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Ramsingh Charlie Review: कुमुद मिश्रा के अभिनय ने दिखाई 'सर्कसवाले' की असली कहानी, दिव्या दत्ता ने भी निभाया खूब साथ

फिल्म: रामसिंह चार्ली 

स्टारकास्ट: कुमुद मिश्रा, दिव्या दत्ता, आकर्ष खुराना, सलीमा रज़ा 

निर्देशक: नितिन कक्कर

रेटिंग्स: 4 मून्स 

परिचय 

आज इंटरनेट, टीव स्मार्टफोन ने देश के बच्चे और नौजवानों को अपनी बेड़ियों में जकड़ लिया है, जिस वजह से सर्कसों में जादू दिखानेवाले जादूगर और परफ़ॉर्मर आज लुप्त हो गए हैं. गांव और शहरों में जब मेला लगता था तब माता- पिता के साथ सर्कस देखने का मजा ही कुछ और होता था लेकिन क्या कभी किसी ने सोचा है लोगों के चेहरे पर मुस्कान लाने वाले इन कलाकारों की जिंदगी कितनी संघर्ष और मुसीबतों से भरी होती है, जब इनसे इनका काम छूट जाता है. यह शायद किसी ने नहीं सोचा होगा. यह फिल्म उसी के इर्द- गिर्द घूमती है. कुछ लोग समय के साथ बढ़ जाते हैं और कुछ बह जाते हैं. 

कहानी

फिल्म की कहानी रंगमंच से शुरू होती है, जहां रामसिंह चार्ली (कुमुद मिश्रा) का बेटा चिंटू खड़ा दिखाई देता है. चिंटू को पता होता है कि उसके बाबा ने अपने जीवन में कितना संघर्ष किया था. बड़े आर्थिक संकट से गुजरने की वजह से सर्कस के मालिक उसे बंद करने का फैसला करते हैं क्यूंकि वो और नुकसान उठाने के लिए सक्षम नहीं होते. सारे आर्टिस्ट रोजी रोटी की तलाश में एक- दुसरे से बिछड़ जाते हैं और कोई और काम ढूंढने लगते हैं लेकिन 'आर्टिस्ट का रियाज और मुल्ला की नमाज एक जैसे होती है, मस्जिद टूटने के बाद भी वह नमाज पढ़ना नहीं छोड़ता. सर्कस बंद होने के बाद गर्भवती पत्नी और बेटे का पेट पालने के लिए रामसिंह हाथ गाड़ी चलने लगता है. मजबूर होकर रामसिंह पत्नी (दिव्या दत्ता) को गांव भेज देता है. यही से शुरू होता जिंदगी के असली सर्कस का खेल. 

किसी तरह रामसिंह को एक काम मिलता है लेकिन इस काम में उसे खुशी नहीं मिलती और 'चार्ली' जो उसकी असली पहचान होती है वह भी उससे छिन जाती है. रामसिंह की एक गलती उससे यह काम छीन लेती है. रामसिंह खुद का एक सर्कस शुरू करना चाहता है लेकिन उसके पास इतने पैसे नहीं होता कि वह यह काम कर सके. इन सब मुसीबतों के बीच रामसिंह दूसरी पार पिता बनते हैं और उनके जीवन में ख़ुशी आती है लेकिन जिंदगी आगे अभी और इम्तेहान लेती है. क्या चार्ली अपना सपना पूरा कर पाता है यह फिल्म देखने के बाद पता चलेगा. 

कास्टिंग 

फिल्म की कास्टिंग काबिल- ए- तारीफ़ है. कुमुद मिश्रा के अभिनय का जवाब नहीं, बेहतरीन अदाकारा दिव्या दत्ता ने भी खूब उनका साथ निभाया है. पल भर के लिए भी दोनों के चेहरे से नजर नहीं हटती. कुमुद और दिव्या ने अपने काम से फिल्म को और खूबसूरत बनाया है. फारुख सेयर जो कुछ चार्ली के दोस्त का किरदार निभाते है, उन्होंने भी अच्छा अभिनय किया है.  सलीमा रज़ा जो सर्कस की मास्टरजी होती है उन्होंने भी बेहतरीन परफॉर्मेंस दी है.  

टेक्नीकल

टेक्नीकल पार्ट की बात करें तो निर्देशक नितिन कक्कर का डायरेक्शन प्रशंसनीय है. उन्होंने अपने विजन को बखूबी कैमरे क जरिये दर्शकों के सामने रखने की कोशिश की है. सुब्रान्शु दास और माधव सालुंखे की सिनेमेटोग्राफी हर छोटी से छोटी चीज पर खूबसूरती से फोकस करती है जो कहानी को और अच्छे से बयां करती है. गाने बहुत कम है लेकिन कहानी से अलग होकर नहीं है. कहानी पूरे फ्लो में आगे बढ़ती है. एक पल के लिए भी आप बोर नहीं होंगे.  

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