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Mamangam Review: अमन की सीख और एक्शन पैक्ड परफॉरमेंस से भरपूर है मामूट्टी, प्राची तेहलान और उन्नी मुकुंदन की ये फिल्म

फिल्म: ममांगम 

कास्ट: मामूट्टी, प्राची तेहलान, उन्नी मुकुंदन, अछूतन 

डायरेक्टर : एम् पद्मकुमार 

फिल्म 17 वीं शताब्दी के दौरान केरल में भरथप्पुझा के तट पर मनाए जाने वाले मध्यकालीन ममनकम उत्सव पर है. वर्षों तक, ज़मोरिन शासकों के खिलाफ उन्हें उखाड़ फेंकने के लिए चवेरुकल भूखंड के रूप में जाना जाने वाला योद्धा चंद्रोथ (उन्नी मुकुंदन) इस फिल्म का मुख्य किरदार है जो ज़मोरिन शासक को मारने के लिए इस आगे आता है और उसके साथ एक युवा लड़का होता है. जब चंद्रोथ, चावर (मामूट्टी) नाम के एक व्यक्ति के सामने आता है, जो अपने दूसरे अवतार में होता है. मामूट्टी ने आखिर अपना भेस क्यों बदला, उसका इस पूरी लड़ाई से क्या लेना-देना है? क्या चन्द्रोत राजा को मार सकेगा? जवाब जानने के लिए, आपको फिल्म को बड़े पर्दे पर देखने की जरूरत है.

फिल्म को अच्छे सेटअप पर बनाया गया है. कैमरावर्क शानदार है और मलयालम इंडस्ट्री को यह फिल्म एक स्टेप आगे ले गई है. फिल्म में फाइटिंग और म्युज़िक को भी अच्छी तरह दर्शाया गया है. दो बेहतरीन फाइटिंग सीक्वेंस हैं, एक शुरुआत और एक अंत में. इन सीक्वेंस को काफी अच्छी तरह से शूट किया गया है और मामूट्टी का एक्शन तो कमाल का है ही.

पहले हाफ की तुलना में फिल्म का दूसरा भाग बेहतर है. फिल्म में लोगों के लुक्स पर भी काफी ध्यान दिया गया है. मामूट्टी के पास ज्यादा स्क्रीन स्पेस नहीं थी मगर जब भी वह स्क्रीन पर दिखे है तो सबकुछ बिलकुल परफेक्ट लगता है. इस उम्र में भी, उन्होंने फिल्म में सभी फाइट सीन्स को अच्छी तरह से किया है. उन्नी मुकुंदम अपनी भूमिका में बहुत अच्छे हैं और अपनी आंखों के माध्यम से बहुत कुछ बोलते हैं.

फिल्म में साउथ स्टाइल का टच तो है ही इसके अलावा, कहानी दोनों हिस्सों में बहुत ही धीमी चलती है और इसकी लम्बाई आपको शायद परेशान कर सकती है. पहले हाफ में इमोशन्स समझ में नहीं आते और कहानी भी कहां जा रही है यह पता नहीं होता. इसके अलावा, कहानी काफी उलझी हुई है और कोई भी यह नहीं समझ सकता है कि पहले 20 मिनट तक क्या चल रहा है.

जो लोग सोचते हैं कि पूरी फिल्म में मामूट्टी होंगे, वे निराश होंगे. वह एक गेस्ट लीड की तरह थे, क्योंकि वह केवल पहले हाफ की शुरुआत के दौरान दिखाई देते हैं. दूसरे हाफ में वह ज्यादातर समय स्क्रीन पर रहते हैं मगर फिल्म पर इसका प्रभाव नहीं होता. एक साधारण सा ट्विस्ट जरूर है मगर व्ह भी बहुत उबाऊ तरीके से दिखाया गया है.

कहानी सरल है और ममांगम  के राजा को मारने पर आधारित है, लेकिन निर्माताओं ने इतने अनावश्यक दृश्यों का निर्माण किया है कि आप ऊब सकते हैं और चिढ़ सकते हैं.

तकनीकी रूप से, सभी मलयालम फिल्में शानदार हैं और यही हाल इस फिल्म का भी है. मनोज पिल्लई का कैमरावर्क शानदार है क्योंकि फिल्म के प्राचीन दृश्य शानदार हैं. हिंदी डबिंग भी काफी अच्छी है. गाने ठीक ठाक हैं और सबसे अच्छा कोई था तो वह है 10 साल के अछूतम, जिन्होंने अपने परफॉरमेंस से हमें काफी इम्प्रेस किया है. इतने से बच्चे ने कमाल के एक्शन सीन्स किये हैं और उनके एक्सप्रेशन भी काफी अच्छे थे. निर्देशक पद्म कुमार ने इसे मलयालम दर्शकों को ध्यान में रखते हुए बनाया है और इसे अपनी संवेदनशीलता और संस्कृति के अनुसार पेश किया है लेकिन उनके पेश करने का स्टाइल धीमा है.

कुल मिलाकर 'ममांगम' एक ऐतिहासिक ड्रामा है जो स्लो है और कहीं न कहीं उबाऊ है. मलयालम दर्शकों के लिए, अपनी संस्कृति को दर्शाने के लिए बहुत कुछ है. कहानी अच्छी है  लेकिन हिंदी ऑडियंस के लिए यह काफी धीमी है.

पीपिंगमून 'ममांगम' को 2.5 मून्स देता है.

 

(Source: Peepingmoon)

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