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फिल्‍म र‍िव्‍यू: दहाड़ता नजर आया सलमान, मतलब 'टाइगर जिंदा है'

बॉलीवुड में ट्रेन्स-सेटर माने जाने वाले सुपरस्टार सलमान खान एक बार फिर से पूरी फॉर्म में नजर आए हैं. कुछ साल पहले अपने एक इंटरव्यू में सलमान ने कहा था कि वो ऐसी फिल्में करना चाहते हैं जिन्हें देखने के बाद ऑडियंस न सिर्फ अपनी सीटों पर खड़ी हो जाए, बल्कि सीटियां बजाए और स्क्रीन पर सिक्के भी फेंके.

बहरहाल दुबई के वीओएक्स सिनेमाल मॉल में सिक्कों की बरसात तो देखने को नहीं मिली, लेकिन वहां 'टाइगर ज‍िंदा है' फिल्म का फर्स्ट डे-फर्स्ट शो देखने आई ऑडियंस की उम्मीदों पर सलमान पूरी तरह खरे उतरे. सलमान का हर फैन बेहद एक्साइटेड दिखा. लोगों ने न सिर्फ सलमान के कट-आउट के साथ सेल्फी क्लिक कीं, बल्कि थिएटर से बाहर निकलते समय जमकर सीटियां भी बजाई. इसमें बात में कोई भी शक नहीं है कि सलमान और उनकी फिल्म का जादू एक बार फिर चल गया.

एक प्योर एंटरटेनर है यह फिल्म 'टाइगर ज‍िंदा है'. यूएई (ईराक) में कुछ साल पहले एक घटना सामने आई थी जिसमें एक हॉस्पिटल की नर्सों को आतंकियों ने बंदी बना लिया था. इसी सच्ची घटना पर यह फ‍िल्‍म आधारित है. लेकिन फिल्म में काल्पनिकता जोड़कर कहानी को इंट्रेस्टिंग बनाने के लिए फिल्म के राइटर-डायरेक्टर ने इसमें इंडियन और पाकिस्तानी नर्सों को दिखाया है और उन्हें आजाद कराने के लिए रॉ और आईएसआई को साथ में काम
करते दिखाया है. सलमान और कैटरीना कैफ क्रमशः रॉ और आईएसआई के ऑपरेशन्स हेड बने हैं. फिल्म में आतंकियों के सरगना 'अबू उस्मान' का किरदार बखूबी निखाया है यूएई के ईरानियन एक्टर सज्जाद देलाफरोज ने.

हिंदी सिनेमा ने अभी तक कई बार दो देशों की नफरत के बीच पनपते प्यार और रोमांस को दर्शाया है. लेकिन इस फिल्म के जरिए राइटर-डायरेक्टर ने यह दिखाने की कोशिश की है कि कैसे दो देश एक कॉमन एनिमी-आतंकवाद- से लड़ने के लिए एकजुट होते हैं. इस फिल्म की यह बात शायद सबको पसंद आएगी. हर बार की तरह इस बार भी स्क्रीन पर सलमान की 'एंट्री' देख आप खुद को सीट से उछलने से रोक नहीं पाएंगे. 'मिलकर साथ काम करना और
एक बड़े उद्देश्य के लिए एक दूसरे का साथ देना' फिल्म का सन्देश है जो की कहानी के दौरान बिलकुल साफ है. फिल्म में बंदी नर्सें और उनका उदार प्रोफेशन फिल्म में सहानुभूति का भी एक टच देता है. फास्ट कैमरा और बैकग्राउंड म्यूजिक फिल्म की रफ्तार से पूरी तरह मैच करता है. कहानी और प्लॉट आपको ऐसे बांधकर रखते हैं कि आप शायद ही फिल्म के दौरान अपनी नजरें स्क्रीन से हटाएंगे.

कहानी में लोकेशन्स भी पूरी सद्भावना के साथ इस्तेमाल की गई हैं, जैसे 'दूर कहीं सीरिया में' या 'कहीं स्विस ऐल्प्स में' या फिर 'कहीं लिवा डेजर्ट में'. जो बात थोड़ी सी अविश्वसनीय लगती है वो यह कि जब टाइगर और उसकी टीम के जलने पर उन्हें उपचार के लिए हॉस्पिटल लाया जाता है, तो वो लोग कहीं से भी जले हुए नहीं दिखते हैं. एक विद्रोही नेता के रोल में सज्जाद देलाफरोज बेहद उम्दा लगे हैं. उनकी कहानी एक प्रोफेसर की है जो कुछ वजहों से एक
आतंकवादी बन जाता है. यह शख्स अपने सशक्त भाषणों और धार्मिक कट्टरवाद एक से पूरी आबादी को उग्रवाद में फंसाने की क्षमता रखता है. फिल्म के अंत में उनका इकबालिया बयान कि 'सब कुछ वास्तव में व्यापार है' उनके रोल में वजन डाल देता है. सज्जाद देलाफरोज एक ऐसे परफॉर्मर और एक्टर साबित हुए हैं जो न सिर्फ हिंदी बोलते हैं बल्कि अपनी आखों से सब कुछ बयां करते हैं.

परेश रावल का यूनीक किरदार, उनकी कॉमेडी और उनके फोन की 'चांदनी' रिंगटोन ने भी ऑडियंस को पागल किया है. उनके अलावा कुमुद मिश्रा और अंगद बेदी ने भी बेहतरीन एक्टिंग के दम पर अपने रोल के साथ पूरा न्याय किया है. कैटरीना कैफ ने एक बार फिर अपनी टोन्ड-बॉडी और 'ऊम्फ फैक्टर' से ऑडियंस को दीवाना बना दिया. कुछ फाइटिंग के सीन्स में वो गन्दी दिखने की कोशिश करती हैं, लेकिन वो लुक उनके करैक्टर पर पूरी तरह फिट
बैठता है. एक बेहतरीन स्क्रिप्ट वाली और उम्दा तरीके से शूट हुई 'टाइगर जिंदा है' सही मायनों में जबरदस्त एंटरटेनिंग फिल्म है.

स्‍टार: 4
कास्‍ट: सलमान खान, कैटरीना कैफ, सज्जाद देलाफरोज, परेश रावल, अंगद बेदी, अनुप्रिया

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