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Tribute: किशोर कुमार के बचपन के किरदार से लेकर सलमान खान के पिता की भूमिका तक, ऐसी है दिग्गज एक्टर जगदीप की जीवन की फिल्मीं कहानी

अपनी कमाल की कॉमेडी टाइमिंग के लिए प्रसिद्ध एक्टर जगदीप ने आज अपनी आखिरी सांस ली. साल 1953 में 'दो बीघा जमीन' से अपने करियर की शुरुआत करने वाले जगदीप को शायद ही पता था कि आने वाले समय में वह कई फिल्में और अनेकों किरदार निभाकर सभी के दिलों पर राज करेंगे. ऐसे में उनके निधन की खबर ने बॉलीवुड को दुख के अंधेरे में धकेल दिया है. बता दें कि जगदीप पांचवे बॉलीवुड सेलेब हैं, जिनकी इस साल मृत्यु हुई है. तो चलिए एक्टर की याद में हम आपको बताते हैं उनके जीवन से जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें.

अपने 'सूरमा भोपाली' के किरदार के लिए प्रसिद्ध जगदीप का यह असली नाम नहीं है. बता दें कि यह उनका स्टेज नेम है, जिससे उन्हें उनके पूरे करियर के दौरान पहचाना गया. वहीं, उनका असली नाम सैयद इश्तियाक अहमद जाफरी है, जो सिर्फ उनके करीबी लोगों को ही पता था. 

जगदीप का जन्म 29 मार्च, 1939 को दतिया, मध्य प्रदेश में हुआ था.

(यह भी पढ़ें: 'सूरमा भोपाली' के नाम से जाने जानें वाले दिग्गज अभिनेता जगदीप का हुआ निधन, 81 साल की उम्र में ली अंतिम सांस)

साल 1947 में इंडिया पाकिस्तान के पार्टीशन के दौरान जगदीप साहब मुंबई आ गए थे. उस समय उनकी उम्र महज 6 से 7 साल थी. बता दे कि जगदीप साहब की देखरेख उनकी मां ने की थी, ऐसा इसलिए क्योंकि उनके पिता का इंतकाल बेहद कम उम्र में ही हो गया था. 

परिवार का पेट पालने के लिए जगदीप की मां एक अनाथ आश्रम में खाना बनाने का काम किया करती थीं. जगदीप के मन मे अपनी मां को काम करते देख एक दिन यह ख्याल आया कि दुनिया भर में इतने सारे बच्चे हैं जो काम करते हैं आखिर पढ़ाई लिखाई से होता क्या है. और उन्होंने इस बात को अपनी मां को बताया. मां के  लाख मना करने के बावजूद जगदीप ने अपना मन बना लिया था वह शहर जाकर कमाना चाहते थे और इस तरह उन्होंने मुंबई का रुख किया.

हालांकि शुरुआत में ही उन्हें फिल्मों में काम नहीं मिला वह पतंगे बनाने लगे और साबुन बेचते थे. एक दिन जिस रोड पर वह काम किया करते थे वहां एक आदमी आया जिसे कुछ बच्चों की तलाश थी. उसे कुछ ऐसे बच्चे चाहिए थे जो फिल्मों में काम कर सके. काम भी बड़ा आसान था सिर्फ बैठना था वह भी चुपचाप. जब उस शक्स ने जगदीप से पूछा कि क्या वह फिल्मों में काम करेंगे? तब न नील जगदीप ने सवाल भरी नजरों से देखते हुए पूछा यह क्या होता है? इसी वजह यह थी कि उन्होंने कभी गरीबी के कारण फिल्में नहीं देखी थीं.

जगदीप फिल्मों में काम करने के लिए तैयार हो गए उन्होंने आदमी से पूछा कि पैसे कितने मिलते हैं उसने जवाब में कहा 3 रूपये. उस दौर में तीन रुपए एक बड़ी कीमत हुआ करती थी खासकर के किसी गरीब के लिए पूरे महीने भर की कमाई.

दूसरे दिन जगदीप साहब स्टूडियो अपनी मां के साथ पहुंचे, जहां उन्हें भीड़ में बच्चों के साथ कुर्सी पर बैठने के लिए कहा गया. दरअसल यह किसी स्कूल का सीन था जहां कुछ बच्चे स्टेज पर परफॉर्म कर रहे थे, जबकि कुछ कुर्सी पर बैठे थे. इसी बीच एक बच्चा उर्दू में अपना डायलॉग बोलते हुए लड़खड़ाते हुए नजर आ रहा था, वहां मौजूद कोई भी बच्चा इसे बोलने में सहज नहीं था. लेकिन जगदीप साहब को उर्दू आती थी. इस दौरान उन्होंने अपने पास बैठे बच्चे से कहा अगर मैं इसे बोलूं तो मुझे कितने पैसे मिलेंगे तब उस बच्चे ने जवाब में कहा 6 रूपये. 6 रूपये मिलने की बात ने जगदीप साहब को इतना प्रेरित किया कि वह खड़े होकर बोल पड़े कि मैं इस डायलॉग को बोल सकता हूं. बता दे कि उन्होंने बेहद शानदार तरीके से अपना डायलॉग बोला और इस तरह से उनके एक्टिंग करियर की शुरुआत बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट हुई.

 आपको बता दें कि जगदीप साहब की यह पहली फिल्म बी आर चोपड़ा की 'अफसाना' थी जिसमें यश चोपड़ा बतौर असिस्टेंट डायरेक्टर काम कर रहे थे.

इस फिल्म के बाद उन्होंने कई फिल्मों में बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट काम किया. इस तरह से एक दिन उन्हें फनी मजूमदार के फिल्म 'धोबी डॉक्टर' के लिए कास्ट किया गया. फिल्म में जगदीप साहब ने छोटे किशोर कुमार की भूमिका निभाई थी.

'धोबी डॉक्टर' के प्रोड्यूसर में जगदीप साहब की परफॉर्मेंस देख चुके महान फिल्मकार विमल रॉय ने उन्हें अपनी फिल्म 'दो बीघा जमीन' में लेने का फैसला किया. बता दें कि इस फिल्म के लिए उन्हें 300 रूपये  बतौर फीस मिले थे.

इस तरह से उन्होंने अपने करियर में सिर्फ आगे बढ़ना सीखा और कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. बता दे कि उन्होंने कई फिल्मों में बतौर लीड हीरो भी काम किया, हालांकि उन्हें इससे ज्यादा प्रसिद्धि नहीं मिली, लेकिन उनकी 'भाबी' फिल्म को कौन भूल सकता है, जिसमें नंदा इनकी हीरोइन थीं.

 जगदीप साहब पहले ऐसे चाइल्ड आर्टिस्ट हैं, जिन्होंने अपने करियर में 70 ज्यादा साल लगातार काम किया. बचपन से लेकर जवानी और फिर बुढ़ापे तक उन्होंने सभी को एंटरटेन किया.

आपको बता दें कि चाइल्ड आर्टिस्ट के रूप में अपने करियर की शुरुआत करने वाले जगदीप साहब ने सबसे पहले जेजे हॉस्पिटल के करीब एक झोपड़ी बांधी थी. जैसी जैसी उनकी कमाई बड़ी उन्होंने उसके बाद मुंबई के माहिम में एक होली ली जिसे हम एक कमरे का घर भी कहते हैं. हालांकि जब उन्होंने फिल्म प्रोडक्शन a.v.m. के साथ काम करना शुरू किया तब उन्होंने चेन्नई में अपना सबसे पहला बंगला बनाया. इतना ही नहीं कमाई बढ़ने के साथ-साथ उन्होंने मुंबई में भी अपना एक बंगला बनाया.

यह बात बहुत कम लोग जानते हैं कि शोले में उनके द्वारा किया गया सूरमा भोपाली का किरदार वह असल में करना नहीं चाहते थे. फिल्म की पूरी शूटिंग हो चुकी थी लेकिन सिर्फ उनका हिस्सा ही शूट करना बाकी था. हालांकि उन्होंने यह किरदार किया जिसकी वजह सलीम जावेद थे.

अपने आईकॉनिक किरदार 'सूरमा भोपाली' के नाम पर उन्होंने फिल्म भी बनाई थी. हालांकि फिल्म को कोई खरीदने के लिए तैयार नहीं था, लेकिन उनके साथी कलाकारों द्वारा काम किए जाने की वजह से फिल्म को रिलीज होने का मौका मिला और फिल्म ने दर्शकों को हल्का फुल्का हंसाया भी.

जगदीप साहब ने अपने पूरे करियर में 400 से ज्यादा फिल्मों में काम किया है. जगदीप साहब ने दो शादियां की थी जावेद जाफरी और ना वेद जाफरी उनकी दूसरी पत्नी के बच्चे हैं.

किशोर कुमार और दिलीप कुमार के बचपन का किरदार निभाने से लेकर सलमान खान के पिता की भूमिका निभाने तक जगदीप साहब ने अपनी हर भूमिका में सभी को हंसाया. भले ही जगदीप साहब आज हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनके किरदार और उनके द्वारा निभाई गयीं भूमिकाएं हमेशा हमारे जहन में जिंदा रहेंगी.

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