' से काम नहीं है. हिंदी और तेलुगु सिनेमा को जिस तरह मिक्स किया गया है वो आपको बोर नहीं होने देगा.
मुख्य रूप से शाहिद कपूर द्वारा संतुलित किरदार के कारण फिल्म 'कबीर सिंह' एक अच्छी कहानी है. वंगा पूरी फिल्म में कबीर सिंह की यात्रा को नहीं भूलता और जहाँ जरुरत है वहां सही गाने की भी प्लेसमेंट हैं. एक क्रोधित लड़के के अंदर चलने वाले उतार चढ़ाव को फिल्म में बहुत ही बेहतरीन ढंग से पेश किया है.
पीपिंग मून 'कबीर सिंह' को देता है 3.5 मून्स
(Source: Team Masala)