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PeepingMoon Exclusive: साईं बाबा का किरदार निभाने पर राज अर्जुन ने कहा, 'सीरीज में हमने उनके ह्यूमन पक्ष को हाथ में लिया, जिसमें हमने दिखाया कि वो संत थे'

साईं बाबा पर अब तक कई फिल्में और टीवी सीरियल्स बन चुकी हैं. पहली बार वेब सीरीज के रूप में उनके जीवन को दर्शकों के सामने लाया जाएगा. यह वेब सीरीज एमएक्स प्लेयर पर रिलीज़ होगी, जिसका ट्रेलर मंगलवार को रिलीज़ कर दिया गया. अजीत भैरवकर निर्देशित सीरीज के 10 एपिसोड्स हैं. सीरीज़ में साईं बाबा का किरदार राज अर्जुन निभा रहे हैं, जिन्हें दर्शकों ने हाल ही में रिलीज़ हुई फिल्म 'शेरशाह' में एक अहम किरदार में देखा था. हाल ही में पीपिंगमून से बातचीत में राज अर्जुन ने सीरीज में काम करने और साईं ने उनके जीवन को किस तरह से प्रभावित किया है उस बारे में बात की. 

साईं बाबा के जीवन को इससे पहले बहुत बार टीवी सीरियल्स और फिल्मों के जरिये दिखाया जा चुका है, इसमें क्या वही सारी चीजें या उनके जीवन के कुछ अनछुए पहलू है?

जवाब- जो आप बचपन से देखते आये हैं वैसा नहीं होगा, ये अलग है. अब तक साईं को हमने भगवान की तरह देखा है. अब हमने उनके ह्यूमन पक्ष को हाथ में लिया, जिसमें हमने दिखाया कि वो संत थे. वो ऐसे पुरुष थे जो लोगों की मदद करने के लिए पैदा हुए थे. ज्यादातर हमने जो काम देखें हैं उसमें हमने लार्जर देन लाइफ साईं को बड़ा करके भगवान बनाकर दिखाया है तो उनका एक पक्ष सामने आया है. एक पक्ष मतलब प्यार वाला जो सबकी मदद करता है. उनके ह्यूमन इमोशंस को बहुत अलग- अलग कहानी में सरलता से बहुत रिलेवेंट बनाते हुए परोसने की कोशिश की है और उसे जिया है. जितने भी लोग टीम से जुड़े हुए थे उसमें से ज्यादातर लोग साईं भक्त थे. बहुत सारे लोगों में जुनून था, जोश था कि कुछ अच्छा करना है. भगवान तक पहुंचने का रास्ता अलग- अलग है लेकिन पहुंचना तो वही है न? हमने ये कोशिश की नहीं कि जो बना था उससे बहुत अलग क्या है, हमने ये कोशिश की है कि सही क्या है सच्चा क्या है, ईमानदार क्या है और हमने उनके ह्यूमन पक्ष को आगे बढ़ाया है. 

साईं बाबा ने जिस तरह का जीवन जिया और जो संदेश दिया उस चीज ने आपके जीवन को किस तरह प्रभावित किया है ?

जवाब- बहुत ज्यादा. बहुत ज्यादा इसलिए बोल रहा हूं क्यूंकि क्या होता है की हमारी अपब्रिंगिंग भी वैसे होती है क्यूंकि जिस तरह हम पलते बढ़``ते है तो कहीं न कहीं हमारे बड़ो से भी हम कुछ सिख लेते है. खुदा खोदने से थोड़ी मिलता है, खुदा तो खो देने से मिलता है. 

आपको इंडस्ट्री में एक दशक से ज्यादा का समय हो गया, ज्यादातर आप सपोर्टिंग रोल में ही दिखे है, क्या ये चीज आपको परेशान करती है ?

जवाब- मुझे दो दशक हो गए है, में 1999 में आया था और मैं जीवन में बड़ा लक्ष्य लेकर ही आया था. मेरे छोटे ख्वाब नहीं थे. कई बार क्या होता है, आपको जब रास्ता नहीं मिलता है तो आप उसपे चलते हो, फिर उसपे और फिर उसपे. मुझे रास्ता नहीं मिल रहा था, मुझे काम नहीं मिल रहा था. बस भटक रहा था. सफर में मुझे बहुत सारे रोल्स ऐसे करने पड़े जो मैं नहीं करना चाहता था. बात पैसों की नहीं है फाइनेंशियली मैं बहुत स्ट्रॉन्ग हूं. एक समय आया जब मुझे लगा कि इन रोल्स करते- करते वहां नहीं पहुंच पा रहा हूं जहां मुझे पहुंचना है. मेरी चाहत कुछ और है और मैं सेटिस्फेक्शन नहीं पा पा रहा हूं. मैंने डिसाइड किया कि अब मैं वही रोल करूंगा जो कंटेंट में बहुत भारी होंगे और जिसमें मेरा बहुत पावरफुल रोल होगा. मैं वही करूंगा जो मन को भायेगा. रही बात सपोर्टिंग एक्टर्स की तो मुझे लगता है कि एक्टर्स को इतना सम्मान तो देना चाहिए कि उनको बोला जाये कि ये सब एक्टर्स है और एक्टर्स की कैटेगरी में ही हमको काम करना है (सभी को). वो कोई भी हो. बहुत बड़ा हीरो हो वो भी एक्टर कहलायेगा, बहुत छोटा हो वो भी एक्टर कहलायेगा. तभी वह समभाव पैदा होगा. जब तक हम ये डिफ्रेंशियट करेंगे तब तक बात बनेगी नहीं.  

 आपकी फिल्म शेरशाह को अब तक इंडेपेंडेन्स पर रिलीज हुयी सभी फिल्मों में बेस्ट फिल्म बताया जा रहा है. क्या आपको लगता है कि मेकर्स अगर थोड़ा और इन्तजार कर लेते और थिएटर में रिलीज होती तो और अच्छा रिस्पॉन्स मिलता. 

जवाब- मैं पर्सनली किसी प्रोजेक्ट से जुड़ता हूं, उसपर काम करता हूं. फिर उसे भूल जाता हूं. फिर मेरे मन ये बातें आती नहीं है कि प्रोजेक्ट कहां रिलीज हो रहा है. या मैं उसमें कितना हूं, कितना नहीं हूं. महामारी की वजह से मुझे लगता है कि जो उन्हें बेस्ट लगा होगा वो फैसला उन्होनें लिया. कभी- कभी कोई चीज तैयार हो तो उसे परोस देना चाहिए, गरम- गरम खाना खिला देना चाहिए. बाद में उसे ओवन में गरम करके करें तो नहीं भी ठीक लगता है. मुझे लगता है की मेकर्स ने सही डिसीजन लिया होगा. 

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