'फैमिली ऑफ ठाकुरगंज' का फिल्मी परिवार दो भाइयों की कहानी है, जो उत्तर प्रदेश (यूपी) के एक छोटे से शहर ठाकुरगंज में रहते हैं. नुनू (जिमी शिरगिल) और मुन्नू (नंदीश सिंह) दोनों भाइयों के अलग-अलग मूल्य हैं. अपने पिता की मृत्यु के बाद, नुनू ने यू-टर्न ले लिया और भ्रष्ट हो गया और पैसे हासिल करने के लिए कानून अपने हाथ में लेने लगा. हालाँकि, दूसरा भाई मुन्नू एक मेहनती और ईमानदार प्रोफेसर बनता है, जो हमेशा सम्मान के साथ कानून व्यवस्था को कायम रखता है और अपने भाई को भी एक नेक रास्ते पर चलने की सलाह देता है.
नन्नू जल्द ही ठाकुरगंज के लोगों के लिए एक डर बन गया, उसे अब लोग भैया जी कहकर बुलाते हैं. भैया जी अब अपनी पत्नी शरबती (माही गिल) के साथ सफलतापूर्वक जबरन वसूली का कारोबार चलाने लगे.
जैसे जैसे यह फिल्म आगे बढ़ती है, वैसे वैसे उनके जीवन में कुछ मोड़ आते हैं. एक समय कि जब पूरे शहर में हो रही हिंसा उनके निजी जीवन को प्रभावित करने लगती है. अपनी ही मातृभूमि पर खुदके द्वारा ही रची राजनीति से ये परिवार कैसे निपटता है, यह 2 घंटे 45 मिनट की फिल्म में दिखाया गया है.
पहले हाफ में केवल किरदारों का परिचय है और कहानी के आगे बढ़ने की नींव का निर्माण होता है. नंदिश उर्फ मुन्नू की ज़िन्दगी ेमन एक लव ट्रायंगल दिखाया जाता है और कहानी से हटके कहीं भी कबहि भी रोमांटिक गाने आ जाते हैं.
स्क्रीनप्ले काफी कन्फ्यूजिंग है क्यूंकि कभी स्क्रीन पर गुंडे और बन्दूक दिखाई देती है तो कभी यह फिल्म रोमांटिक मोड में चली जाती है. वैसे, इस फिल्म के डायलॉग फिर भी आपको थोड़ा बहुत एंटरटेन करते हैं.
दूसरा हाफ, जहां कहानी ट्विस्ट और टर्न के साथ चलती है और यहां फिल्म थोड़ी इंट्रेस्टिंग बनती है.
लेखक दिलीप शुक्ला की कहानी काफी औसत है. यहां सबसे बड़ी समस्या यह है कि जो प्लाट है वह काफी कमज़ोर है.
इस धीमी और सुस्त फिल्म में जो देखने लायक है वह है जिमी शेरगिल का परफॉरमेंस. उन्होंने पूरी फिल्म को अपने कंधे पर खींचा है. वह निर्दोष है और हम कह सकते हैं कि वो बॉलीवुड के सबसे अंडर-रेटेड एक्टर्स में से एक हैं. उन्होंने अपने किरदार के साथ पूरा न्याय किया और सिर्फ वहीं हैं जो आपको पूरी फिल्म में एंटरटेन करेंगे.
शरबती (माही गिल), जिमी की पत्नी के रूप में काफी जंच रही थीं और पहली बार हमने माही को एक शक्तिशाली और भावपूर्ण किरदार में देखा. एक गुंडे के रूप में सौरभ शुक्ला भी काफी प्रभावशाली हैं. सुप्रिया पिलगांवकर, जो इन लड़कों की मां के किरदार में हैं, इन्होंने भी अपना किरदार बखूबी से निभाया.
नंदीश सिंह का किरदार सरल और मधुर हैं. वह एक बेहतर भविष्य के लिए बच्चों को पढ़ाने वाले ईमानदार प्रोफेसर हैं. यह जरूर कहेंगे कि यह उनकी बेहतरीन एक्टिंग है जिसे आप नजरअंदाज नहीं कर सकते.
अंत में हम यही कहेंगे कि आप इस फिल्म को तभी देखने जाएं, जब आपको लगता है कि आप राजनीतिक ड्रामा पसंद करेंगे. नहीं तो, 'फैमिली ऑफ ठाकुरगंज' को छोड़ दें और अपनी फैमिली के साथ समय बिताएं.
पीपिंग मून 'फैमिली ऑफ ठाकुरगंज' को 2.5 मून्स देता है.
(Source: Peepingmoon)