फिल्म: प्रस्थानम
डायरेक्टर : देव कट्टा
स्टार्स: संजय दत्त, मनीषा कोइराला, जैकी श्रॉफ, अली फज़ल, सत्यजीत दुबे
रेटिंग्स: 3.5 मून्स
किसी भी फिल्म के लिए यह कहा गया है, "किसी फिल्म को उसके पोस्टर से मत आंकिए" यह प्रस्थानम का भी सच है. एक ऐसी फिल्म जिसका ट्रेलर या पोस्टर स्पष्ट रूप से उसकी कहानी के साथ बहुत कम न्याय करता है. यह तथ्य है कि 'प्रस्थानम' 2010 की इसी नाम की एक तेलुगू फिल्म का रीमेक है, 'प्रस्थानम' आपको इम्प्रेसिव कहानी, दिलचस्प कैरेक्टर और भारतीय राजनीति के बारे बहुत कुछ बताएगी.
प्रस्थानम की कहानी पूरी तरह से पॉलिटिक्स, बदला और आपसी मतभेद की कहानी है, जिसमें बहुत सारे ट्विस्ट और टर्न आते हैं. यह आपको 'कलयुग' और 'राजनीति' फिल्म जैसे साउंड कररहा होगा, मगर डायरेक्टर देव कट्टा ने इस बात का पूरा ध्यान रखा है कि यह फिल्म और सभी फिल्मों से अलग नजर आए. फिल्म में संजय दत्त बलदेव प्रताप सिंह का किरदार निभा रहे हैं, जिनके तीन बच्चें हैं, जिनमें से एक सौतेला बेटा है. विवान (सत्यजीत दुबे) और पलक (चाहत खन्ना) बलदेव के बायोलॉजिकल बच्चें है और आयुष (अली फज़ल) सौतेला बेटा है. मनीषा कोइराला संजय की पत्नी का किरदार निभाती है जो संजय के भाई की विधवा होती हैं.
रामायण और महाभारत के साथ आज की राजनीति को देव कट्टा ने 'प्रस्थानम' में बहुत ही इंट्रेस्टिंग और इंगेजिंग तरीके से दिखाया है. एक आदर्श बेटा आयुष जो अपने सौतेले भाई से जलता है, एक बेटी जो अपनी मां से नफरत करती है और एक विलन यानी कि चंकी पांडे जो इस परिवार को नष्ट करना चाहता है. इन सभी के इर्द-गिर्द प्रस्थान की पूरी कहानी रची गई है. यह कहानी आपको थोड़ी लंबी जरूर लग सकती है मगर सेकेंड हाफ काफी इंटरेस्टिंग है.
राजनीति प्रस्थानम की फैमिली में भी एक अहम भूमिका निभाती है. हमारे कहने का मतलब है कि इस फैमिली में भी राजनीति कम नहीं है. एक दूसरे को लेकर झगड़े और इलेक्शंस में होने वाले दांव को भी फैमिली रिलेशनशिप के साथ बहुत अच्छी तरह दिखाया गया है. सिर्फ पॉलिटिकल कॉन्टेंट ही नहीं बल्कि 'प्रस्थानम' में और भी बहुत कुछ ऐसा है जिसकी तारीफ करनी चाहिए. बता दें कि इस फिल्म में कोई भी कैरेक्टर ब्लैक या व्हाइट नहीं है, बल्कि सबके अपने-अपने रंग है. जैसे-जैसे फिल्म की कहानी आगे बढ़ती है आप समझ नहीं पाएंगे कि कौन सही है और कौन गलत और ऐसा ही शायद रियल लाइफ में भी होता है, है ना? ओरिजिनल फिल्म भले ही तकरीबन दशक पहले रिलीज हुई हो मगर डायरेक्टर ने इस फिल्म के साथ पूरा इन्साफ किया है.
'प्रस्थानम' की स्टोरी टेलिंग की बात की जाए तो इंटरवल के पहले ही यह फिल्म काफी स्लो चलती है. इंटरवल के बाद भी बहुत सारे पार्ट में इस फिल्म को धीमी गति से आगे बढ़ाया गया है. यह साफ दिखाई देता है कि राइटर ने एक ही समय में बहुत सारे पॉइंट सामने रखने के चक्कर में फिल्म को जरुरत से ज्यादा लंबा खींच लिया है. फिल्म के गाने भी कई जगह अटपटे लगे हैं, खासकर आइटम नंबर जो उस सिचुएशन के लिए जरूरी भी नहीं था. चंकी पांडे के कुछ डायलॉग भी आपको बोर करेंगे जो पॉलिटिक्स पर बेमतलब का ज्ञान है.
हालांकि, परफॉरमेंस की तरफ देखा जाए तो अली फजल, सत्यजीत दुबे दोनों ने ही बहूत बेहतरीन काम किया है. खबसूरत मनिषा कोइराला ने भी तीन बच्चों की मां का किरदार बखूबी से निभाया है. डायरेक्टर ने भले ही उनके किरदार को महत्वपूर्णता नहीं दी है लेकिन, मनीषा के किरदार की तारीफ बेहद जरुरी है. जैकी श्रॉफ जो एक सच्चे दोस्त हैं, जिनका बड़ा दिल है और अपने किरदार के साथ वो बेहद ईमानदार रहे हैं. वहीं, संजय दत्त ने भी हमेशा की तरह अपने किरदार से सभीं को इम्प्रेस किया है.
आप इस फिल्म को इसलिए भी देखिये क्यूंकि इसमें 80s और 90s के बेहतरीन एक्टर्स (मनीषा कोइराला, जैकी श्रॉफ, चंकी पांडेय और संजय दत्त) हैं! कुल मिलकर इस फिल्म को पैसा वसूल कहा जा सकता है.
पीपिंगमून 'प्रस्थानम' को 3.5 मून्स देता है.
(Source: Masala)