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Sardar Udham Review: विक्की कौशल- शूजीत सरकार ने दिलाई जलियावाला बाग हत्याकांड की खौफनाक याद

'स्वतंत्रता मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और स्वतंत्रता के लिए लड़ना कोई अपराध नहीं है', राम मोहम्मद सिंह आज़ाद जिन्हे उधम सिंह के नाम से भी जाना जाता है उन्होंने पंजाब के पूर्व लेफ्टिनेंट गवर्नर माइकल ओ'डायर की हत्या के बाद लंदन की अदालत में अपना बचाव किया था, जिन्होंने 1913 और 1919 के बीच ब्रिटिश भारत की सेवा की थी. हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) के सदस्य उधम का एकमात्र मिशन ओ'डायर को गोली मार कर जलियांवाला बाग हत्याकांड का बदला लेने होता है, जिसने इतिहास के पाठ्यक्रम को हमेशा के लिए बदल दिया. 

क्रांतिकारी की कहानी बताने में शूजीत सरकार के साथ विक्की कौशल भी शामिल हैं. 2 घंटे 42 मिनट में हमें एक युवा उधम, उर्फ ​​शेर सिंह, उडे सिंह और फ्रैंक ब्राजील के साथ यात्रा पर ले जाया जाता है. शूजीत हमें सीधे पंजाब ले जाते है जहां उधम को जेल से रिहा कर दिया गया है. उनका उद्देश्य बिल्कुल स्पष्ट है - ओ'डायर की निर्मम हत्या. जिसके लिए उधम को यूएसएसआर के रास्ते लंदन की यात्रा करनी होती है. यह मूल कहानी है. बाकी फिल्म उधम की भगत सिंह (अमोल पाराशर) के साथ दोस्ती, रेशमा (बनिता संधू) के साथ उनकी अधूरी प्रेम कहानी और किन परिस्थितियों में उन्होंने ओ'डायर की हत्या की योजना बनाई थी, इसी के इर्द गिर्द कहानी घूमती है.

यह फिल्म राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता शूजीत द्वारा निर्देशित है, इसलिए मिर्च-मसाला और मेलोड्रामा की उम्मीद न करें. फिल्म एक वास्तविक जीवन की घटना से प्रेरित है, जिसके झटके अभी भी अमृतसर की गलियों में महसूस किए जा सकते हैं. शूजित बहुत ही कुशलता से मानवीय भावनाओं, तथ्यों और रचनात्मक स्वतंत्रता को बिना किसी समझौता किए संतुलित करते है. बॉलीवुड फैंस देशभक्ति की फिल्में या स्वतंत्रता सेनानियों की बायोपिक देखते है जिसमें म्यूजिक, डायलॉग और नरेटिव होता है. सरदार उधम उपरोक्त में से किसी का भी सहारा नहीं लेते हैं. क्रांतिकारी के जीवन में घटी घटनाओं की एक स्पष्ट तस्वीर काटते हुए, शूजीत एक गुमनाम नायक की बायोपिक को पर्दे पर लाने का वादा पूरा करते है. 

नेशनल अवॉर्ड सिनेमेटोग्राफर अविक मुखोपाध्याय ने अपने कैमरे और विजन से 'सरदार उधम' में जान फूंक दी. वह लंदन के विंटेज वाइब को बेहतरीन तरीके से रीक्रिएट करते हैं. हर सीन डरावना लेकिन खूबसूरत है. बाहरी मौन और आंतरिक अराजकता को जादू की तरह पर्दे पर दिखाया जाता है. खासतौर पर पूरा जलियांवाला बाग हत्याकांड का पूरा सीक्वेंस. इसे न केवल खूबसूरती से शूट किया गया है, बल्कि अच्छी तरह से लिखा और निभाया गया भी है. 

 

विक्की सहजता से उधम सिंह के किरदार में ढलते है और उनका ट्रांसफॉर्मेशन सराहनीय है. 'उरी' में विक्की का 'जोश' हाई होता है जबकि 'सरदार उधम' में वह आक्रामक है लेकिन उनका एक नरम पक्ष भी है जो फिल्म के आखिरी छणों में दिखाई देता है. अंग्रेजों द्वारा परिस्थितियों और अन्याय से कठोर उधम के व्यवहार में नरसंहार के बाद एक बड़ा बदलाव आता है और विक्की इसे अच्छी तरह से निभाते है. वह उधम सिंह के कई रंगों को सामने लाने में कामयाब रहे हैं.

भगत सिंह की भूमिका निभाने वाले अमोल पराशर के पास सीमित गुंजाइश है. उन्हें मिले कुछ सीन्स में उन्होंने अच्छा काम किया है. रेशमा उर्फ़ बनिता संधू एक म्यूट लड़की है, जो उधम से प्यार करती है. माइकल ओ'डायर के रूप में शॉन स्कॉट को अच्छा स्क्रीन टाइम मिलता है. रेजिनाल्ड डायर के रूप में ब्रिटिश अभिनेता एंड्रयू हैविल के पास करने के लिए बहुत कुछ नहीं होता है.

 कर्स्टी एवर्टन के कुछ दृश्य हैं लेकिन वह ऑडियंस पर अपना इम्प्रेशन छोड़ने में असफल होते हैं. ज्यादातर हिस्सों में जहां सरदार उधम आपको फिल्म की नरेटिव के साथ बीजी रखते है वहीं इसकी सबसे बड़ी कमी इसका टाइम ड्यूरेशन है. जलियावाला बाग हत्याकांड और उधम से पूछताछ जैसे सीन्स खूबसूरती से शूट किए गए हैं, बहुत लंबे हैं और दोहराए जाते हैं.

कहानी के नायक लेखक शुभेंदु भट्टाचार्य हैं. छाती पीटने वाली देशभक्ति की फिल्मों के लिए बॉलीवुड के सभी मसालों को एक तरफ रखते हुए, शुभेंदु ने उधम सिंह और स्वतंत्रता के लिए उनके जुनून को चमकने दिया. उन्होंने रितेश शाह के साथस्क्रीनप्ले लिखा है और वो  एक साथ बेहतरीन काम करते हैं. शूजित और विक्की ने अनसंग हीरो की कहानी को जीवंत करने के लिए अपना खून-पसीना एक साथ लगाया है लेकिन शूजित मूल रूप से इरफ़ान  एक साथ यह बायोपिक बनाना चाहते है. 

PeepingMoon.com 'सरदार उधम' को 3.5 मून्स देता है.

 

 

 

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