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'यश चोपड़ा अकेले ऐसे थे जो साहिर लुधियानवी से उनकी पंक्तियों में बदलाव करने के लिए मना सकते थे': YRF कार्यकारी निर्माता माहेन वकील

प्रशंसित फिल्ममेकर यश चोपड़ा हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के जाने माने डायरेक्टर-प्रोड्यूसर में से एक थे. उन्होंने भारत के सबसे प्रीमियम प्रोडक्शन हाउसों में से एक यशराज फिल्म्स की स्थापना की, जो अपनी स्थापना के 50 साल के बाद भी सभी के दिलो पर राज कर रहा है. बता दें की उन्होंने मॉडर्न एरा की सबसे आइकॉनिक फ़िल्मों को डायरेक्ट किया है, जिसमे दाग, दिवार, लम्हे, सिलसिला, चांदनी, डर, दिल तो पागल है, वीर-ज़ारा, जब तक है जान आदि का नाम शामिल है.

ऐसे में यश चोपड़ा के सबसे पुराने एम्प्लॉई और फिर एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर बने महेन वकील ने दिवंगत फिल्ममेकर से जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें और किस्से साझा किये हैं. वह कहते हैं, "उन्होंने कभी भी अपने काम के साथ कोई समझौता नहीं किया. सेट पर किसी भी आर्टिस्ट को फिल्म का सीन समझाते समय वह इतने डूब जाते थे कि वहां मौजूद लोगों को लगता कि यश जी खुद ही परफॉर्म करने वाले हैं. वह एक्टर्स को हर सीन की बारीकियों के बारे में अच्छी तरह और बड़े विस्तार से बताते थे, जिसके बाद एक्टर्स का बेस्ट परफॉर्मेंस खुद ही सामने आ जाता था. आज के दौर की लव स्टोरीज, यश चोपड़ा द्वारा बनाई गई फिल्मों से बिल्कुल अलग होती हैं. उनकी लव स्टोरीज सचमुच बेजोड़ हैं जिनकी तुलना नहीं की जा सकती है."

(यह भी पढ़ें: आदित्य चोपड़ा ने YRF की 50 वीं वर्षगांठ पर लिखा नोट, कहा- 'मेरे पिता यश चोपड़ा को अंदाजा नहीं था कि छोटे से कमरे से शुरू हुई कंपनी सबसे बड़ी फिल्म स्टूडियो बन जाएगी')

उन्होंने जाने माने कवि-गीतकार साहिर लुधियानवी के साथ साझा किए गए डायरेक्टर के खास बॉन्ड के बारे में खुलासा किया और कहा, "साहिर लुधियानवी उस समय एक बड़े लेखक थे और किसी ने भी उन्हें सुधारने या अपने लेखन को बदलने के लिए कहने की हिम्मत नहीं की. लेकिन किसी तरह कविता पर यशजी का ज्ञान इतना अच्छा था कि वह अकेले ऐसे थे जो उन्हें कुछ पंक्तियों को बदलने के लिए मना सकते थे. वे एक दूसरे को भाई कहते थे. इतने बड़े कवि से उसके लेखन में बदलाव करवा पाना अपने आप में काफी आश्चर्यजनक था."

यश चोपड़ा  की फिल्मों के बड़े बजट के बारे में उन्होंने कहा, "उनकी फिल्में काफी महंगी हुआ करती थीं क्योंकि उन्हें हाई-टेक्नोलॉजी पर पूरा भरोसा था और वह कभी भी अपने काम में किसी तरह का समझौता नहीं करते थे. अगर आज भी आप 1965 में उनके द्वारा बनाई फिल्में देखेंगे तो आप पाएंगे कि उनके सेट के डिजाइन, कॉस्ट्यूम्स, इत्यादि की कोई तुलना नहीं है. उनके लिए तो, फिल्म-मेकिंग का पूरा प्रोसेस एकदम खरे सोने की तरह था. एक एम्प्लॉई के रूप में, उन्होंने हमें अपनी मर्जी से काम करने का अधिकार दिया, क्योंकि उन्हें पूरा भरोसा था कि हमारा काम बिल्कुल उनकी सोच के अनुरूप होगा. वह हर फिल्म को अपनी सोच के अनुरूप पर्दे पर उतारना चाहते थे और इस स्तर तक पहुंचने में उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी."

उनके स्वाभाव के बारे में आगे बात करते हुए वह कहते हैं, "यश जी एक जिंदादिल इंसान थे. उनकी नजरों में सभी का दर्जा एक समान था. वह शिफ्ट के समय से 1.5 घंटे पहले सेट पर पहुंच जाते थे और फिर हाथों को मोड़कर गेट के पास खड़े रहते थे, और इस बात को नोटिस करते थे कि कौन-कौन सेट पर किस वक्त आ रहा है. बॉस के आ जाने के बाद सेट पर पहुंचना किसी को अच्छा नहीं लगता था, इसलिए हम सभी वक्त से पहले ही वहां पहुंच जाया करते थे. क्या आज आपको सेट पर इस तरह का माहौल दिखाई देगा?" महेन वकील के मुतैक यश चोपड़ा ने कामयाबी की खूबसूरत मिसाल पेश की है. "

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