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Thalaivii Review: जयललिता के लिए श्रद्धांजलि के रूप में बनी इस फिल्म में नहीं दिखा कंगना रनौत की दमदार एक्टिंग का दम

फिल्म: थलाइवी

कलाकार: कंगना रनौत, अरविंद स्वामी, नासर, भाग्यश्री और राज अर्जुन

निर्देशक: ए एल विजय

रेटिंग: 2.5 मून्स

फिल्म की कहानी जे. जयललिता की यात्रा की झलक दिखाती है कि कैसे वह सबसे पहले तमिल सिनेमा की एक स्टार बनी और फिर देखते ही देखते क्षेत्रीय राजनीतिक शक्ति बनकर वह सामने आईं. फिल्ममेकर ए एल विजय द्वारा डायरेक्ट की गयी इस फिल्म में कंगना रनौत लीड रोल में हैं, जिन्होंने स्वाभिमानी एक्ट्रेस की भूमिका निभाई है जो तमिलनाडु के लाखों लोगों के लिए सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति बन जाती है. फिल्म में उनकी फिल्मी और पोलिटिकल यात्रा के अलावा महान एम जी रामचंद्रन (अरविंद स्वामी) के साथ उनके रिलेशनशिप पर भी रोशनी डाली गयी है.

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1 घंटे 53 मिनट की इस फिल्म की शुरुआत एक राजनीतिक सभा में जयललिता को अपमान करने और उनके साथ बदसलूकी करने से होती है, जहां से वह अपने मुख्यमंत्री बनने पर ही लौटने का वादा करती हुई दिखाई देती हैं. इस तरह से फिल्म की कहानी फ्लैशबैक में जाती है, जहां हमारी मुलाकात 16 साल की जया उर्फ ​​अमू से होती है, और इस तरह से हमें उसकी यात्रा को करीब से देखने मिलता है. जीवन में विभिन्न तकलीफो का सामना कर चुकी जया की मां संध्या (भाग्यश्री) अपनी बेटी को एक अच्छा जीवन देना चाहती है और इसलिए वह उसे एक्टिंग के लिए राजी करती है. अपनी पहली फिल्म में ही जया को महान एमजीआर के साथ काम करने का मौका मिलता है और इस तरह से उनके रिश्ते की शुरुआत हुई है. हालांकि, कई उतार-चढ़ाव के बाद उनका रिश्ता खत्म हो जाता है, जब एमजेआर के निजी सहायक आर एम वीरप्पन (राज अर्जुन) उन्हें तमिलनाडु के तत्कालीन सीएम एम करुणानिधि (नासर) के साथ एक पेशेवर विभाजन के बाद केवल राजनीति पर ध्यान केंद्रित करने के लिए कहते हैं.

जया और एमजीआर के रस्ते अलग हो जाते हैं, लेकिन एक बार फिर दोनों एक इवेंट के दौरान एक दूसरे से टकराते हैं और वहीं अमू को राजनीति में शामिल होने के लिए कहा जाता है. जया, समाज और राजनीति की सभी पितृसत्तात्मक बाधाओं का सामना करने के बावजूद, अपनी काबिलियत से एक सफल नेता के रूप में उभरती है, लेकिन एमजेआर के निधन के बाद उन्हें राजनीतिक पार्टी से बाहर कर दिया जाता है. आगे क्या होता है वह घटनाओं की एक श्रृंखला है, जिसमे देखने मिलता है कि कैसे जया, एक सेल्फ-मेड महिला बनकर तमिलनाडु की मुख्यमंत्री बनती है और पुरुष प्रधान समाज में लाखों लोगों का सम्मान और प्यार हासिल करती है.

थलाइवी का पहला भाग बहुत धीमा है. फिल्म में रजत अरोड़ा द्वारा लिखे गए डायलॉग्स बेहद धीमे हैं. जयललिता की बायोपिक की सबसे बड़ी कमी यह है कि उसमे उनकी एक्टिंग करियर, एमजेआर के साथ पर्सनल लाइफ को ज्यादा दिखाया गया है, जबकि राजनीतिक करियर पर ज्यादा रोशनी नहीं डाली गयी है. हालांकि, पॉलिटिकल ड्रामा के साथ सेकंड हाफ में फिल्म रफ्तार पकड़ लेती है. लेकिन उम्मीद के मुताबिक चीजे नहीं देखने मिलती हैं.

एक्टिंग की बात करे तो, कंगना ने अच्छा काम किया है, लेकिन यह उनका बेस्ट परफॉरमेंस नहीं है. फिल्म में वह जयललिता उर्फ अम्मा की तरह बात करती है, चलती है और दिखती है लेकिन वह आग गायब है, जो उनके किरदार रानी और मणिकर्णिका में देखने मिली थी. यह कहना गलत नहीं होगा कि अरविंद स्वामी फिल्म का मजबूत स्तंभ हैं. फिल्म में उनकी एक्टिंग बिल्कुल सही है, एक्टर-पॉलिटिशियन एमजीआर की डायलॉग डिलीवरी और बॉडी लैंग्वेज से शानदार मेल खाता. कंगना के साथ उनकी केमिस्ट्री महान जया-एमजीआर की लव स्टोरी के लिए एक शानदार श्रद्धांजलि है. इस हायरवायर बायोपिक में नासर और राज अर्जुन और अन्य सपोर्टिंग रोल में एक मजबूत स्तंभ हैं.

थलाइवी जैसी फिल्म के लिए ए.एल. विजय का निर्देशन उम्मीद से बहुत ही कम है. वहीं, रजत अरोड़ा का हिंदी वर्जन के लिए की गयी राइटिंग बढ़ा-चढ़ाकर लिखी हुई लगती है, जिसमे कई बार एक ही बाते बोलते हुए कई बार सुनने मिलती है, जिससे फिल्म बोरिंग हो जाती है. सिनेमैटोग्राफर विशाल विट्टल का काम अच्छा है, जो अपना प्रभाव छोटे दिखाई दे रहा है. हालांकि, एडिटर्स एंथनी और बल्लू सलूजा ने अपनी एडिटिंग से निराश किया है. जहां निर्माताओं ने जया-एमजीआर के कुछ प्रतिष्ठित गीतों को फिर से बनाने की पूरी कोशिश की, वहीं जीवी प्रकाश कुमार का संगीत भ्रमित करने वाला और नॉन-सिंक्रनाइज़्ड है. बायोपिक के जरिये अम्मा को पर्दे पर वापस लाने की कोशिश की गयी है. लेकिन इसे ख़राब डायरेक्शन और राइटिंग की वजह से दर्शको के मन मुताबिक नहीं बनाया जा सका है.

PeepingMoon ने थलाइवी को 2.5 मून्स देता है!

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