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Bunty Aur Babli 2 Review: रानी मुखर्जी, सैफ अली खान, सिद्धांत चतुर्वेदी और शरवरी वाघ की फिल्म ने खोया ओरिजिनल फिल्म का आकर्षण

फिल्म: बंटी और बबली 2

कलाकार: सैफ अली खान, रानी मुखर्जी, शरवरी वाघ, सिद्धांत चतुर्वेदी और पंकज त्रिपाठी

निर्देशक: वरुण वी शर्मा

रेटिंग: 2.5 मून्स

शाद अली की 2005 में आई कॉन फिल्म में रानी मुखर्जी और अभिषेक बच्चन ने बंटी और बबली के किरदार को बेहद खूबसूरती से निभाया था. ऐसे में 16 साल बाद ओरिजिनल बबली रानी के साथ सैफ सीक्वल में नजर आ रहे हैं, जो इस बार सिद्धांत चतुर्वेदी और शरवारी वाघ के साथ अपने स्थान को पाने के लिए लड़ाई लड़ते हुए दिखाई देते हैं. ऐसे में इस लड़ाई में कौन किसे मात देता है, इसे जानने के लिए आपको पूरी फिल्म देखनी पड़ेगी या फिर नहीं.

वरुण वी शर्मा के सीक्वल बंटी और बबली 2 में ड्रामा है, वो फिल्मी गाने हैं, दमदार स्टार कास्ट है, लेकिन ओरिजिनल का आकर्षण नहीं है. बंटी और बबली 2 एक आउट-एंड-आउट कॉमेडी की तरह लग रही थी, जो अलग-अलग पीढ़ियों के बंटी और बबली नाम के दो कलाकारों को एक-दूसरे के खिलाफ खड़ा करेगा! हालांकि, फिल्म में कॉमिक टाइमिंग भी सही नहीं है.

2 घंटे 25 मिनट लंबी इस फिल्म की शुरुआत कुणाल (सिद्धांत चतुर्वेदी) और सोनिया (शरवरी वाघ) की कहानी से होती है, जो किस तरह से असल बंटी और बबली यानी विम्मी त्रिवेदी (रानी मुखर्जी) और राकेश त्रिवेदी (सैफ) के ब्रांड नाम का इस्तेमाल कर लोगों को ठगते हैं. ऐसे में एक बार जब पुलिस इंस्पेक्टर जटायु सिंह (पंकज त्रिपाठी) को बंटी और बबली द्वारा किए जा रहे घोटालों के बारे में पता चलता है, तो उसे लगता है कि विम्मी और राकेश वापस आ गए हैं. हालांकि, असल विम्मी और राकेश अपने बेटे पप्पू के साथ एक सामान्य जीवन जी रहे होते हैं. जिसके बाद जैसे ही उन्हें अपने डुप्लीकेट के बारे में पता चलता है, वह अपनी खोज शुरू करते हैं और पुलिस की मदद करने का वादा करते हैं.

लेकिन कुणाल और सोनिया भी कम नहीं! वे अपने काम को ठीक से जानते हैं और लोगों को बेवकूफ बनाने में माहिर होते हैं. एक बार खोज शुरू होने के बाद, विम्मी और राकेश बंटी और बबली की अपनी भूमिकाओं को दोहराते हैं और नए जमाने के बंटी-बबली कुणाल और सोनिया की खोज शुरू करते हैं. आगे क्या होता है भ्रमित करने वाले क्षणों की एक श्रृंखला है जहां चीजों को समझना मुश्किल होता है. 

फिल्म का पहला हाफ सुपर स्लो है! आप इंटरवल से कम से कम एक बार खुद को जम्हाई लेते हुए पाएंगे. जबकि फिल्म के दूसरे हाफ में फिल्म थोड़ी रफ्तार पकड़ती है, यह अभी भी कहीं भी एक प्रतिष्ठित फिल्म के सीक्वल से अपेक्षा के करीब नहीं है. जैसा कि वे कहते हैं, ओरिजिनल की यादों के साथ रहना बेहतर है कि इसे रीमेक करके इसके आकर्षण को बर्बाद कर दिया जाए. यहाँ ठीक ऐसा ही हुआ है.

यह कहना गलत नहीं होगा कि फिल्म की टैलेंटेड कास्ट रानी, सैफ, सिद्धांत, शरवारी और पंकज ने फिल्म में अपना सब कुछ झोंक दिया है, लेकिन कहीं न कहीं उनकी मेहनत बर्बाद हुई है. विम्मी के रूप में रानी ने निश्चित रूप से 2005 की बबली से क्यूएस लिए हैं. हम उनकी इस तरह उम्र बढ़ने और फुर्सतगंज की फैशन क्वीन बनने की कल्पना कर सकते हैं. उनका किरदार मजाकिया और जुड़ाव महसूस करने वाला है. लेकिन सैफ से बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद की जा सकती थी. फिल्म में वह सिर्फ रानी के डायलॉग्स को फॉलो कर रहे हैं और हंसी-मजाक में उनका कुछ जयादा योग्यदान नहीं है. वह अपनी भूमिका में हैं, लेकिन उसे निभाने में विफल रहे हैं.

बात करें यंग एक्टर्स सिद्धांत चतुर्वेदी और शरवरी वाघ की तो दोनों ने फिल्म में अपना जादू बिखेरा है. जहां हम सभी सिद्धांत के टैलेंट से पहले से ही वाकिफ हैं, वहीं, शरवरी को देख आप नहीं कहेंगे कि वह उनकी पहली फिल्म है, क्योंकि एक्ट्रेस हम सभी के लिए एक सरप्राइज पैकेज हैं. दूसरी तरफ पुलिस इंस्पेक्टर जटायु सिंह के रूप में पंकज त्रिपाठी हर बार की तरह फिल्म में एक एंटरटेनमेंट का डबल डोज हैं. हालांकि, उनकी मेहनत कमजोर कहानी और ख़राब राइटिंग के कारण बेहद प्रभावित हुई है.

वरुण वी शर्मा एक प्रभावशाली निर्देशन की शुरुआत करने में विफल रहे हैं. उनका निर्देशन और लेखन भ्रमित करने वाला और कम आत्मविश्वास वाला लगता है. गेवेमिक यू आर्य की सिनेमेटोग्राफी अच्छी है और घोटालों को कुशलता से पकड़ती है लेकिन आरिफ शेख की एडिटिंग औसत से कम है. जूलियस पैकियम द्वारा संगीत और शंकर-एहसान-लॉय के गाने फिल्म को बचाते दिखाई दे रहे हैं. सभी गानों में स्टार कास्ट शानदार नजर आ रही है.

PeepingMoon बंटी और बबली 2 को देता है 2.5 मून्स!

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