कोरोनोवायरस लॉकडाउन के दौरान प्रवासी मजदूरो को उनके अपने शहरों तक पहुंचाने में जिस तरह से सोनू सूद मसीहा बनकर सामने आए, इससे उन्होने हर एक भारतीय नागरिक का दिल जीत लिया है. प्रवासी मजदूरों को घर पहुंचाने से लेकर, विदेशों में फंसे भारतीय छात्रों को उनके परिवार से मिलाने तक. मुश्किल में फंसे कलाकारों और नौकरीपेशा लोगों की मदद से लेकर अब जरूरतमंदों को नौकरी दिलाने तक का बीड़ा सोनू सूद ने उठा रखा है. जब पूरा देश महामारी के तहत जूझ रहा था...तब सोनू ने लोगों तक मदद पहुंचाने के लिए एक हॉटलाइन नंबर भी लॉन्च किया और साथ ही एक एप भी भी लॉन्च की, जो बेरोजगार प्रवासी कामगारों को अपने ही घर कस्बों में नौकरी खोजने में मदद करने वाला है. सोनू के अपने इस काम ने न केवल आम लोगों से, बल्कि पॉलिटिकल लीडर्स से भी काफी प्रशंसा हासिल की. ट्विटर पर कई दिनों तक #SonuSoodRealHero जैसे हैशटैग ट्रेंड करते रहे.
PeepingMoon.com के साथ एक एक्सक्लूसिव वीडियो इंटरव्यू में, सोनू सूद ने कई मुद्दों पर बात की. जिसमें लॉकडाउन के दौरान प्रवासी मजदूरों की मदद करने की शुरूआत से लेकर बॉलीवुड में इन दिनों चल रही ‘इनसाइडर बनाम आउटसाइडर’ की बहस तक पर खुलकर बातचीत की. इंटरव्यू के दौरान सोनू से जब उनकी बायोपिक बनाए जाने पर पूछा गया तो एक्टर ने कहा कि, 'कुछ अच्छे राइटर्स हैं जिन्होंने मुझसे संपर्क किया है, लेकिन मुझे नहीं पता कि क्या मैंने जीवन में वास्तव में कुछ भी अच्छा किया है जो कि एक बायोपिक पर लिखने लायक है. यह मेरे लिए थोड़ा सा एम्बेरेसिंग है लेकिन कुछ लोग हैं जिन्होंने कहा है कि वे लिख रहे हैं और वे मेरे पास वापस आएंगे जल्दी. मुझे अब भी विश्वास नहीं है कि मैंने कुछ ऐसा किया है जिससे एक फिल्म बन जाए...लेकिन हां पिछले कुछ दिन ऐसे हैं जो मेरे पिछले कई सालों की तुलना में ज्यादा अहम हैं.'
यह पूछे जाने पर कि क्या वह अपनी बायोपिक में खुद ही लीड रोल प्ले करेंगे. जिसपर सोनू ने कहा, 'मैं कर सकता हूं और मुझे यह करना अच्छा लगेगा. मुझे नहीं लगता कि कोई और है जो मुझसे बेहतर ये कर सकता है.' वहीं सोनू से नेपोटिज्म डिबेट के बारे और अगर नेपोटिज्म डिबेट के इस दौर में अपने बेटे की लॉन्चिंग पर सोनू ने कहा कि, 'जो कोई भी इस इंडस्ट्री से जुड़ा है वह जाहिर तौर पर अपने बच्चों को यहां पैर जमाने में मदद करेगा. हर कोई अपने परिवार के लोगो को कम संघर्ष करने में मदद करना चाहता है. मेरे पिता की पंजाब में एक कपड़ों की दुकान थी. मुझे बस इतना करना था कि मुझे बस दुकान पर जाकर बैठना था. जब मेरे पिता ने दुकान शुरू की थी उन्होंने अपने व्यवहार से कस्टमर्स से अच्छे संबंध बनाए, खरीदार-विक्रेताओं से डील की उन्होंने इस दुकान को बढ़ाया. फिर मुझे बस इतना करना था की मेरे पिता द्वारा बनाई गई और जमाई गई इस दुकान पर बैठकर वो ही चीजे करनी थी. सही मायनों में मेहनत तो मेरे पिताजी ने की थी. बस वही सेम चीज इंडस्ट्री में है.'
उन्होंने आगे कहा, 'कल अगर मेरा बेटा इंडस्ट्री में आना चाहता है तो मैं उसे एक्सेस करने की कोशिश करूंगा जो मेरे पास कभी नहीं था, लेकिर उसके पास मैं हूं. मुझे याद है कि एक बड़े निर्देशक थे जो उस समय बोरीवली नेशनल पार्क में शूटिंग कर रहे थे, मैं उस टाइम उनको अपनी कुछ तस्वीरें दिखाना चाह रहा था...उन्होनें मुझसे बोला कि बाद में ऑफिस आए. मैंने उनसे कहा कि अभी आपके पास टाइम है, बस एक बार इन्हे देख लिजिए. पर उन्होने मेरी फोटोज देखने के लिए अपने समय के दो मिनट भी शेयर नहीं किए, और ये तब था कि जब में पहले से ही साउथ की दो फिल्में कर चुका था. कई साल बाद जब वह वो ही फिल्ममेकर मेरे पास अपनी एक स्क्रिप्ट के साथ मेरे पास आए, तो मैं उस समय उनकी फिल्म करने के लिए बहुत उत्सुक नहीं था और मैंने उनको इस घटना के बारे में याद दिलाया जिसपर उन्होने कहा, 'नहीं, ऐसा नहीं हो सकता, ऐसा नहीं था कि मैं उनसे कुछ बदला लेना चाहता था..., लेकिन सच मैं मुझे स्क्रिप्ट में कोई दिलचस्पी नहीं थी और मैंने उन्हे ये ही कहा. हालांकि, मैं जो कहना चाहता हूं वह यह है कि समय बहुत मायने रखता है. यदि आपको अपने आप को बनाना है तो संघर्ष से तो गुजरना है और यह पूरी प्रक्रिया बहुत जरूरी है. मैं अपने बेटे के लिए वो करूंगा जो हर माता-पिता करते है लेकिन मैं चाहता हूं कि वो अपनी जर्नी खुद तय करें जो ज्यादा महत्वपूर्ण है.'
(Transcribed By: Varsha Dixit)