सत्यजीत रे को भारतीय सिनेमा के सबसे बेहतरीन फिल्मकारों में से एक के रूप में जाना जाता है. 1992 में उनकी मृत्यु के साथ, उन्होंने एक छाप और एक बेजोड़ विरासत को पीछे छोड़ दिया, जिसके करीब आने की हिम्मत किसी में नहीं थी. ऐसे में एक तरफ जहां उनके फैंस उनकी 2 मई को जयंती का इंतजार कर रहे हैं, वहीं उनके बेटे संदीप रे को अपने पिता के यादगार लम्हे का एक छिपा हुआ खजाना मिला है, जो उनके कोलकाता स्थित निवास के अटारी में था. रिपोर्ट के मुताबिक, कोरोनोवायरस लॉकडाउन के बीच एक सफाई सेशन के दौरान, संदीप ने को अपने पिता द्वारा क्लिक की गयी कुल 100 अनदेखी तस्वीरों के अलावा 1,000 के लगभग अनदेखी निगेटिव्स मिले जो कि उनकी शुरुआती फिल्म्स जैसे लेटर्स एंड टेलीग्राम्स से लेकर फ्रैंक कैप्रा, आर्थर सी क्लार्क, अकीरा कुरोसावा और रिचर्ड एटनबोरो की हैं.
लॉकडाउन के दौरान यादगार संग्रह खोजने के बारे में बात करते हुए, संदीप ने एक जाने माने अखबार को दिए इंटरव्यू में कहा है, "हम एक बार थोड़ी देर में मचान को साफ कर देते थे, लेकिन वहां कभी भी इस तरह से सफाई करते हुए जांच नहीं की थी. जैसे की वहां कुछ जरुरी पड़ा हो."
(यह भी पढ़ें: सत्यजीत रे की जगह IFFI ने फिल्म क्रेडिट में इस्तेमाल की गुलजार की तस्वीर, वायरल होने के बाद किया सुधार)
संदीप कहते हैं कि "मुझे याद नहीं कि कभी मैंने इन्हे प्रिंट होते हुए देखा हो. पाथेर पांचाली के दौरान के भी इसमें वर्किंग स्टिल्स हैं. उन दिनों के दौरान, एक एक्सपोज़र का मतलब था 36 तस्वीरें. हम कम से कम 25 ऐसे 25 वॉलेट्स लाने में कामयाब रहे हैं."
संदीप ने याद करते हुए कहते हैं, "इन तस्वीरों में बाबा को एक फोटो पत्रकार के रूप में दिखाया गया है. कुछ मामलों में, रंग फीका पड़ गया है. आज की टेक्नोलॉजी जो उपलब्ध है, मुझे यकीन है कि हम उन्हें फिर से रिस्टोर कर पाएंगे. लेकिन, जिन्हे हमने रिस्टोर कर लिया है, उन्हें कभी नहीं देखा गया है. मुझे लगता है कि हम बाबा की फोटोग्राफी की कम से कम तीन एक्सहिबीशन्स को होस्ट कर सकते हैं, जो हमने प्राप्त किया है. इसके अलावा, हमें कुछ तस्वीरें भी मिलीं हैं, जिन्हे मेरे द्वारा सेट पर क्लिक किया गया था."
संदीप ने अपने पिता और अटारी में छिपी यादों के बारे में अनमोल कहानियां साझा करते हुए कहते हैं, "आर्थर सी क्लार्क ने बाबा को उन कहानियों के बारे में लिखा था जो वह लिख रहे थे और जिस तरह का शोध कर रहे थे. मैंने इन पत्रों को पढ़ा था. इनमें से अधिकांश बातचीत सिनेमा के बारे में थे. दिल्ली फिल्म फेस्टिवल में बाबा ने फ्रैंक कैपरा से मुलाकात की थी. वह वहां जूरी मेंबर्स में से एक थे. इसके बाद, उन्होंने एक दोस्ती विकसित की और एक दूसरे को लिखना शुरू कर दिया."
संदीप निष्कर्ष निकालते हुए कहते हैं, "यह एक भयानक और अनिश्चित समय है. कोई नहीं जानता कि क्या लॉकडाउन बढ़ेगा. भविष्य भी बहुत अनिश्चित है. संदीप ने निष्कर्ष निकाला कि इस खजाने को बदलना हमारे लिए आशा की किरण है."
(Source: TOI)