पहली बार निर्देशन की कुर्सी संभाल रहे शान व्यास 'नटखट' में विद्या बालन को अप्रोच करने को लेकर कॉन्फिडेंट नहीं थें , लेकिन उन्होंने कहा, 'उन्हें कहानी पर विश्वास था.' कहानी पढ़ने के बाद विद्या ने न सिर्फ फिल्म करने का फैसला किया बल्कि इसे को- प्रोड्यूस करने का भी निर्णय लिया.
फिल्म में विद्या की कास्टिंग पर बात करते हुए शान व्यास ने कहा, 'फिल्म का राइटिंग हिंसा ख़त्म होने के बाद मैंने और अनुकम्पा ने कास्टिंग के बारे में सोचना शुरू कर दिया. हमारी लिस्ट में विद्या का नाम पहले थे. हमें एक ऐसी एक्ट्रेस चाहिए थी जिसकी आवाज अच्छी हो और विद्या की आवाज बहुत प्यारी है. हम एक स्ट्रॉन्ग फिगर चाहिए था. उस तरीके से विद्या हमारी पहली पसंद थी. मैं कॉंफिडेंट नहीं था लेकिन मुझे अपनी कहानी पर विश्वास था. फिल्म के कांसेप्ट के बारे में बात करते हुए, निर्देशक शान व्यास कहते हैं, 'नटखट' एक ऐसी फिल्म है जो इस तथ्य को संबोधित करती है कि हम महिला उत्पीड़न को संबोधित करने के लिए कितने भी सुधार और संस्थाएं स्थापित कर लें, लेकिन कम उम्र में बच्चों के उचित पालन-पोषण और बच्चों को समानता का महत्व सिखाने से ही बुनियादी तौर पर गहरे बदलाव को लाया जा सकता है.'
'नटखट' एक शॉर्ट फिल्म है जिसका प्रीमियर यूट्यूब पर 'वी आर वन: ए ग्लोबल फिल्म फेस्टिवल' में 2 जून, 2020 में किया गया था. यह फिल्म शान व्यास द्वारा निर्देशित और रॉनी स्क्रूवाला व विद्या बालन द्वारा निर्मित है। इस शॉर्ट फिल्म को अन्नुकम्पा हर्ष और शान व्यास ने सहयोगी निर्माता के रूप में सनाया ईरानी जौहरी के साथ लिखा है. इस फिल्म में विद्या बालन और बाल कलाकार सानिका पटेल ने मुख्य भूमिका निभाई है.
फिल्म की मुख्य कहानी एक मां के इर्द-गिर्द घूमती है जो अपने बेटे को लैंगिक समानता के बारे में शिक्षित करती है. इसमें दर्शाया गया है कि किस तरह से बच्चों में मर्दानगी और पितृसत्ता बहुत छोटे और बड़े उदाहरणों से शुरू होता है. फिल्म में हमारे वर्तमान पितृसत्तात्मक वातावरण को भी दर्शाया गया है और यह भी बताया गया है कि इसे बदलने के लिए हमें बदलाव की सख्त ज़रूरत है. विद्या बालन का किरदार निश्चित रूप से दर्शकों को विभिन्न मुद्दों पर सोचने के लिए मजबूर कर देगा.
निर्देशक आगे कहते, 'जब मैं और मेरी सह-निर्माता अन्नुकम्पा हर्ष फिल्म के लिए शोध करने के लिए बाहर निकले, तो हमने महसूस किया कि एक बच्चे के लिए उपलब्ध हर संकेत पुरुषों और महिलाओं के बीच एक शक्ति-अंतर का प्रतिनिधि है. अपने चारों ओर देखने पर उसे पुलिसकर्मियों, सेना के जवान, पुरुष राजनीतिज्ञ, स्कूल में पुरुष प्रिंसिपल और यहां तक कि एंटरटेनमेंट में भी हीरो की भूमिका में पुरुष ही नज़र आता है.'
बच्चों पर प्रभाव डालने वाली बाहरी बातों के बारे में बात करते हुए शान व्यास कहते हैं, 'ये सामाजिक ताकतें बहुत मजबूत हैं और माता-पिता इस पर नियंत्रण नहीं कर सकते हैं. बच्चे इसे आत्मसात करते हैं और उनके मन में यह बात विशेष जगह बना लेती है कि सिर्फ़ पुरुष ही बेहतर लिंग हो सकते हैं. एक बात जो माता-पिता बदल सकते हैं, वह यह है कि जिस तरह से उनके अपने बच्चे इसे और इस असमानता को देखते हैं.
(India Today)