90 के दशक का ये गाना 'छोटा बच्चा जान के ना कोई आंख दिखाना रे..' आज भी सभी बच्चों के फेवरेट सॉन्ग्स में से एक है. फिल्म 'मासूम' का ये गाना आज भी बच्चों की जुबां पर रहता है. इस गाने को एक छोटे बच्चे पर फिल्माया गया था. यह बच्चा बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट बहुत पॉपुलर हुआ था. इस चाइल्ड आर्टिस्ट का नाम है ओमकार कपूर. ओमकार ने साल 2015 में आई फिल्म 'प्यार का पंचनामा 2' से सबको अपने एक्टिंग का हुनर फिर से दिखाया. वहीं ओमकार की हाल ही में एंथोलॉजी फ़िल्म फॉरबिडन लव रिलीज हुई है. फिल्म में 4 कहानियां है. जिसमें निर्देशन प्रदीप सरकार की 'अरेंज्ड मैरिज' में ओमकार ने लीड रोल प्ले किया है. वहीं अपने फिल्मी करियर से लेकर इनसाइडर वर्सेस आउटसाइडर की डिबेट को लेकर पीपिंगमून से एक्सक्लूसिव बातचीत की है
सवाल- 90s में आपने एक चाइल्ड आर्टिस्ट के तौर पर कई बड़ी फ़िल्मों में काम किया था. 'जुड़वा' हो या 'मासूम' या 'जुदाई'. फिर आपने ब्रेक ले लिया. उसके बाद आपने लंबे समय बाद फिल्मों में वापसी की इस ब्रेक में आपने क्या क्या किया ?
जवाब- यह ब्रेक इंटेंशनली पढ़ाई के लिए लिया गया था. मम्मी पापा ने उस टाइम यह डिसाइड किया कि पहले एजुकेशन कंप्लीट कर लेते हैं. एक बार पढ़ाई पूरी हो जाए तो एक्टिंग जो मेरा पैशन है उसको तो मैं आगे भी शुरू कर सकता हूं, इसलिए पहले मैंने अपनी पढ़ाई पूरी की फिर उसके बाद फिर उसके बाद जब मैं लगभग 17 या 18 साल का था, मैंने देखा की इतने सालों बाद इंडस्ट्री में कई चीजें बदल गई थी काम करने का तरीका बदल गया था. कई अलग तरीके की फिल्में बन रही थी. उस समय मैंने आमिर खान की 'दिल चाहता है' देखी थी. उस फिल्म मैं मेरा नजरिया बदल दिया था फिर मुझे लगा कि अगर मुझे एक्टिंग दोबारा शुरू करनी है तो पहले यह चीज समझ नहीं होगी इस बदलती हुई इंडस्ट्री के साथ कैसे काम किया जाए. इसलिए मैंने पहले बिहाइंड द कैमरा काम करने का सोचा जिससे मैं हर वह चीज सीख सकूं जिससे मेरी एक्टिंग में और सुधार हो. मैंने यह सोचा अपनी सेकंड इनिंग एक्टिंग में शुरू करने से पहले मैं टेक्निकली भी स्ट्रांग हो जाऊं. तब मैंने कुछ टाइम कई बड़े फिल्म मेकर्स को असिस्ट किया. कई बड़े डायरेक्टर्स के साथ काम करके मैंने बहुत कुछ सीखा. एक तरीके से ये मेरे कैमरे के पीछे की जानकारियों को जानने के साथ कुछ ग्रुमिंग इयर्स भी थे. और मुझे आज फील होती है कि जो मेरा असिस्ट करने का डिसीजन था वह बेस्ट था. वह सब चीज भी फायदा देती है. और यह सब चीजें आपकी परफॉर्मेंस को भी अच्छा करती है. फिर मैंने प्यार का पंचनामा 2 से वापसी की.
सवाल- साल 2015 में आई फिल्म प्यार का पंचनामा-2 से आपके करियर को कितनी मदद की ?
जवाब- इस फिल्म ने मेरे करियर को बहुत आगे बढ़ाया है. इस फिल्म के बाद मेरी लाइफ बदल गई थी. बहुत कम लोग जानते हैं कि उस टाइम पर मैं टेलीविजन शो भी कर रहा था. उस टाइम पर मेरी शुरुआत हुई थी. पॉकेट मनी के लिए, खर्चे पूरे करने के लिए काम से टच में रहने के लिए मैंने यह टीवी शो किया था. फिर प्यार का पंचनामा के बाद लोगों ने मुझे पहचाना. मुझे काम मिलना शुरू हुआ फिर मेरी एक दूसरी फिल्म आई थी झूठा कहीं का. मैं काफी टाइम से वेब शोज और बेव सीरीज में एक्सप्लोर कर रहा था. फिल्मों की बात करूं तो उस समय मुझे कोई ऐसी फिल्म मिल नहीं रही थी कि जिसकी मुझे कहानी पसंद जो दिल को छू जाए. मतलब जो मैं करना चाह रहा था वह मिल नहीं रहा था और मिल रहा था वह पसंद नहीं आ रहा था. कई कहानियां ऐसी आई जो मुझे पसंद नहीं आ रही थी मेरे दिल को नहीं छू रही थी. खैर यह जर्नी थी आपको धैर्य रखना होता है, तो शायद इसलिए कई चीजों में टाइम लग गया लेकिन मुझे लगता है हर चीज में धैर्य बहुत जरूरी है.
सवाल- किस तरह की फिल्में करना चाहते हैं आगे आप .
जवाब- मुझे थोड़ी सी इंस्पायर्ड कहानियां ज्यादा पसंद है. कहानी थोड़ी रियल घटना से इंस्पायर्ड हो जिसको फिक्शन का रूप दिया जाए. इस तरह की कहानी से लोग जुड़ते हैं. तो मुझे लगता है ऐसी फिल्में मुझे ज्यादा आकर्षित करती हैं इस कहानी को थोड़ा ड्रामा थोड़ा कॉमेडी करके भी पेश किया जाए तो अच्छा सब्जेक्ट बनता हैं.
सवाल- सवाल- ज़ी 5 पर जो एंथोलॉजी फ़िल्म फॉरबिडन लव है उसमें 4 कहानियां है और आप जिस कहानी का हिस्सा हैं उसका नाम अरेंज्ड मैरेज है. प्रदीप सरकार डायरेक्टर हैं. प्रदीप सरकार के साथ काम करने का एक्सपीरियंस कैसा रहा ?
जवाब- उनकी सब काम करने का एक्सपीरियंस बहुत अच्छा रहा. मुझे तीसरी बार उनके साथ काम करने का मौका मिला. इससे पहले हमने साथ मिलकर दो आर्ट फिल्में की थी. फिर उन्हें लगा कि मैं उनके साथ आगे भी काम कर सकता हूं तो उन्होंने मुझे इस कहानी के लिए कास्ट किया. उनके साथ काम करना हमेशा ही बहुत मजेदार होता है. वह एक्चुअल में बहुत बुजुर्ग हैं पर उनका दिल एकदम बच्चे जैसा है. उनके साथ काम करने में बहुत मजा आता है. वह खुद भी बहुत खाते थे हम लोगों को भी बहुत खिलाते थे उनके साथ काम करने में एक कंफर्ट है मुझे. उनके साथ काम करने के साथ-साथ बहुत कुछ सीखने को भी मिलता है.
सवाल- नेपोटिज्म और इनसाइडर वर्सेस आउटसाइडर पर आपकी क्या राय है
जवाब- अगर मैं अपने आप की बात करूं तो मैं अपने आप को ना तो इनसाइडर मानता हूं ना तो आउटसाइडर मानता हूं. कई लोगों ने कहा कि यह तो चाइल्ड आर्टिस्ट रहा था तो इसको तो आसानी से ब्रेक मिल गया होगा तो कुछ लोगों ने यह भी कहा कि नहीं इसने अपने दम पर सब कुछ किया दोबारा शुरुआत की. मुझे लगता है यह सब की सोच का खेल है. जो बाहर शहरों से आते हैं उन्हें लगता है कि इनसाइडर के लिए चीजें आसान होती हैं और इनसाइडर्स को लगता है की आउटसाइडर होना ठीक है क्योंकि इंसाइडर्स को स्टारकिड्स होने के नाते कई चीजे झेलनी पड़ती है. कंपैरिजन झेलना पड़ता है. वह किसी के स्टार सन या स्टार डॉटर है तो इसकी कई बार खामियां भी उठानी पड़ती है. तो मुझे लगता है कि आप भले इनसाइडर हो या आउटसाइडर एंड में आपका काम ही महत्व रखता है. दोनों का संघर्ष अलग होता है. इंसाइडर होने में बस आपको कई बार इस मौके आसानी से मिल जाते हैं, पर आपको अपना काम खुद ही साबित करना होगा. आपको अपने अभी नहीं वक्त के साथ हमेशा आगे ही बढ़ना होगा तो उसका कोई विकल्प नहीं है अगर आप मेहनती हैं अपना काम जानते हैं तो इंसाइडर आउटसाइडर होने से कोई फर्क नहीं पड़ता.