सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन CBFC को सेंसर बोर्ड के तौर पर भी जाना जाता है. अगर किसी फिल्म के कंटेंट, सीन्स, डायलॉग या फिल्म में दिखाई गई किसी भी घटना को लेकर कोई विवाद हो, तो फिल्म के निर्माता और निर्देशक के पास फिल्म सर्टिफिकेशन एपैलेट ट्रिब्यूनल यानी FCAT के पास जाने और वहां अपील कर राहत पाने का विकल्प हुआ करता था. मगर अब एक फैसले के तहत इस विकल्प को खत्म कर दिया गया है. सरकार ने 4 अप्रैल को एक नोटिफिकेशन जारी करके FCAT को खत्म करने का ऐलान किया था. ट्रिब्यूनल के अस्तित्व को तत्काल प्रभाव से खत्म कर दिये जाने से बॉलीवुड में नाराजगी है. तो वहीं CBFC के चेयरपर्सन प्रसून जोशी ने FCAT के खत्म होने पर सफाई दी है.
प्रसून जोशी ने अपने एक बयान में कहा, 'यह व्यापक ट्रिब्यूनल सुधार का हिस्सा है. एक समझता है कि एफसीएटी में न केवल एफसीएटी, बल्कि कई ट्रिब्यूनलों का एक प्रक्रियात्मक युक्तिकरण है, जो कार्यात्मक समानता के आधार पर 26 से 19 तक विलय या कम किया गया है. हमारे उद्योग के विशिष्ट दृष्टिकोण से, तथ्य यह है कि पिछले कुछ वर्षों में, अपीलीय निकाय में जाने के लिए आवश्यक फिल्मों की संख्या में लगातार गिरावट देखी गई है. पिछले दो-तीन वर्षों में केवल 0.2 प्रतिशत फिल्मों को एफसीएटी में ले जाया गया और मुझे यकीन है कि इस अंतर को और बंद किया जा सकता है. जैसा कि मैं ईमानदारी से मानता हूं कि जब उद्योग के पास मुख्य निकाय है - सीबीएफसी एक कुशल और व्यावहारिक तरीके से काम करता है, तो सभी मामलों और चिंताओं को जिम्मेदारी से, सौहार्दपूर्वक और हितधारकों के बीच सहयोग की भावना से निपटा जा सकता है.'
बता दें कि, फिल्ममेकर्स को अपनी फिल्म रिलीज कराने से पहले सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन से अपने कंटेंट को पास कराना होता है. इस संस्था को सेंसर बोर्ड के नाम से जाना जाता है. आए दिन आप ऐसी खबरें पढ़ते रहते हैं जिनमें कहा जाता है कि सेंसर बोर्ड ने फिल्म से सीन हटाने को कहा या किसी आपत्तिजनक शब्द को म्यूट करने का आदेश दे दिया.
कई बार ऐसा भी हुआ है कि सेंसर बोर्ड ने फिल्म पास करने से ही मना कर दिया. ऐसे में फिल्ममेकर्स सेंसर बोर्ड की इस मनमानी के खिलाफ FCAT में अपील करते थे. इस ट्रिब्यूनल का गठन सरकार ने 1983 में ऐसे ही विवादों के निपटारे के लिए किया था. जहां उनकी बात पूरे इत्मिनान से सुनी जाती थी. अलंकृता श्रीवास्तव की फिल्म 'लिपस्टिक अंडर माय बुर्का' के सर्टिफिकेशन व रिलीज का विवाद भी FCAT के दरवाजे तक गया था. नवाजुद्दीन सिद्दीकी स्टारर और कुशान नंदी द्वारा निर्देशित फिल्म 'बाबूमोशाय बंदूकबाज' की रिलीज से जुड़ा विवाद भी FCAT ने सुलाझाया था.
अब सरकार के नए फैसला से हुआ ये है कि फिल्ममेकर्स के पास समाधान ढूंढने का एक दरवाजा हमेशा के लिए बंद हो गया है. अब उनकी CBFC और कोर्ट दोनों पर ज्यादा बढ़ गई है. CBFC ने मनमानी की तो सीधे कोर्ट ही जाना पड़ेगा, जहां पर टाइम भी ज्यादा जाएगा और फिल्ममेकर्स के संसाधन भी ज्यादा इस्तेमाल में आ जाएंगे. इसी वजह से भारतीय फिल्ममेकर्स केंद्र सरकार के इस फैसले को सिनेमा के लिहाज से काला दिन बता रहे हैं.