'मिर्जापुर' फेम रसिका दुग्गल आज किसी पहचान की मोहताज नहीं है. डिजिटल क्वीन रसिका ने हाल ही में ह्यूमन्स ऑफ बॉम्बे से खास बातचीत में अपने स्ट्रगल को लेकर खुलकर बात की.
रसिका ने कहा कि, 'मैं जमशेदपुर में पली-बढ़ी हूं. वहां के ज्यादातर बच्चों का एक ही जवाब होता था कि बड़े होकर डॉक्टर या इंजीनियर बनना है. मैं अलग नहीं थी. लेकिन जब मैं कॉलेज गई तो सब कुछ बदल गया. मेरे आस-पास बहुत सारे टैलेंटेड डांसर और कलाकार थे. एक पूरी नई दुनिया के लिए एक दरवाजा खुल गया था. मैंने कॉलेज के टाइम में नाटक करतीं थी पर कभी ये नहीं सोचा था कि एक प्रोफेशनल एक्टिंग कर पाउंगी. फिर एक दिन मैंने एफटीआईआई में एक्टिंग कोर्स के बारे में पढ़ा. मैंने तुरंत अप्लाई किया और मेरा सेलेक्शन हो गया. ओरियंटेशन के दौरान, मैंने सोचा कि मैं ये कहां आ गई हूं ? लेकिन 6 महीने में, मुझे पता चल गया मैं यहीं चाहतीं थी. एक्टिंग कोर्स के बाद ऑफकोर्स मैं एक एक्टर बनने के लिए बॉम्बे आई. मैं एक दिन में 5 ऑडिशन देती थी, मुझे सिर्फ ऑडिशन से मतलब था क्योंकि मुझे बस काम चाहिए था और उनके पास काम था.'
अपने स्ट्रगल को लेकर रसिका कहती है कि, 'मुझे छोटे किरदार ना करने के खिलाफ सलाह दी गई थी, लेकिन मैंने फिर भी अनुराग कश्यप की नो स्मोकिंग के साथ लगभग 14 फिल्मों में काफी छोटे रोल किए. मैं ये गर्व से कहतीं थी कि, मुझे अनुराग कश्यप की फिल्म में काम करने का मौका मिला. कुछ लोगों ने मेरे किरदार की लंबाई को लेकर मेरा मजाक भी उड़ाया लेकिन मुझे अपने काम पर प्राउड था और रहेगा. फिर मुझे अक्षय नाम की एक फिल्म में लीड एक्ट्रेस के तौर पर सेलेक्ट किया गया. शूटिंग शूरू हुई, सेट पर केवल 4 लोग होते थे..कभी-कभी, मैं शॉट पर थर्मोकोल शीट पकड़ती थी. किसी तरह फिल्म बनी और शिकागो इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में प्रीमियर हुई. सबसे बेस्ट पार्ट क्रिटिक्स ने मेरी परफोर्मेंस को काफी सराहा. मैं इससे बहुत एक्साइटेड हो गई थी. फिल्म अक्षय के बाद, मैंने किस्सा में इरफ़ान, टिस्का और तिलोत्तमा के साथ काम किया. फिर, मैंने लगभग 5 फिल्में साइन की लेकिन किसी में काम नहीं कर पाई. प्रोड्यूसर्स ने कहा था कि मैं ऑडियंस को खींचने में कामयाब नहीं हो पाउंगी. ये मेरे करियर का सबसे लॉ फेस था. फिर भी, मैंने एक कलाकार होने के अपने फैसले पर सवाल नहीं उठाया. मुझे विश्वास था कि कुछ अच्छा होगा.'
रसिका ने आगे बताया कि कैसे 'मंटो' और 'मिर्जापुर' ने उनके करियर को बदल दिया. उन्होने बताया कि, 'एक दिन, मेरे फोन की घंटी बजी- वह नंदिता दास थी. वह मुझे मंटो में कास्ट करना चाहती थी और इसने सब कुछ बदल दिया. फिर आया मिर्जापुर. मैं एक ऐसे प्रोजेक्ट के लिए तरस रही थी. जो बहुत लोगों तक पहुंचे, जिसके बारे में मुझे लोगों को बताने की जरूरत नहीं थी. मेरे लिए मिर्जापुर वही था. मेरा कभी एक लक्ष्य नहीं रहा है. डॉक्टर बनने की चाहत से लेकर एक्टिंग करने तक, मैं हर जगह रही हूं. लेकिन मैंने हमेशा अपने पर भरोसा किया है और यही मुझे यहां तक लाया है. मैं पहले 18 साल की रसिका से यही कह ती थी, 'आप सही काम कर रहे हैं, दूसरे के बारे में ना सोचे.'
(Source: Humans Of Bombay)